गांव का एक लड़का ( 9 ) एक बार कक्षा तीन में हमारे मरकहे पंडित जी ने यह प्रस्ताव रखा कि मुझे कक्षा पांच में कुदा दिया जाए l लेकिन मेरी घबराहट और रोने धोने को देखते हुए उन्हें अपने उत्साह और सदाशयता के विचारों की आहुति देनी पड़ी l एक बार तो मैंने गलती से कक्षा छः की गणित की पुस्तक देख ली फिर मुझे सोच - सोच कर जो रोना आया कि हे भगवान् ! मैं ये सवाल कैसे कर पाऊंगा l पांचवी का इम्तेहान बोर्ड इक्जाम होता और पूरे साल स्कूल में यह दोहराया जाता कि कुछ पढ़ लिख लो इस बार बोर्ड है l सीधे फेल कर दिये जाओगे l इम्तेहान में ब्लैकबोर्ड पर जब सवाल लिखे जाने लगे तो समझ में आया कि ये है बोर्ड इक्जाम l खैर, पास हो गए और पास ही नहीं क्लास में टॉप भी किया l उस क्लास में जिसके बाक़ी बच्चे हाईस्कूल की परीक्षा में भी बैठने से वंचित रह गए l ज्यादातर तो पढाई और मार के डर से ही स्कूल छोड़ कर भाग खड़े हुए l कुछ को पारिवारिक गरीबी, पारिवारिक अशिक्षा आदि समस्याओं के कारण भी स्कूल छोड़ना पड़ा होगा l स्कूल छोड़ना एक बहुत स्वाभाविक प्रक्रिया थी जो आस पास हमेशा घटित होती रहती l छठी क्लास के लिए घर से स्कूल की दूरी अब ल
जो सपने हों, सब अपने हों, सपनों का मर जाना कैसा मन की बातें, चाहे तो आप कविता - कहानी, गद्य - पद्य भी कह सकते हैं.