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पचहत्तर साल की उम्र के बाद समाज को आपकी जरूरत नहीं
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एक पचहत्तर साल का भला चंगा आदमी एक दिन अचानक बीमार पड़ जाता है l अब बीमार तो कोई भी हो सकता है l हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री आदरणीय अटल बिहारी वाजपेई जी भी पिछले कई बरसों से गंभीर रूप से बीमार चल रहे हैं l लेकिन हम लाखों देशवासियों की यही इच्छा है कि अभी वह जीवित रहें l
परन्तु यहाँ मैं पचहत्तर साल के उस भले आदमी की बात कर रहा हूँ जो आज से दो महीने पहले अचानक से बीमार पड़ गया l
जैसा कि अमूमन होता है उन्हें भी शहर के सबसे बड़े माने जाने वाले अस्पताल संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराने की कोशिश की गई l यहाँ पर यह बता देना उचित रहेगा कि बीमार हुआ व्यक्ति स्वयं एक डॉ है l 1960 बैच केजीएमसी का यह छात्र राज्य के स्वास्थ्य विभाग से संयुक्त निदेशक के पद से अवकाश प्राप्त हैं l दशकों तक मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट और सीएमओ के पद पर रहते हुए हजारों मरीजों का स्वास्थ्य ठीक करने वाले इस भले आदमी के लिए सरकारी अस्पताल में कोई जगह नहीं थी l बात बिलकुल ठीक भी थी कि किसी बीमार भर्ती आदमी को हटाकर तो उन्हें भर्ती नहीं ही किया जा सकता था, सो नही किया गया l
तो परिवार वालों ने उन्हें प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती कराया, चूँकि वहां पैसा लगता है इसलिए पैसा लगा l एक महीने तक लाखों रूपए खर्चकर अच्छे से अच्छे अस्पतालों में इलाज हुआ, तबियत को न ठीक होना था न हुई l आखिरी उम्मीद एस्जीपीजीआई के महीने भर चक्कर लगाकर आखिरकार एक बेड खाली मिल ही गया l लगा कि संस्थान में कई लोगों के दिमाग लगेंगे तो शायद डायग्नोसिस बन ही जाय पर वहाँ भी ढाक के वही तीन पात l
अब असली बात जिसके लिए ये कहानी लिखनी पड़ी l पिछले एक महीने से वह भला आदमी पीजीआई में भर्ती है l कभी वेंटीलेटर पर कभी वेंटिलेटर से बाहर, कोई डाइग्नोसिस नहीं ( यह बिलकुल संभव है कि बहुत कोशिश के बावजूद भी डायग्नोसिस नहीं बन पाए ) अब तक पांच लाख सत्ताईस हजार पांच सौ रूपए अस्पताल में जमा कराए जा चुके हैं l दिमागी सुस्ती ( ब्रेन डेड नहीं ) के अलावा बाक़ी शरीर के सारे सिस्टम अभी ठीक काम कर रहे हैं l कभी कभी आंखें खोलते हैं, हाथ पैर चलाते हैं अपने आप सांस लेने की कोशिश करते हैं l ...... ऐसे में उनके डॉ इंचार्ज का यह कहना मन को व्यथित कर जाता है l ....
........" आप इन्हें यहाँ से फ़ौरन ले जाइए l बेकार में यह जगह घेरे हुए हैं l इनकी जगह हम किसी बीस साल के आदमी को भर्ती कर लेंगे l हम इनका इलाज यहाँ पर और नहीं करना चाहते हैं, आपको इन्हें यहाँ से ले जाना ही होगा l हम तो पहले ही इनको भर्ती नहीं करना चाहते थे l आप लोग पब्लिक मनी का दुरुपयोग कर रहे हैं .... ब्लाह ... ब्लाह ... ब्लाह l " ....
कभी किसी नेता, किसी वीआईपी के लिए भी ऐसा कहेंगे आप? शायद नहीं l
एक आदमी जिसने हजारों मरीजों को जीवन दिया हो उसी कॉलेज में पढ़ा हुआ एक डॉ सिर्फ़ इसलिए उसका इलाज करने से मना करे कि वह पचहत्तर साल का हो गया है l आपको कैसे पता कि अब वह बिलकुल भी ठीक नहीं होंगे l आप भगवान् हैं? आपको इस तरह दुत्कारने का हक किसने दिया? आख़िरी समय में हम क्या उनसे गरिमापूर्ण ढंग से व्यवहार नहीं कर सकते?
पचहत्तर साल का होते ही हमें मर जाना चाहिए? कल को हम बीमार होंगे पचहत्तर साल पर, तो मेरे डॉ बेटे को मुझे इलाज मुहैया नहीं कराना चाहिए l हम कितने - कितने असम्वेदनशील हो गए हैं l
आपके लिए यह मरीज और बेड का समीकरण हो सकता है, मेरे लिए वह एक जीता जागता इंसान है, जिसने मुझे डॉ होने के मायने समझाए l
मुझे यह पोस्ट बहुत दुःख और क्षोभ के साथ लिखना पड़ा है l मेडिकल कम्युनिटी के पुरोधाओं की टिप्पणियों का इंतज़ार है l हो सकता है कि मैं खुद ही अपने दुख में सही बात नहीं समझ पा रहा हूँ l
- 15 दिसंबर, 2017

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