Skip to main content
दिसंबर
--------
1.
मुरझाई किरनें
सुबह से ही अवसाद की गठरी लेकर
बैठ जाती हैं बरोठे में
रह रह कर खांस उठता है
मुँह लटकाए
मरियल दिसंबर l
2.
खा खा कर बथुआ के पराठे
रात मुटल्ली
कितना तो धीरे धीरे चलती है
आठ बजा देती है जाते जाते
घोड़े पर सवार दिन
कब आया कब गया
कुछ पता ही नहीं चलता
सलूका पहने, अलाव तापता
ये दिसंबर भी ना !
3.
नीच कीच से कमल तोड़ते हुए बच्चे ने
ध्यान रखा
कीच हांथों पर नहीं लगा
यह क्या कम है
कुछ पंखुरियां तोड़ कर ही मगन है
हाथ को हाथ नहीं सूझता
और कमल खिले हैं
सरोवर से पहाड़ तक
भारी कुहरा छाया रहा
इस दिसंबर l
4.
काली हरी बाजरे की रोटियाँ
रोज खाते हुए मन उकता जाता
बदलाव के लिए लाल गुलाबी ज्वार की, थोड़ा मुलायम
पर मुझे कभी नहीं भाईं
फंडा यह था कि बासी रोटी बाजरा
ताज़ी ज्वार की
चाय के साथ इन रोटियों ने हमेशा चलने से मना किया
जब कभी दूध की कमी हुई
तो बाजरे की रोटियाँ गला छीलती हुई बमुश्किल पेट में घुस पाईं
बथुए का सगपहिता ताज़ी रोटियों के साथ
और बासी को गरम दूध के कटोरे में में भुरभुरा कर डाल देने का कॉम्बिनेशन
सर्वमान्य, सर्वप्रिय रहा
इन्ही काली - गुलाबी रोटियों से कटते चार महीने
कभी फूफा या जीजा आ गए तो खाने के समय घात लगाकर होता इंतज़ार
लाल गेहूं की अजीब से स्वाद वाली रोटियाँ भी जलेबी से कम नहीं लगीं
यही दिसंबर तो था l
5.
नवजात पिल्लों के एक गिरोह में
भूरेलाल ने गोरु के कान में कहा
बाहर ठण्ड है
मम्मा ने यहीं रुकने के लिए बोला है
अरे! यह दो पैरों वाला जानवर
हाथ में कोई यंत्र लिए इधर क्यों आ रहा है?
पर, रुको l
माँ ने कहा था, जानवरों पर भी विश्वास किया जा सकता है
कुछ नन्हे विचार विश्वास को परखते हैं
हर दिसंबर l
6.
एक चमकीला तारा
बहुत दूर तक मेरे साथ - साथ चला
सहसा
थोड़ा धुंधला हुआ
और अचानक टूट कर गिर गया
इसी दिसंबर l
7.
तपता तापति भए
रामदीन बोले -
' कै हो लाले, यहु तोतवा तो बिलकुल बोलिही नहीं पावा अदालत मा '
लाले इतमिनान ते तपता मा फूंक मारति भै कहिनि,
" चच्चा, यहु सार फिरि बोली दुई हजार ओनईस मा
औ, चाहे यहु ब्वालै या ना ब्वालै,
काका तो बोलिबै करिहैं "
देखि लीन्हेव
काका फिरि बोलिहैं
फिरि यहु पूरा देसु तोता बनिकै सुनी
अगलेहे दिसंबर l
8.
ऐसे ही
जाते हुए हर साल ने हर बार
मुँह चिढ़ाते हुए अपनी राह पकड़ी
और मैं ठगा सा उसे जाते हुए देखता रहा
सच पूछो तो मुझे आने वाले साल की ख़ुशी से ज्यादा दुख होता है
जाने वाले साल का
हालाँकि इस साल उसके काम कुछ अच्छे नहीं रहे मेरे लिए
मैंने भी कौन सा ढंग से बरता है उसे
पर सबसे बुरी बात तो यह है कि जाते - जाते
मेरी सारी कमजोरियां, सारी कुंठाएं फुसफुसा कर जा रहा है
नए साल के कान में
ले जाओ इसे, अब वापस नहीं आएगा
पर तुम फ़िर आना
मेरे दिसंबर l
- प्रदीप शुक्ल

Comments

Popular posts from this blog

चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 5 ) रविवार का दिन ज़रा देर से शुरू होकर देर तक चलता है हमारे यहाँ. भीड़ भाड़ कुछ ज्यादा ही रहती है, और दिनों की अपेक्षा. इसका एक कारण डॉ साहब का शाम को न मिलना भी है. लोगों का अवकाश भी रहता है अपने दफ्तरों से. सो, आज रविवार है और दिव्यांश के पापा इसी भीड़ में रिसेप्शन पर भिड़े पड़े हैं. " हमको दिखाना नहीं है, बस बात करनी है डॉ से. लूट मचा रखी है. ये देखो सब टीके लगवाए हैं हमने फिर मेरे बच्चे को टाइफाइड कैसे हो गया? सारे डाक्टरों का ये लूटने का जरिया है. अरे भाई जब टीके काम ही नहीं करते हैं तो लगाते क्यों हो? पैसे कमाने के लिए? " हंगामा बढ़ता देख डॉ साहब ने पापा को चैंबर में बुला लिया है. आपको हमसे बात करनी थी? हाँ तो ठीक है, पहले आप बैठ जाइए डॉ ने स्टूल पर बैठे हुए बच्चे को पर्चा लिख कर विदा किया फिर दिव्यांश के पापा की तरफ मुखातिब हुए जी, बताइए? बताना क्या, आपने सारे वैक्सीन हमारे बच्चे को लगवाए. आपने जो जो कहे हमने सब लगवाए फिर भी हमारा बच्चा जब तब बीमार रहता है. देखिए फिर उसको टाइफाइड हो गया है. आपने पिछले साल ही इसका इंजेक्
मैं तो बचपन हूँ साथी मैं तो बचपन हूँ साथी मुझको दुख से क्या लेना दूब हमारी राहों में खुद मखमल सी बिछ जाती नीले पंखों वाली तितली मुझको पास बुलाती रोज रात में साथ साथ चलती तारों की सेना बाग़ बगीचे सुबह दोपहर मेरी राह निहारें रात मुझे थपकी देती हैं कमरे की दीवारें जेबें मुझे खिलाती रहतीं दिन भर चना चबेना बारिश की बूंदें मुझको खिड़की के पार बुलाएं मुझे उड़ाकर अगले पल बाहर ले चली हवाएं चाह रहा मन दुनिया में चटकीले रँग भर देना - प्रदीप शुक्ल
# किस्सा_किस्सा_लोककथाएं #1 शेषनाग पर लेटे हुए विष्णु भगवान लक्ष्मी जी से बतिया रहे थे। दीवाली का भोर था सो लक्ष्मी जी काफी थकी हुई लग रही थीं, परंतु अंदर से प्रसन्न भी। लक्ष्मी जी ने मुस्कुरा कर कहा, ' हे देव, कल देखा आपने, नीचे मृत्युलोक में कितना लोग मुझे चाहते हैं। विष्णु भगवान कुछ अनमने से दिखे। बोले, देखिये लक्ष्मी जी, दीवाली के दिन तो बात ठीक है, लोग आपकी पूजा करते हैं, आपका स्वागत करते हैं, बाकी के दिनों में भगवान, भगवान होता है। हो सकता है कि कुछ दरिद्र और  अशिक्षित लोग आप की आकांक्षा रखते हो आपका स्वागत करते हों और आप को बड़ा मानते हो, परंतु शिक्षित वर्ग और योग्य लोग भगवान को लक्ष्मी से ऊपर रखते हैं। लक्ष्मी जी ने मुस्कुरा कर कहा नाथ, ऐसा नहीं है। बाकी दिनों में भी मृत्यलोक के प्राणी मुझे ही ज्यादा पसंद करते हैं। और पढ़े-लिखे योग्य लोगों की तो आप बात ही मत करिए। बात विष्णु भगवान को खल गई। बोले, " प्रिये, आइए चलते हैं इस बात की परीक्षा ले ली जाए। हालांकि लक्ष्मी जी दीवाली में थक कर चूर हो चुकी थीं पर यह मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहतीं थीं। देवलोक से भूलोक