गांव का एक लड़का ( 21 ) बी एससी की परीक्षाएं शुरू हुईं l अब तक हमने नक़ल नाम की चिड़िया नहीं देखी थी l यहाँ तो पूरा अजायबघर था l कोई सिटिंग अरेंजमेंट नहीं l जो जिसके साथ बैठना चाहे बैठे l पर्ची बनाने की जहमत उठाने की भी जरूरत नहीं, एक ही सब्जेक्ट की कई राइटर्स की किताबें लाने की छूट l यहाँ पर फेल होने की संभावना तभी बनती थी जब आप किताब सामने रख कर भी सवालों में प्रयुक्त एक दो शब्दों को साधकर ईरान तूरान की कहानी लिख दें या आपकी अंग्रेजी इतनी फर्रा टेदार हो कि मूल्यांकनकर्ता को उर्दू लगने लगे, या फिर आपको ईमानदारी का कीड़ा काट जाए l हमारे मामले में ये तीनों कारण बराबर - बराबर प्रतिशत में मौजूद रहे l जितने सवाल समझ आए उनका उत्तर मैंने देवनागरी में लिखा, बाक़ी अपनी फर्राटेदार अंग्रेजी में किताबों के फटे हुए पन्ने, जो मित्रों ने तरस खाकर दिए उनको वैसे ही छाप दिया l पृष्ठों को क्रमवार लिखने की जरूरत भी नहीं समझी l किसी - किसी दिन ईमानदारी के कीड़े ने भी काटा l परिणाम आशानुरूप ही रहा l परीक्षकों को लगा इस प्रखर बुद्धि बालक को इसी कॉलेज परिसर में अभी और समय व्यतीत करना चाहिए l मैं तीनों
जो सपने हों, सब अपने हों, सपनों का मर जाना कैसा मन की बातें, चाहे तो आप कविता - कहानी, गद्य - पद्य भी कह सकते हैं.