डरने की पर बात नहीं है
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दिन सहमा सहमा गुजरा है
पल भर सोई रात नहीं है
डरने की पर बात नहीं है
पल भर सोई रात नहीं है
डरने की पर बात नहीं है
पतझड़ आया, पगडंडी पर
सूखे पत्तों की चीखें हैं
धीरज की चादर ओढ़े, कुछ
पिछले मौसम की सीखें हैं
सूखे पत्तों की चीखें हैं
धीरज की चादर ओढ़े, कुछ
पिछले मौसम की सीखें हैं
मन के गलियारे में पसरा
दुख सारा नवजात नहीं है
डरने की पर बात नहीं है
दुख सारा नवजात नहीं है
डरने की पर बात नहीं है
पलकों के पीछे छुप कर यह
गीलापन सूखने लगा है
काली रात बहुत लंबी है
अब तक सूरज नहीं उगा है
गीलापन सूखने लगा है
काली रात बहुत लंबी है
अब तक सूरज नहीं उगा है
चांद कहीं मुंह छुपा रहा है
तारों की बारात नहीं है
डरने की पर बात नहीं है।
तारों की बारात नहीं है
डरने की पर बात नहीं है।
- प्रदीप शुक्ल
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