डरने की पर बात नहीं है --------------------------- दिन सहमा सहमा गुजरा है पल भर सोई रात नहीं है डरने की पर बात नहीं है पतझड़ आया, पगडंडी पर सूखे पत्तों की चीखें हैं धीरज की चादर ओढ़े, कुछ पिछले मौसम की सीखें हैं मन के गलियारे में पसरा दुख सारा नवजात नहीं है डरने की पर बात नहीं है पलकों के पीछे छुप कर यह गीलापन सूखने लगा है काली रात बहुत लंबी है अब तक सूरज नहीं उगा है चांद कहीं मुंह छुपा रहा है तारों की बारात नहीं है डरने की पर बात नहीं है। - प्रदीप शुक्ल
जो सपने हों, सब अपने हों, सपनों का मर जाना कैसा मन की बातें, चाहे तो आप कविता - कहानी, गद्य - पद्य भी कह सकते हैं.