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Showing posts from June, 2018
देर रात तक मुझे जगाए दिल धड़के, मुँह को आ जाए  कमरे में आए भूचाल  क्या सखि साजन? ना,  फ़ुटबाल
चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 6 ) " इस बेटे से बड़ी बेटियाँ हैं न आपके?" काफी देर से श्लोक की मम्मी को सुन रहे डॉ ने कुछ सोचते हुए पूछा. जी, दो हैं हूँ, तभी. मैं समझ गया हैरान परेशान श्लोक की माँ की समझ में लेकिन कुछ नहीं आया. पिछले आधे घंटे से वह अनवरत बोले जारी हैं. " डॉ साहेब पिछले साल भर से बीमार है मेरा बेटा. अरे, साल भर क्या जब से पैदा हुआ है तब से लेकर घूम रही हूँ डाक्टरों के पास. बुखार चढ़ता है फिर अपने आप उतर जाता है. कभी कभी टट्टियाँ शुरू हो जाती हैं, कभी खांसी. इतना सा दूध पीता है ( खुले हाथ में चारों उँगलियों के नीचे मोड़कर अंगूठा लगाते हुए ) बस फ़ौरन उलट देता है." तो आपने क्या इलाज किया, पर्चे हैं आपके पास? " जी, ये हैं ना." श्लोक की मम्मी ने पर्चों का गट्ठर निकालते हुए दिखाया. " अरे! यह टीबी की दवा क्यों दे रही हैं आप? किसने दिया?" लगभग चिल्लाते हुए डॉ ने पूछा. " हमको डॉ ने नहीं बताया कि टीबी की दवा है इनमे. हमें तो जो डॉ ने बताया वही दे रहे हैं." मम्मी लगभग रोती हुई आवाज में बोलीं. " जब आपका
जीवन  जीवन जीना चाहिए सब चतुराई छोड़ आसानी से पार हों आड़े तिरछे मोड़ आड़े तिरछे मोड़  बहुत जीवन में आयें चालाकी कर, सरल राह को हम उलझायें चतुर - काईयाँ बीच एक परदा है झीना परदे के उस पार कठिन है जीवन जीना - प्रदीप शुक्ल
जाते हुए जून का गीत  सारी छुट्टी बीत गई बस थोड़ी बाक़ी है सोचा था सब पढ़ डालूँगा गणित और विज्ञान पर किताब से हो न सकी कुछ इस ढंग की पहचान होमवर्क की लिस्ट अभी बस्ते से झांकी है पापा से वादा था जायेंगे हम नैनीताल पर जाने क्यों टाल दिया, जायेंगे अगली साल मम्मी कहती, देखो सब गलती पापा की है धूप सुबह से आ जाती है कर देती है शाम अन्दर बाहर सन्नाटा दिन भर करता आराम आती दिखे जुलाई पहने निक्कर खाकी है - प्रदीप शुक्ल
चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 5 ) रविवार का दिन ज़रा देर से शुरू होकर देर तक चलता है हमारे यहाँ. भीड़ भाड़ कुछ ज्यादा ही रहती है, और दिनों की अपेक्षा. इसका एक कारण डॉ साहब का शाम को न मिलना भी है. लोगों का अवकाश भी रहता है अपने दफ्तरों से. सो, आज रविवार है और दिव्यांश के पापा इसी भीड़ में रिसेप्शन पर भिड़े पड़े हैं. " हमको दिखाना नहीं है, बस बात करनी है डॉ से. लूट मचा रखी है. ये देखो सब टीके लगवाए हैं हमने फिर मेरे बच्चे को टाइफाइड कैसे हो गया? सारे डाक्टरों का ये लूटने का जरिया है. अरे भाई जब टीके काम ही नहीं करते हैं तो लगाते क्यों हो? पैसे कमाने के लिए? " हंगामा बढ़ता देख डॉ साहब ने पापा को चैंबर में बुला लिया है. आपको हमसे बात करनी थी? हाँ तो ठीक है, पहले आप बैठ जाइए डॉ ने स्टूल पर बैठे हुए बच्चे को पर्चा लिख कर विदा किया फिर दिव्यांश के पापा की तरफ मुखातिब हुए जी, बताइए? बताना क्या, आपने सारे वैक्सीन हमारे बच्चे को लगवाए. आपने जो जो कहे हमने सब लगवाए फिर भी हमारा बच्चा जब तब बीमार रहता है. देखिए फिर उसको टाइफाइड हो गया है. आपने पिछले साल ही इसका इंजेक्
चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 4 )         रोज की तरह ओपीडी चल रही है. कुछ बच्चे चिल्ला रहे हैं, कुछ खेल रहे हैं. ज्यादातर के पिता या साथ आये चाचा ताऊ मोबाइल पर व्यस्त हैं. माएं, बच्चों को चुप कराने में व्यस्त हैं. भरती हो रहे एक बच्चे की माँ प्रोसीजर रूम का दरवाजा पीट रही है. अन्दर से बच्चा चीख चीख कर रो रहा है. उसे आई वी लाईन लगाई जा रही है.       एक दादी इतनी ऊंची आवाज में फोन से बतिया रही हैं कि डॉ के चैम्बर तक आवाज जा रही है. " हाँ, दाग्दर साहेब भर्ती का बताईन है. ... नाहीं .... कहति तुरंत भर्ती काराव .... हाँ .. अबहिन. गुलूकोस चढ़ी. कहि रहे मेडिकल कालिज लई जाव. .... अच्छा ... हूँ ...हूँ ... अरे नाहीं ... हूँ ... हूँ .. तौ ठीक है. हियैं भरती केहे देईति है. ... ठीक है ... रक्खौ.        वैक्सीन लगवाने आए बच्चे अस्पताल में घुसते ही बुक्का फाड़ कर रो रहे हैं. दूर गाँव से आया एक बच्चा नाक बहाता और खांसता हुआ चिप्स खाने में व्यस्त है.       एक परिवार चुप बैठा है. उनका नवजात बच्चा एन आई सी यू में कल रात भर्ती हुआ है. बुआ जी फोन पर किसी से धीरे धीरे बात कर रही हैं. पत
चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 3 )        " जब बित्ता भरे का रहै, तब तो जिया लीन्हे रहौ, अब तुम जल्दी ते ठीक करौ यहिका " महिला ने रोते हुए डॉ से कुछ इस तरह बित्ता दिखाते हुए कहा कि डॉ कि हँसी छूट पड़ी. नकली गुस्सा दिखाते हुए डॉ ने कहा, " तुम अगर इसी तरह रोती चिल्लाती रहोगी तो तुम्हे मेडिकल कॉलेज भेजना पडेगा. इस तरह तुम्हारे बच्चे का इलाज मैं नहीं कर पाऊंगा." " अच्छा ठीक है अब न रोईबे हम " आंसू पोछते हुए महिला बोली.        अभी दो दिन पहले तेज बुखार में बिक्कू झटके आने पर दुबारा भरती हुआ है हमारे यहाँ. वाकई ये बच्चा बहुत छोटा था जब पहली बार यहाँ भरती होने आया था, मात्र 900 ग्राम का. तब बिक्कू का नाम बेबी ऑफ़ रश्मि हुआ करता था. बिक्कू कि मम्मी तब भी बहुत परेशान रहती थी बिक्कू को लेकर. एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा वाली कहावत चरितार्थ करते हुए बिक्कू एक तो समय से काफी पहले इस दुनिया में आ गए, साथ ही दिल में एक छोटा सा छेद भी बना रखा है, जिसकी उसे जरूरत नहीं है. आशा और निराशा में झूलते हुए मम्मी ने पूरे पंद्रह दिन हमारे यहाँ काटे थे. काटना ही कहेंगे, ल
आम आए हाथ में गठरी लिए  हँसते हुए गुलफ़ाम आए और मलिहाबाद से चलकर दशहरी आम आए ख़ुशबुओं से फ्रिज भरा है खोल दो तो घर महकता यहाँ दिल्ली में, दशहरी आम को था मन हुड़कता साथ आमों के अभी मीठे बहुत पैगाम आए आम आए याद आया पेंड़ पर आमों को चढ़ कर तोड़ना और फिर उनको चुराकर हाँथ पीछे मोड़ना जब कभी पकड़े गए तो ख़ूब आँसू काम आए आम आए बात निकली गांव की तो चल पड़े किस्से पुराने बाग़, नदिया, खेत, पोखर ने हुमक गाए तराने आम खाने ननकऊ, गफ्फूर, राजाराम आए आम आए. - प्रदीप शुक्ल ( योगेंद्र्दत्त शर्मा जी का गीत " आम आए " पढ़ते हुए )
चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 2 ) " साढ़े नौ का टाइम लिखा रखा है, दस बजने वाले हैं अभी तक डॉ नहीं बैठे हैं. क्या तमाशा बना रखा है," शगुन के पापा गुस्से में रिसेप्शनिष्ट लड़की को हडकाए जा रहे हैं. भैया, आने वाले हैं बस डॉ, तब तक आप बच्चे को पानी से स्पंज करा दीजिए. सिस्टर जी बच्चे का बुखार नाप कर स्पन्जिंग करवाइए, गुनगुने पानी से. शगुन की मम्मी शगुन के माथे पर पट्टियां तो रख सकती हैं परन्तु बुखार में बच्चे को नहलाना ... न बाबा न. निमोनिया जकड़ लेगी सीने को. इनका बच्चा तो है नहीं, जो मन में आया बोल दिया. मम्मी जी धीरे धीरे भुनभुना रही हैं. चादर से और लपेट दिया बच्चे को. " डॉ साब साढ़े दस बजे आएंगे " रिसेप्शनिष्ट ने फोन रखते हुए चिल्लाकर कहा. ताकि सभी सुन ले. अभी वो बाहर गए हुए हैं. चलो कहीं और दिखा लेते हैं, डॉ तो अभी यहाँ आए नहीं. पिता जी के प्रस्ताव को माता जी ने धीरे से ठुकरा दिया, " नहीं. शगुन की दवा इन्ही डॉ की सूट करती है." मैं तो बच्चों का हॉस्पिटल हूँ, मुझे यह बात पता है कि रिसेप्शनिष्ट झूठ बोल रही है. डॉ, मेरे कैम्पस में घर पर ही
चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 1 )           जी, मैं बच्चों का अस्पताल हूँ और बच्चों की रोने की आवाजें मुझे सुकून देती हैं. नहीं नहीं, बच्चों के हंसने के मैं विरुद्ध नहीं हूँ. लेकिन शांत, चुपचाप लेटे हुए बच्चे जो रो नहीं पा रहे, मुझे बेचैन कर देते हैं.         बारी बारी से या कोरस में रुक रुक कर रोते हुए बच्चे मुझे पसंद हैं. लेकिन, बहुत हिचकियाँ लेकर रोता हुआ एक ही बच्चा मुझे भी घबराहट से भर देता है.         रोते हुए बच्चे का हाथ पकड़ मेरी दीवार पर हौले से थप्पड़ मारती हुई माँ से मैं बिलकुल नहीं घबराता. नन्हे हाथों की गर्माहट मैं पसंद करता हूँ.       देखो अभी अभी एक जोर की चीख आई है डॉक्टर के कमरे से.        बाप रे! डेढ़ बरस का यह बच्चा कितनी जोर से दहाड़ता है. माँ के चेहरे पर पीड़ा के भाव कुछ क्षण के लिए आए और गए.       डॉ साब पहले तो कभी नहीं रोया किसी वैक्सीन के बाद इतनी जोर से? डॉ ने कार्ड भरते हुए बिना सिर उठाए कहा, " हाँ, अब आपका बच्चा बड़ा और समझदार हो गया है. पुराने इंजेक्शन के दर्द भी याद आ गए हैं. वैसे भी इस बार DPT का इंजेक्शन लगा है, अगले दो दिन तक द
देखो आगे मौलसिरी है दिल में आँसू के सागर हैं होठों पर मुस्कान धरी है सबसे आगे हो जाने की बस जीवन में होड़ मची है सुबह शाम के सोपानों ने टेढ़ी मेढ़ी कथा रची है काँटों पर बैठे फूलों के चेहरों पर उजास बिखरी है कोलाहल है जगर मगर है भीड़ भाड़ है यहाँ शहर में दो जोड़ी बूढ़ी आँखों में खालीपन पसरा है घर में आशंकाओं की साँसों में अन्दर तक उम्मीद भरी है मगर हो सके तो सचमुच में तन से मन से तुम खुश रहना दुख की धूप तेज होगी, पर उसको भी तुम हँस कर सहना पैरों में बबूल के कांटे? देखो आगे मौलसिरी है - प्रदीप शुक्ल १ जून २०१८
गुलमोहर के फूल हो गए  शहरों में आ बसे महाशय  गुलमोहर के फूल हो गए और पिताजी वहाँ गांव में सूखे हुए बबूल हो गए गुलमोहर का ऊंचा कद है आखों में ढेरों सपने हैं मखमल में लिपटे बैठे जो ये सुकुमार फूल अपने हैं और वहाँ बूढ़े बबूल के पत्ते सारे शूल हो गए एप्रिल में खिल उठे गुलमुहर मुस्कानों की ये कतार हैं पर बबूल बैसाख बवंडर की, मुश्किल सह रहे मार हैं यहाँ चमकते चेहरे कायम और वहाँ सब धूल हो गए - प्रदीप शुक्ल
आज सबेरे आज सबेरे हरियाली से हुई जान पहचान आज सबेरे फूलों के चेहरों पर थी मुस्कान आज सबेरे फूसी ने कुछ स्वागत गीत सुनाए बाक़ी कुत्ते भी समवेत स्वरों में ही कुकुहाए आज सबेरे हमने कुछ मिट्टी की गंध चुराई आज सबेरे कोने वाली नीम बहुत लहराई आज सबेरे हमें देख सूरज भी था भौंचक्का लगा कि जैसे जाम हो गया उसके रथ का चक्का आज सबेरे आसमान का खूब बड़ा सा घेरा आज सबेरे हवा लगाए दौड़ दौड़ कर फेरा आज सबेरे ऊँघे - ऊँघे मिले महेश तिवाड़ी रोज शाम को वह पीते हैं बस दो लभनी ताड़ी आज सबेरे बिजली ने धरती से पानी खींचा आज सबेरे यादों ने मुझको सीने में भींचा आज सबेरे बगुले देखे बहुत दिनों के बाद और सताती रही देर तक फिर मछली की याद आज सबेरे सन्डे घर से निकला झक्क सफ़ेद आज सबेरे बचपन दौड़ा लेकर नीली गेंद - प्रदीप शुक्ल
प्यासा रहा शहर  बादल गरजे बिजली चमकी  सब कुछ हुआ मगर जाने पर क्या हुआ कि फिर भी प्यासा रहा शहर लोग कह रहे खूब झमाझम पानी भी बरसा इन्द्रदेव ने पता नहीं लेकिन कैसे परसा सागर को उलीच डाला सब जल अँजुरी भर - भर पुरवाई तो चली मगर बस दर्द उभार गई पछुआ सीने में पहले ही डंक उतार गई हलक सुखाता हुआ देस दिख रहा पसीना तर कुछ बैठे ठंडी फुहार में राग मल्हार सुनाएँ बाकी सब बबूल के नीचे बैठे बिरहा गाएँ हम भी रहे ढूँढते जीवन में काफ़िया, बहर - प्रदीप शुक्ल
साथ रहै तबहीं हम सोई,  मिलै न हमका तौ फिरि रोई  आदति डारि दिहिसि परदेसी  का सखि साजन? नाहीं ' एसी '
कहाँ गए तुम पानी? तुम बिन रोए यहाँ किसानी कहाँ गए तुम पानी? बिना तुम्हारे  सब उजाड़ है सन्नाटा पसरा है पेड़ों का, मेड़ों का देखो सबका मुहँ उतरा है तालों से बेदखल हो गई मछली जल की रानी हाकिम की आँखों से उतरे घूरू की आंखों में पानी तुम खेलते वहाँ पर सपनों की राखों में चले गए तुम चेहरों पर अब छाई है मुर्दानी जब तुम पैदा हुए धान की बालें थी लहराईं ताल तलैया मिलने सब घर की डेहरी तक आईं अम्मा सुना रही हैं लेटे - लेटे हमें कहानी - प्रदीप शुक्ल
आवैं तौ हम गाई मल्हार उनका बईठे तकी दुआर अबे तो है हमार मुह उतरा का सखि साजन? नाहीं ' बदरा ' - प्रदीप शुक्ल