कन्हैया लाल नंदन, ' इंडिया टुडे साहित्यिक वार्षिकी ' और कोट का कमाल
------------------------------------------------------------------------------
1.
------------------------------------------------------------------------------
1.
लखनऊ एअरपोर्ट में सिक्योरिटी चेक के पहले ही दाईं तरफ एक किताबों की दूकान हुआ करती थी जो इस बार गायब मिली l समय था तो ऊपर तक झाँक आए पर किताबों का छोटा सा कोना जो कम से कम होना ही चाहिए था,अब नहीं था l लखनऊ एअरपोर्ट पर हिन्दी की किताबें काफी संख्या में उपलब्ध हुआ करती थी l कुछ हिन्दी की पत्रिकाएँ भी मिल ही जाती थीं l खैर, मेरे हैण्ड बैग में कन्हैया लाल नंदन जी अपनी आत्मकथा ' गुजरा कहां कहां से ' के कवर पेज पर ईत्मीनान से मुस्कुरा रहे थे l अचानक मुझे फेसबुक मित्र और मेरे प्रिय व्यंग्यकार अनूप शुक्ल जी की मुस्कराहट याद आ गई l अनूप जी नंदन जी के भांजे हैं और नंदन जी अनूप जी के बिलकुल मामा लग रहे थे l फेसबुक पर अनूप जी ने इतनी बार याद दिलाया है कि मैं देखते ही पहचान गया l
एअरपोर्ट ही अक्सर मुझे पाठक बनने का सौभाग्य प्रदान करता है l तो नंदन जी के साथ हम भी उनके गांव परसदेपुर में बाबा देवीदयाल तिवारी के साथ हेडमास्टर शुकदेव वाजपेई से स्कूल में नाम लिखवा आए l अभी हम पं ज्वाला प्रसाद त्रिपाठी गुरुजी की साइकिल पकड़ कर चल ही रहे थे कि उद्घोषिका ने उसमे व्यवधान डालते हुए हमे विमान पर चढ़ने का आदेश दे दिया l मरता न क्या करता गुरूजी को साइकिल सहित झोले में डाला एक बड़ी बस से छोटी सी यात्रा पूरी कर उड़नखटोले में चढ़ लिए l
दिल्ली पहुँचने से पहले मैं नंदन जी की मानकुंअर से भी मिल लिया l उसके खूंटे से नंदन जी को इलायची खिलाने के बाद मैंने उन्हें सामने वाली सीट के पीछे खोंस दिया l ठंडा सैंडविच और गुनगुनी चाय को निगलते हुए हम दिल्ली के ऊपर उड़ रहे थे l रनवे पर उतरते ही हमने मुस्कुराते हुए नंदन जी को बैग के हवाले किया और टर्मिनल तीन में घुस गए l
- जारी है .......
कन्हैया लाल नंदन, ' इंडिया टुडे साहित्यिक वार्षिकी ' और कोट का कमाल
------------------------------------------------------------------------------
( २ )
दिल्ली के टर्मिनल तीन में सिक्योरिटी चेक मतलब आधा किला फतह l बचा हुआ किला मौसम के हाथों में सुरक्षित रहता है जाड़ों में l अन्दर अच्छा खासा बाज़ार है जहां विंडो शॉपिंग करते हुए आसानी से समय काटा जा सकता है l दो सौ रूपए की डेढ़ सौ मिली लीटर कॉफ़ी और पचास रूपए का पांच सौ एमएल पानी पीकर भी कुछ अतिरिक्त समय जाया कर सकते हैं l पर अपुन के पास तो अभी कन्हैया लाल नंदन जी बैग में पड़े मुस्कुरा रहे थे l
पैर चले और किताबों के कोने में जाकर रुक गए l आखें हिन्दी शब्दों को खोजती हुई पत्रिका लेन में इंडिया टुडे का ताजा रेगुलर अंक और बहुप्रतीक्षित साहित्यिक वार्षिकी अंक देखते ही चमक उठीं l
मेरे सहयात्री अक्सर मुझे अपने सामानों और मेरी पढने की बीमारी के साथ किसी कोने में छोड़कर विंडो शॉपिंग के लिए निकल लेते हैं l
सत्रह वर्षों के बाद निकला यह साहित्यिक वार्षिकी विशेषांक नितांत पठनीय था l सो हमने नंदन जी को आराम देना ही उचित समझा l
वार्षिकी की पूरी सामग्री को ग्यारह खंडों में बांटा गया है l पहले तीन खंड विमर्श, धरोहर और आयाम खत्म होते होते नागपुर चलने का समय हो चुका था l
पूरा विमर्श सोशल मीडिया पर ही खर्च कर दिया गया है l चूँकि मेरा इधर का साहित्यानुराग ज्यदातर सोशल मीडिया से ही उपजा सो विरोध में लिखी हुई बातों पर मैंने मिटटी डाली और पक्ष में लिख रहे लोगों को मन लगा कर सुना / पढ़ा l
धरोहर में मैथिली शरण गुप्त की रुबाइयां और उनका अंग्रेजी अनुवाद मेरी सीमित बुद्धि और अथाह अज्ञानता के चलते बहुत देर तक पढवा नहीं सकीं l अलबत्ता मुझे बच्चन जी की रुबाइयों की हुडकी जरूर लग गई l हाँ, १५४५ में प्रकाशित पं विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक की कहानी ' बदला ' अपने मकसद में कामयाब रही l पढ़ते हुए मन को आश्वस्ति हुई कि स्वतंत्रता आन्दोलन के भीषण समय में भी हम हिन्दुस्तानियों ने कालाबाजारी, चोरी और लूट के अपने नैसर्गिक गुणों को बिलकुल भी मंद नहीं होने दिया था l
- जारी है .....
कन्हैया लाल नंदन, ' इंडिया टुडे साहित्यिक वार्षिकी ' और कोट का कमाल
------------------------------------------------------------------------------
------------------------------------------------------------------------------
( २ )
दिल्ली के टर्मिनल तीन में सिक्योरिटी चेक, मतलब आधा किला फतह l बचा हुआ किला जाड़ों में मौसम के हाथों में सुरक्षित रहता है l अन्दर अच्छा खासा बाज़ार है जहां विंडो शॉपिंग करते हुए आसानी से समय काटा जा सकता है l दो सौ रूपए की डेढ़ सौ मिली लीटर कॉफ़ी और पचास रूपए का पांच सौ एमएल पानी पीकर भी कुछ अतिरिक्त समय जाया कर सकते हैं l पर अपुन के पास तो अभी कन्हैया लाल नंदन जी बैग में पड़े मुस्कुरा रहे थे l
पैर चले और किताबों के कोने में जाकर रुक गए l आखें हिन्दी शब्दों को खोजती हुई पत्रिका लेन में इंडिया टुडे का ताजा रेगुलर अंक और बहुप्रतीक्षित साहित्यिक वार्षिकी अंक देखते ही चमक उठीं l
मेरे सहयात्री मुझे अपने सामानों और मेरी पढने की बीमारी के साथ एक कोने में छोड़कर विंडो शॉपिंग के लिए निकल लिए l
सत्रह वर्षों के बाद निकला यह साहित्यिक वार्षिकी विशेषांक नितांत पठनीय था l सो हमने नंदन जी को आराम देना ही उचित समझा l
वार्षिकी की पूरी सामग्री को ग्यारह खंडों में बांटा गया है l पहले तीन खंड विमर्श, धरोहर और आयाम खत्म होते होते नागपुर चलने का समय हो चुका था l
पूरा विमर्श सोशल मीडिया पर ही खर्च कर दिया गया है l चूँकि मेरा इधर का साहित्यानुराग ज्यदातर सोशल मीडिया से ही उपजा सो विरोध में लिखी हुई बातों पर मैंने मिट्टी डाली और पक्ष में लिख रहे लोगों को मन लगा कर सुना / पढ़ा l
धरोहर में मैथिली शरण गुप्त की रुबाइयां और उनका अंग्रेजी अनुवाद मेरी सीमित बुद्धि और अथाह अज्ञानता के चलते बहुत देर तक बांधे नहीं रख सकीं l अलबत्ता मुझे बच्चन जी की रुबाइयों की हुडकी जरूर लग गई l
हाँ, १५४५ में प्रकाशित पं विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक की कहानी ' बदला ' अपने मकसद में कामयाब रही l पढ़ते हुए मन को आश्वस्ति हुई कि स्वतंत्रता आन्दोलन के भीषण समय में भी हम हिन्दुस्तानियों ने कालाबाजारी, चोरी और लूट के अपने नैसर्गिक गुणों को बिलकुल भी मंद नहीं होने दिया था l
- प्रदीप शुक्ल
( जारी है ..... )
कन्हैया लाल नंदन, ' इंडिया टुडे साहित्यिक वार्षिकी ' और कोट का कमाल
------------------------------------------------------------------------------
------------------------------------------------------------------------------
( ३ )
अगले चार दिन तो नागपुर में बस अपने तकनीकी ज्ञान में कुछ कुछ जोड़ते घटाते बीते l इस दौरान नंदन जी को वार्षिकी के साथ ही छोड़े रखा l क्या पता कुछ खण्डों को उन्होंने पढ़ भी लिया हो अपनी दिव्य दृष्टि से l
पलक झपकते ही वापस लौटने का समय आ गया l हम फिर से उड़नखटोले पर थे और संस्मरण खंड में घुस कर अनिल यादव जी के साथ नखलऊ घूमने निकल पड़े l वाह ! क्या तो धाँसू संस्मरण है अनिल जी का नखलऊ पर l अभी हम नखलऊ की गलियों में डोल ही रहे थे कि बलबीर कृष्ण का संस्मरण ' मौत की चौखट पर जगी जीने की तमन्ना ' पढ़ कर तो बस रूह कांप गई l लीक से अलग चलने वालों के लिए यह दुनिया कितनी कठोर हो सकती है यह लीक पर चलने वालों को अंदाजा भी नहीं है l रामदरश मिश्र जी और विश्वनाथ त्रिपाठी जी के संस्मरण छोटे मगर आत्मीय हैं l
बेल्ट बाँध लेने की उद्घोषणा को हमने अनसुना कर दिया क्योंकि हमने तो बेल्ट खोली ही नहीं थी l ट्रे टेबल सीधी की और आसमान से जमीन की ओर लौट चले, साहित्य की दुनिया से डोमेस्टिक ट्रांसफ़र और सिक्योरिटी चेक वाली दुनिया में l
बस, तभी हमारे नीले कोट ने कमाल दिखाना शुरू कर दिया l आखिर शीर्षक में कोट कब तक टंगा रहता l उसे किस्से में तो आना ही था l
- प्रदीप शुक्ल
( जारी है .... )
Comments
Post a Comment