ओ! बचपन
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मन के अन्दर बच्चा जब तब,
शोर मचाता है
ओ! बचपन तू कितना तो
यादों में आता है
शोर मचाता है
ओ! बचपन तू कितना तो
यादों में आता है
हंसी कम हुई
आंसू भी आने से डरते हैं
सपनों की गलियों से हम
अब कहां गुजरते हैं
आंसू भी आने से डरते हैं
सपनों की गलियों से हम
अब कहां गुजरते हैं
बूढ़ा मन बच्चे मन को
अक्सर धमकाता है
अक्सर धमकाता है
उछल उछल कर चलना हमने
कब का छोड़ दिया
ख़ुशी भरा गुब्बारा हमने
कब का फोड़ दिया
कब का छोड़ दिया
ख़ुशी भरा गुब्बारा हमने
कब का फोड़ दिया
कभी कभी ये बच्चा
अंदर से चिल्लाता है
अंदर से चिल्लाता है
- प्रदीप कुमार शुक्ल
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