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Showing posts from May, 2018
फ़ेल होने पर कभी आत्महत्या का विचार नहीं आया       बिहार बोर्ड के रिज़ल्ट को लेकर हिंदी पट्टी में अभी महाभारत मचा हुआ है. आज से तीस - पैंतीस साल पहले जब नक़ल का इतना बोलबाला नहीं था और सीबीएसई बोर्ड की तरह यू पी बोर्ड नंबरों को नानी की टाफियों की तरह नहीं बांटता था. तब भी रिज़ल्ट कुछ इसी तरह के आया करते थे.       तब भी मई जून में ही निकला होगा रिज़ल्ट. उन दिनों गाँव भर में विज्ञान का मैं अकेला विद्यार्थी था. मेरे बड़े भाई पहले ही विज्ञान विषय लेकर फ़ेल हो चुके थे हाईस्कूल में, अब मेरी बारी थी.      सुबह किसी ने खबर भिजवाई कि रिज़ल्ट निकला है भैय्या देखा जाय. बन्दर छाप काला दन्त मंजन थूक कर जल्दी से पैंट पहनी और भाग लिए 5 किलोमीटर दूर कस्बे नुमा गाँव या गाँव नुमा कस्बे में, जहाँ पेपर मिलने की उम्मीद थी.      वहाँ पहुँचते ही एक सहपाठी मिले जो पढने में मेरी तरह ठीक ठाक थे, कहा कि सब गुड़ गोबर हो गया यार, क्लास में किसी का नंबर अखबार में नहीं छपा है. मैंने एक बार मिमियाती आवाज़ में पूँछा - सच कह रहे हो ? लेकिन उसने उत्तर देने के बजाय आँखों में आँसू भर लिए. अब शक की कोई गुंजाईश कहा
बुलेट ट्रेन ते आई मानसून केरल मा तौ मानसून आय गवा भइया हां गुरु, झमाझम बरसि रहा है हुआं " औे हियां कब आई? " लल्लन गुरू दूनों आंखिन के ऊपर याक हाथ क्यार छज्जा बनाय कै आँखिनि केरि झिर्री खोलि क पूंछिनि अधियाए जून तक बतावति हैं अख़बार टीबी हूं का सोचति हौ गुरू? सोचिति हन कि दुई चार साल मा बुलेट ट्रेन आय जाई तो जल्दी ते आय जाई मानसून हियौं तौ फिरि का कीन जाय गुरू? फिरि काका का वाट द्याब, अउरु कउनो चारा है का? हां गुरू वईसेव ईविएम केर तो पेट खराब होइगे अबहिन ते। - प्रदीप शुक्ल
गरमी में सब बुरा नहीं है   😋 😋 पकने लगे खेत में गेहूं  औ' पेड़ों पर आम दुपहर आग बबूला होती मुस्काती है शाम सुबह सबेरे हवा गा रही सुर में मीठे बोल ढरक गया है पूरब में थोड़ा सिंदूरी घोल निकले घर से पंछी, सबको अपने अपने काम नई किताबें नए स्कूल में नए - नए हैं लोग नई क्लास में घबराहट का है जी भर संयोग टीचर जी ने पूछ लिया है तभी अचानक नाम नाना के घर के पिछवाड़े पके हुए हैं बेल टीना मौसी खेल रही आँगन में लंगड़ी खेल दौड़ रही हैं सुधियाँ, लेकर सपनों वाले पाल - प्रदीप शुक्ल http://www.anubhuti-hindi.org/1purane_ank/2018/04_20_18.html
रिज़ल्ट स्पेशल ( संस्मरण )           इंटरमीडिएट 39 प्रतिशत अंकों से बाकायदा कृपा पूर्वक ( ग्रेस मार्क्स ) पास करने के बाद एक बार फिर आगे की पढ़ाई मुंह बाए खड़ी हुई थी l हालांकि बारहवीं का इम्तेहान देने के तुरंत बाद पिताजी ने एलान कर दिया था कि मेरी तरफ से तुम अब स्वतंत्र हो l आगे की पढ़ाई ( अगर करना चाहो ) अपने बूते पर करो l पुराना जुमला दोहराया कि " बारह साल के बच्चे को वैद्य नहीं ढूँढना पड़ता है " तुम तो अब अठारह के होने वाले हो l          सो, अगली भोर मोमिया में पराठे, कुंदरू की सब्जी, अम्मा का आशीष और आँखों में आँसू लेकर साइकिल लखनऊ की और दौड़ चली l हाईस्कूल थर्ड डिवीज़न पास चिमिरखे से लड़के को कोई क्या नौकरी देता पर पिताजी की बात दिल को लग गई थी और नौकरी तो करनी ही थी l अगले ढाई महीने यानी रिज़ल्ट निकलने तक कैसे गुज़रे उसकी दास्ताँ बहुत लम्बी है फिर कभी सुनाई जायेगी l अभी तो सीधे रिज़ल्ट के बाद आते हैं l          पढ़े लिखे रिश्तेदारों और आवारा दोस्तों ने यही सलाह दी कि अभी चेत जाओ l बी ए में नाम लिखाओ जो डब्बा ढोने की नौकरी कर रहे हो तीन सौ रुपये महीने की उसमे आगे प्रबल
लघुकथा - " वह आयेंगे " बिकास ... ओ ... बिका sssss स !!!! अस्सी घाट पर एक जर्जर मकान में झिंगोला खाट पर लेटी हुई बुढ़िया ने कराहते हुए आवाज लगाई l विकास ने उसकी आवाज सुनकर भी अनसुनी कर दी l " ई मरे फोन में दिन भर पता नहीं क्या बीनता रहता है ये लड़का? " बुढ़िया इतने धीरे से भुनभुनाई कि विकास तक आवाज नहीं पहुंची l " ए बेटा ज़रा अपने काका को चिट्ठी लिख दे, देख जायँ l पता नहीं फिर मौक़ा मिले न मिले l " बुढ़िया छलक आए आँसुओं को मैली धोती के कोने से साफ़ करती हुई भर्राए गले से बोली l " नहीं आयेंगे वह अब दादी l जब तुम्हारे सगे तुम्हे देखने नहीं आते तो वह क्यों आयें? विकास स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए बुदबुदाया " चार साल पहले भावावेश में मुझे गोद में उठा लिया था एक परदेसी व्यापारी ने और इन्हें माँ कह दिया, तबसे उन्हें सगे बेटे से ज्यादा समझती हैं " क्या कहे बिकास? कुछ नहीं दादी, लिख दे रहे हैं फिर से l विकास ने ट्विटर पर एक सौ चालीसवीं बार कॉपी पेस्ट कर टैग किया - " काका हो सके तो आ जाइए आपको गंगा दादी याद कर रही हैं " अप्रत्य
धीरज           रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे l ओपीडी समाप्त कर वार्ड में आज का आख़िरी राउंड भी बस अभी ख़त्म हुआ था l डॉ धीरज घर जाने ही वाले थे कि चैंबर का दरवाजा खोलते हुए स्टाफ़ ने हिचकिचाते हुए कहा " सर, एक बच्चा है l तो भेजो ना उसे, डॉ का अंदाज़ थोड़ा तल्खी भरा था l डॉ धीरज की तल्खी इसलिए थी कि मरीज दिखाने से पहले पूछने की क्या जरूरत? सबको पता है कि डॉ साहब अगर हॉस्पिटल में हैं तो मरीज देखना ही है l " सर, उसके पास पैसे नहीं है और मरीज गंभीर है शायद भरती की जरूरत पड़े l " वाक्य का आख़िरी हिस्सा उसने जल्दी से जोड़ा कि कहीं फिर डांट न पड़ जाए l क्योंकि नियम यह भी था कि मरीज के पास अगर पैसे नहीं भी हैं तो भी उसे ओपीडी में दिखाने से इनकार नहीं कर सकते l         चार महीने की बच्ची माँ की गोद में निढाल हो गई थी l आँखें गड्ढे में घुसी हुई गाल पिचके हुए l एक बारगी तो डॉ को ऐसा लगा जैसे उसमे प्राण नहीं है l बहुत बार ऐसे ही लोग मरे हुए बच्चे को लपेट कर अस्पताल पहुँचते हैं l बच्चे में हरकत देखकर डॉ धीरज बच्चा माँ के हाथ से लगभग छीनते हुए इमरजेंसी की तरफ लपके l बड़ी मुश्किल से आईवी
सॉरी, हरक्युलिस " बंद ट्रक में सोते समय छ: लोगों की दम घुटने से मौत " बीती रात दिल्ली में ...... दादा जी सुबह का अखबार जोर जोर से पढ़ रहे थे l लगभग चीखते हुए मयंक बोला, " दादा जी प्लीज चुप हो जाइए और पेपर अपने मन में पढ़िए l मेरा आज साईंस का टेस्ट है, मैं अपना पाठ याद कर रहा हूँ l प्लीज ... प्लीज दादाजी l " दादाजी कुछ कहते कहते रुक गए, और चश्मा ठीक कर फिर से पेपर बिना आवाज़ के पढने लगे l मयंक अपना पाठ याद करने लगा l ... एक बड़े जार में, हरे पौधे के साथ एक चूहे को बंद कर दिया गया l एक दूसरे जार में पौधे और चूहे के साथ जलती हुई मोमबत्ती भी रख दी गई l कुछ समय बाद जिस जार में जलती हुई मोमबत्ती थी उसके अन्दर रखे हुए चूहे की मृत्यु हो गई l जार के अन्दर की ऑक्सीजन को मोमबत्ती ने जलाकर कार्बनडाईऑक्साइडऔर कार्बन मोनो ऑक्साइड में बदल दिया l मतलब ऑक्सीजन की कमी से चूहे की मौत हो गई ..... अपनी किताब बैग में रखते हुए मयंक ने दादाजी के पास आकर खूब प्यार किया और चिल्लाने के लिए माफी भी मांगी l दादाजी ने मुस्कुराकर उसे स्कूल के लिए बाहर तक छोड़ा l " दादाजी शाम को म
तुम टुकुर - टुकुर द्याखौ  हम नंग नाचु नाची तुम टुकुर - टुकुर द्याखौ हम बाँधि - बाँधि साफा फिरि बड़ी - बड़ी हांकी यहु देसु घुग्घु बनिकै बस मुलुर - मुलुर झांकी हम दूध ते नहाई तुम पेटु बाँधि राखौ हम देसु का करावा है बीस साल पट्टा तुम छुइ जो कहूं लीन्हेव तौ मारि द्याब चट्ठा हम गाइ जब मल्हारै तुम परे हुआँ कान्खौ हम फारि द्याब बादरु जौ हमै मना कीन्हेव अवतारु हमै समझौ तुम भले नहीं चीन्हेव हम जउन - जउन बोली तुम बात वहै भाखौ - प्रदीप शुक्ल
बबूल और मौलसिरी  दिल में आँसू के सागर हैं होठों पर मुस्कान धरी है सबसे आगे हो जाने की  बस जीवन में होड़ मची है सुबह शाम के सोपानों ने टेढ़ी मेढ़ी कथा रची है काँटों पर बैठे फूलों के चेहरों पर उजास बिखरी है कोलाहल है जगर मगर है भीड़ भाड़ है यहाँ शहर में दो जोड़ी बूढ़ी आँखों में खालीपन पसरा है घर में आशंकाओं की साँसों में अन्दर तक उम्मीद भरी है मगर हो सके तो सचमुच में तन से मन से तुम खुश रहना दुख की धूप तेज होगी, पर उसको भी तुम हँस कर सहना पैरों में बबूल के कांटे? देखो आगे मौलसिरी है - प्रदीप शुक्ल 
ओ वासंती पवन / प्रदीप शुक्ल आओ सारा गांव तुम्हारी राह तक रहा ओ वासंती पवन! तुम्हारा ध्यान किधर है? धूप मुंडेरे पर बैठी कुछ सहमी सकुचाई पंख फुलाकर गौरैय्या आँगन में फिर आई पुरवाई में अभी ज़रा सा है तीखापन और सबेरे की आँखों में थोड़ा डर है वस्त्र उतारे पेंड़ों ने सब हुए दिगंबर से ओस बुनी झीनी चादर आई है अम्बर से नए पात के गात अभी बस झाँक रहे हैं कानन का सब रंग अभी तक धूसर है पीलेपन के धब्बे से कुछ हैं सिवान में आग अभी बस सुलगी है टेसू वन में कामदेव के बाण निकालो तूणीरों से आ जाओ अल्हड़ बसंत खाली घर है आओ सारा गांव तुम्हारी राह तक रहा ओ वासंती पवन! तुम्हारा ध्यान किधर है?
अम्मा रहतीं गाँव में  छुटका रहता है विदेश में  मंझला बहू के पाँव में  बड़का रहता रजधानी में  अम्मा रहतीं गाँव में पांच बरस से छुटका बाहर  होली ना दीवाली  देख नहीं पाई अम्मा अब तक उसकी घरवाली गाय के नन्हे बछड़े को अम्मा दुलरातीं छाँव में अम्मा रहतीं गाँव में मँझला कहता खेती में, कुछ होता नहीं है अम्मा उस पर तेरे खाने कपड़े का मुझ पर ही जिम्मा छुपा छुपा कर रखें पिटरिया मँझला रहता दाँव में अम्मा रहतीं गाँव में पिछले हफ्ते गयीं थीं अम्मा बड़के की रजधानी नहीं बताना चाहें लेकिन वहाँ की कोई कहानी अम्मा वापस लौट चली हैं फिर से अपने ठाँव में अम्मा रहतीं गाँव में