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Showing posts from February, 2020
दुआरे पर बसंत पीत बरन चेहरे पर छाया है थकान का साया कब से खड़ा बसंत दुआरे मन में सकुचाया फोन किया है लड़के ने कुछ उखड़ा-उखड़ा है लगी नौकरी छूट रही है उसका दुखड़ा है यहाँ बहू का मुखड़ा कुछ ज्यादा ही मुरझाया मटमैली सी धूल चढ़ी गेंदों के फूलों पर और दिख रही जंग गैस के दोनों चूल्हों पर धुआँ उठा आँगन से जाकर मन में गहराया लौट रही बिटिया कॉलेज से डरी हुई सहमी रोज मिलें उसको रस्ते में कुछ पागल वहमी दरवाजे का आम अचानक फिर से बौराया - प्रदीप कुमार शुक्ल