पुराने साल की फेयरवेल पार्टी
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पुराने साल की विदाई, मतलब धूम धड़ाका, संगीत और खाना l तो साहबान हम लोग भी डीजल रथों में सवार कच्चे रास्ते पर धूम धडाम करते यानी गड्ढों में गिरते पड़ते पहुँच गए, पुराने वर्ष को विदा करने l
पुराना साल बेचारा आख़िरी साँसें ले रहा था l हमारे पहुँचते ही कदम के पेंड़ का सहारा लेकर खडा हो गया l मरियल सी आवाज़ में बोला, अब आ ही गए हो तो कुछ खा पी कर जाना l
हमने उसकी बात नहीं टाली l पहले भुने हुए आलू पर हाँथ साफ़ किये फिर शकरकंद पर l शकरकंद खाने के बाद गाजर कुछ कम मीठे लगे लेकिन हमने इस बात का बहुत बुरा नहीं माना l गाजर ने भी नहीं माना होगा, ऐसा मेरा अनुमान भर है l हाँ इसके पीछे - पीछे आई मूली ज़रा सा गैरमामूली बर्ताव करते हुए जबान को कुछ तीखा सा जवाब दे गई l हमने भी उधर ज्यादा ध्यान न देते हुए फिर से गाजर पर थोड़ा ध्यान दिया l फिर मटर महारानी ने तो मूली के बारे में सोचने का मौक़ा तक नहीं दिया l
अभी यह सिलसिला चल ही रहा था कि पम्प से गिरते हुए पानी के संगीत ने अपनी तरफ ध्यान खींचा l टिटिहरी ने उसमे जोरदार संगत की और मोरों ने समवेत स्वर में पंचम सुर साधा l तभी हमारे साथ गए मनुष्यों को भी गवास चढ़ी और कुछ सुरे और कुछ बेसुरे गीत हवा में उछले l
इन सबके बीच पेड़ों, पौधों, फूलों और वहाँ फैली प्रकृति की सच्ची मुस्कुराहटों के साथ अपनी - अपनी नकली मुस्कुराहटें हम सबने कैमरे में बंद कीं l चोखा बाटी तब तक तैयार हो चुका था l सबने उसको एक सुर में तारीफ़ करते हुए उदरस्थ किया, गुड़ खाया l
गोयाकि अब करने को कुछ बाक़ी था नहीं, सो पुराने साल से हम सब ने भावभीनी विदाई ली l बेचारा बड़ा हैरान परेशान होकर हमे देखता रहा, पर भलेमानस ने एक बार भी नहीं कहा कि भैया हमको तो बारह बजे काल बाबा ले जाएंगे l हम मनुष्य रुपी प्राणियों को तो याद था लेकिन किसी पट्ठे ने जबान खोल कर नहीं दी l
पुराने साल की अंतिम विदाई का काम हम लोगों ने मोर भाईसाब, मोरनी मैडम को और उनका हाँथ बटाने के लिए उल्लू और सियार जी को सौंप दिया l बस, फिर क्या, हम वहाँ से खरामा खरामा निकल लिए l
- प्रदीप शुक्ल
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