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कार्बनडाईऑक्साइड
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मोती ने आंखें खोलीं तो
पाया खुद को घर में
दुबका हुआ पड़ा था
अपने छोटे से बिस्तर में
मम्मी ने बनवा दी
उसके खातिर छोटी सदरी
तेज हवा थी जाड़ा था,
थी आसमान में बदरी
दिन भर तो वह उछला कूदा
शीलू को दौड़ाया
रात हुई तो थर थर कांपा
मोती बहुत जड़ाया
दादा जी ने तब अलाव के
पास उसे बैठाया
स्टोर रूम में मोती का फिर
बिस्तर स्वयं लगाया
देर रात में शीलू ने जब
झाँक लिया था स्टोर
कमरे में बस गूँज रहा था
कूँ कूँ कूँ का शोर
शीलू ने देखा दालान में
थे अलाव के कोयले
सुलग रहे थे उसके अन्दर
अभी आग के गोले
उसने तसले को खिसकाया
और रख दिया स्टोर में
बंद कर दिया दरवाजा
देखेंगे इसको भोर में
कुछ घंटों के बाद अभी थी
तीन बजे की बात
भैया को थी चाय बनानी
पढ़ता सारी रात
देखा तो स्टोर में पूरा
धुआं भरा था भारी
मोती पड़ा हुआ था
उस पर बेहोशी थी तारी
भैया उसे उठाकर फ़ौरन
खुली हवा में आया
बहुत देर में तब मोती ने
अपना कान हिलाया
कोयले ने सारी ऑक्सीजन
कमरे की खा डाली
कार्बनडाईऑक्साइड
बेहोशी देने वाली
दादा कहते, शीलू देखो
होती है दुर्घटना
जलती हुई अंगीठी, कोयला
कमरे में मत रखना
- प्रदीप शुक्ल

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