उससे मिले बहुत दिन बीते
अब मिलने के कहाँ सुभीते
वो छूटा जब छूटा गांव
क्या सखि प्रेमी?
नहीं ' अलाव '
अब मिलने के कहाँ सुभीते
वो छूटा जब छूटा गांव
क्या सखि प्रेमी?
नहीं ' अलाव '
- प्रदीप शुक्ल
देखो मरियल पीली काया
ये अपना क्या हाल बनाया
क्या तो था इसका रँग रूप
क्या सखि प्रेमी?
ना सखि ' धूप '
ये अपना क्या हाल बनाया
क्या तो था इसका रँग रूप
क्या सखि प्रेमी?
ना सखि ' धूप '
- प्रदीप शुक्ल
जाने को बिलकुल तैयार
खुशियाँ सारी रहीं उधार
अगले साल लगेगा नंबर
क्या सखि साजन?
नहीं ' दिसंबर '
खुशियाँ सारी रहीं उधार
अगले साल लगेगा नंबर
क्या सखि साजन?
नहीं ' दिसंबर '
- प्रदीप शुक्ल
कहने को वो जल्दी आए
और सुबह देरी से जाए
पर ठन्डे हैं सब हालात
क्या सखि साजन?
ना सखि ' रात '
और सुबह देरी से जाए
पर ठन्डे हैं सब हालात
क्या सखि साजन?
ना सखि ' रात '
- प्रदीप शुक्ल
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