उल्लू दादा
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उल्लू दादा की देखो आँखें तो बहुत बड़ी
इतनी बड़ी कि जैसे लटकीं दो दीवार घड़ी
इतनी बड़ी कि जैसे लटकीं दो दीवार घड़ी
फिर भी देख न पाएं दिन में, मंटू फिर बोला
और हँसी में बन्दर ने थोड़ा सा विष घोला
और हँसी में बन्दर ने थोड़ा सा विष घोला
सबको बुरा लगा मंटू का यह भौंड़ा अंदाज़
उल्लू दादा ने सोचा कुछ करना होगा आज
उल्लू दादा ने सोचा कुछ करना होगा आज
दादा बोले, “ हीरो तोता पूछो गूगल से
कैसे भी हो मैं भी देखूंगा दिन में कल से “
कैसे भी हो मैं भी देखूंगा दिन में कल से “
मंटू के जाते ही हीरो बोला, उल्लू दादा!
पहले तो यह समझें दिन में होती है क्या बाधा?
पहले तो यह समझें दिन में होती है क्या बाधा?
सोन गिलहरी लैपटॉप लेकर जैसे ही बैठी
सारी बात समझ कर उसने गर्दन थोड़ी ऐंठी
सारी बात समझ कर उसने गर्दन थोड़ी ऐंठी
हीरो भैया दादा की है पुतली बहुत बड़ी
तेज रौशनी में भी लेकिन कभी नहीं सिकुड़ी
तेज रौशनी में भी लेकिन कभी नहीं सिकुड़ी
बस इसके कारण ही पलकें हो जाती हैं बंद
और देखने का दिन में छिन जाता है आनंद
और देखने का दिन में छिन जाता है आनंद
उल्लू दादा सुनकर थोड़ा मंद मंद मुस्काए
बोले ' अमेजान ' से कह दो काला चश्मा लाए
बोले ' अमेजान ' से कह दो काला चश्मा लाए
अगले दिन दुपहर में दादा बोले मंटू आओ
और आज के समाचार तुम मुझसे सुनते जाओ
और आज के समाचार तुम मुझसे सुनते जाओ
पढ़ते हैं अखबार खटाखट दिन में उल्लू दादा
लोग कह रहे उल्लू दादा बुद्धिमान हैं ज्यादा ll
लोग कह रहे उल्लू दादा बुद्धिमान हैं ज्यादा ll
- प्रदीप शुक्ल
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