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Showing posts from October, 2019
एक अपील बन्दूक धारी भाइयों से - कृपया शादी समारोह में खुद तो आयें लेकिन बन्दूक न लाएं ........... लाना शादी में नहीं , तुम अपनी बन्दूक कोई फिर मर जायगा , हो जा ए गर चूक हो जाए गर चूक , ख़ुशी में मातम होगा कोई बुझे चिराग , घरों में फिर तम होगा बीवी बच्चे साथ , हमेशा लेकर आना मानों मेरी बात , मगर बन्दूक न लाना !! # डॉ. प्रदीप शुक्ल 01.03.2014
जोगीरा सा रा रा रा .... कहें लड्डन ज़रा हमको संभालो यार होली में कि ये आचार जी जीना किये दुश्वार होली में ज़रा सी नींद लगती है जो पलकें बंद करता हूँ जोगीरा फिर नया लेकर खड़े तैयार होली में गया जो रंग लेने मैं ज़रा कल्लन मियाँ के घर वहाँ आचार जी लोटें भरे बाजार होली में अभी तक रोज गांजा के सुबह दो कश लगाते थे मगर अब भांग के खाते हैं गोले चार होली में मियाँ, काका के पीछे पड़ गए हैं हाथ धोकर वो कहीं भक्तों की सेना कर न दे उपचार होली में - प्रदीप शुक्ल
गांव - भौकापुर जहां हमने जीवन की पहली होली खॆली पहली बार जीवन के रंगों से हुआ सामना जहां पुरखों के कहे शब्द मन्दिर की परिक्रमा करते हुए सुनाई पड़ते हैं खेत की मिट्टी में बसी है उनके पसीने की खुशबू दहलीज से आंगन तक पसरा है मेरा बचपन उन्हीं यादों को ताजा करते हुए आज की शाम
महाबली पहलवान --------------------- महाबली हम जीतति जाई एकुई एकु अखाड़ा हारि गवा जो हमते, वहिके टोपी कपड़ा फाड़ा कउनिव नियम नहीं कुस्ती के सबका घेरि क मारब हारिउ गयन तो तुरतै उठिकै जीत - जीत चिग्घाड़ब दुसरे के डंडा पर दउरि क आपन झंडा गाड़ा पच्छिम ते घोड़ा चलि दीन्हेसि पूरब जाति डेराय हरी घास मिलिगै तौ वहिका कूदि - कूदि कै खाय डेरु है दलदल मा फंसाय कै कहूं न जाए कांड़ा को टिकि पाई हमरे समहे हम तो हन अवतार मानौ कहा सब जने आपन फेंकि देव हथियार आव हियाँ सब हमते सीखौ दुइ दुनी आठ पहाड़ा - प्रदीप शुक्ल
महिला दिवस म रामकली --------------------------- चारि बजे हैं खटिया पर ते बस उतरी हैं रामकली हैण्डपम्प ते पानी भरिकै लाई हैं दुई ज्वार लकड़ी कै कट्ठा पर जूठे बासन ते है वार बिन अवाज पूरे आँगन मा फिरि दउरी हैं रामकली पौ फूटै तो लोटिया लईकै बहिरे बाहर जायँ लउटैं तो लोटिया फ्याकैं औ' ग्वाबरु लेयँ उठाय रपटि परी हैं डेलिया लईकै फिरि सँभरी हैं रामकली दूधु दुहिनि बर्तन मा डारिनि अब यहु जाइ बजार बचा खुचा लरिकन के खातिर रखिहैं पानी डार महिला दिवस म हँसिया लईकै निकरि परी हैं रामकली. - प्रदीप शुक्ल महिला दिवस ' 2016
महिना भरि पहिले ललकारै हमका डेरवावै, फुफकारै ढील परा अब पढै पहाड़ा का सखि साजन? नाहीं ' जाड़ा ' अभी अभी तो था वह आया जाने का प्रोग्राम बनाया इच्छाएं रह गईं अनंत क्या सखि साजन? ...नहीं, ' बसंत ' हमका उई कुछु हइहल लागैं अब हुदकारी, तबौं न जागैं गे बुढाय, है खतम भवा बल का सखि साजन? नाहिं, ' बामदल '
ऐसे भी थे स्टीफन हॉकिंग --------------------------- स्टीफन हॉकिंग कई मामलों में अद्वितीय थे l न्यूटन और आइंस्टाईन के कद वाले हॉकिंग सार्वजनिक जीवन में अपनी इमेज को लेकर बिलकुल लापरवाह थे l वे शर्त लगाने में माहिर थे और हारने में भी l ब्लैकहोल के सर्वकालिक सर्वमान्य अध्येता हॉकिंग ने पंद्रह वर्षों तक चले वाद विवाद के बाद कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी के किप थोर्ने से ब्लैकहोल के मसले पर हार मान ली l ऐसे ही हिग्स बोसॉन ( गॉड पार्टिकल ) के मामले में भी उन्होंने शर्त गवा ंई और उन्हें सौ डॉलर का भुगतान करना पड़ा l सन 2014 में किसी के कहने पर हॉकिंग ने एक समीकरण बनाया कि यदि इंग्लिश टीम लाल कपड़े पहन कर दोपहर बाद मैदान में उतरे और 4 - 3 - 3 के फोर्मेट में खेले, साथ ही इस बात का ध्यान रखे कि रेफरी दक्षिणी अमेरिका के न हों तो वह विश्वकप जीत जायेगी l .... इतिहास गवाह है कि उस साल 1958 के बाद पहली बार इंग्लैण्ड टीम ग्रुप मैचेज़ के ऊपर नहीं जा सकी l
उनके लिए जो हमारी तरह ' ई - बुक ' को अपनी पहुँच से दूर की चीज समझते हैं : अपने मोबाइल पर प्ले स्टोर में जाइए वहाँ Kindle Reader टाइप करिए, आपको ढेर सारे फ्री ऐप दिखाई पड़ेंगे l पेंड़ के नीचे पढ़ते हुए बच्चे को देखिये यह अमेज़न का ' किंडल अमेज़न ' या ' किंडल लाइट अमेज़न ' है l इसे तुरंत इंस्टाल करिए l जगह कम पड़ रही हो तो कुछ फालतू के ऐप्स हटा दीजिये l किंडल लाइट  ओपन कीजिए l अमेज़न में रजिस्टर कीजये ( पहले से होंगे तो बहुत अच्छा ) एक साधारण सा पासवर्ड जेनरेट कीजिए l अब स्क्रीन पर सबसे नीचे देखिये ... store पर क्लिक कीजिए ... बस पहुँच गए किताबों की दुनिया में l खरीद डालिए सस्ते में ढेर सारी किताबें l खरीदने के लिए आपको अपने डेबिट / क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करना पड़ेगा या ऑनलाइन बैंकिंग l अब चाहें तो आप इस लिंक पर चले जाईये और केवल पचास रुपये में गूल्लू का गांव अपने मोबाइल में बसा लीजिये l https://www.amazon.in/dp/B07BBFYC2Y
- जी बताइये? - डॉ साब आप हमारी बात पूरी सुन लीजिये - जी, कहिये - कल जब मेरा बच्चा सो कर उठा तो थोड़ा अलसाया हुआ था l हालाँकि परसों रात में हम लोग पिक्चर देखने गए थे ' सोनू के टीटू की स्वीटी ' तो देर हो गई थी सोते - सोते l - परेशानी क्या है बच्चे को ये तो बताइये? - जी, वही तो बता रही हूँ l फिर दिन में उसने खूब खाया l कल ना, मेरे पापा भी आये थे घाटमपुर से l वो खरबूजे लाये थे तो इसने भी खाए l पर डॉ साब हमने उन्हें फ्रिज में रखकर ठंडा कर दिया था .... - अरे आप ये तो बताइये कि बच्चे को क्या हुआ? - हाँ, बता तो रही हूँ l बच्चा मेरा दिन भर ठीक रहा, शाम को उसने कहा कि मम्मा पेटू में दर्द तो मैंने सोचा दांत - वांत निकल रहे होंगे l फिर मेरी सास ने थोड़ी सी हींग घोल कर पिला दी और थोड़ी पेट पर लगा भी दी l अगले एक घंटे तक वह ठीक रहा l कुत्ते के साथ खेला वह और पड़ोस की मिन्नी के साथ भी l मैं मना करती हूँ उसके साथ खेलने से पर वह मानता ही नहीं, बहुत गंदी रहती है मिन्नी ......... दस मिनट से कलम हाथ में लिए बैठा हूँ, हिस्ट्री ऑफ़ प्रजेंट इलनेस तो है पर चीफ़ कम्प्लेंट्स ही नहीं पकड़ में आ रही
विश्व गौरैया दिवस ------------------ एक दोपहर गांव के मोड़ पर, ट्रांसफार्मर के पास मिल गई एक बूढ़ी गौरैया पनियाई आँखों से आशीषती हुई बोली - जा भैया, जस हमार दिन बहुरे, तस तुम्हार न बहुरैं - प्रदीप शुक्ल
सुनो राम जी! कब आओगे? ----------------------------- यहाँ जटायू फ़िर चिल्लाया सुनो राम जी! कब आओगे? युग बदला है लोग धरा पर हैं बदले बदले घर - घर में अब सुग्रीवों को बाली रोज़ छले जज है बाली का हमसाया सुनो राम जी! कब आओगे? जिसको मैं सोचूँ रघुनन्दन, रावण वो निकले सबरी के बेरों को अपने पैरों से कुचले सरयू पर केवट घबराया सुनो राम जी! कब आओगे? रोज दशानन पैदा होते रघुवंशी घर में चुपके से वो अब विराजते बहुतों के उर में रामराज्य पर काला साया सुनो राम जी! कब आओगे? - प्रदीप शुक्ल ( रिपोस्ट )
अच्छे दिनन क ताकि रहेन ------------------------------ स्वाचा रहै हम तो सब दुख हमार जरि जइहैं लागति है सुख मुला फांसी लगाय मरि जइहैं आंखी पथरानी हैं अच्छे दिनन क ताकि रहेन अउर देर लागी तो र्वावां हमार बरि जइहैं सांड़ जेतने हैं पहुँचाव सब कानीहउदै नहीं तो ख्यात - ख्यात खूंटु - खूंटु चरि जइहैं नई बयार नई धूप देखावा जाए नहीं अचार जस बिचार सबै सरि जइहैं भलेमानस बनौ पंगा न लेव धरती ते कहूं जो गुस्सानि तौ पुरिखा तुम्हार तरि जइहैं ई जउन ताज लेहे आसमान दउरि रहे मरै के बेरिया सब उतारि हिएँ धरि जइहैं - प्रदीप शुक्ल
मनु होइ जाय उन्खाडैं परबत राह म रोकि पिलावैं सरबत नहीं तो बिलकुल देयं न कान को सखि साजन? न ' हनुमान ' रात, रातरानी महकाए सुबह देर तक वह औंघाए दुपहर घूमे बना लठैत क्या सखि साजन? ना सखि ' चैत '
अंकल शैम ------------- बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में शहर के रसूखदार नेता और प्रसिद्द व्यवसायी लाला हरकिशन लाल गौबा के घर जन्मे कन्हैया लाल गौबा जब इंगलैंड से वकालत पढ़कर लाहौर लौटे तो यहाँ ' अंग्रेजों भारत छोड़ो ' और ' ले के रहेंगे पाकिस्तान ' की शुरुआत होनी शेष थी l लाला हरकिशन लाल का लाहौर में जो जलवा था उससे भी ज्यादा जलवा, के एल गौबा का होने वाला था l के एल गौबा की लाहौर हाईकोर्ट में वकालत चल निकली और खूब चली l हंगामा पसंद गौबा ने उसी समय एक मुस्लिम युवती से विवाह कर लिया  और लाहौर में हंगामा बरपा हो गया l उसी दौरान एक अमेरिकी महिला कैथरीन मेयो का उपन्यास नुमाया हुआ, " मदर इंडिया " जिसमे उन्होंने हिन्दुस्तान की बहुत छीछालेदर की l गांधी जी ने उसे ' नाबदान के इन्स्पेक्टर की रिपोर्ट ' कहा l उपन्यास के जवाब में बहुत सारी किताबें आईं, फ़ादर इंडिया ' ' सिस्टर इंडिया ' अनहैप्पी इंडिया ' l लेकिन गौबा साहब का जवाब सबसे शानदार था l उन्होंने लाला लाजपत राय से कहा कि आपके अनहैप्पी इंडिया लिखने से इंडिया बहुत दिनों तक अनहैप्पी ही रहेगा l माकूल
चकमक नन्हे चकमक ने धरती पर जैसे आंखें खोलीं गोद उठाकर अम्मा उसके कानों में यह बोलीं तू है मेरा नन्हा सूरज तू सूरज का पोता मेरा बच्चा कितना सुन्दर कभी नहीं यह रोता छुटकू चकमक पत्थर ने खुश होकर मारी ताली नदी किनारे रात हुई जैसे जगमग दीवाली l - प्रदीप शुक्ल
दलित भाईयों को कल पूरे देश में इतना तांडव करने की कोई आवश्यकता थी नहीं l बेमतलब आपकी बदनामी हो रही है l 2019 में जीतेगा वही जिसे आप वोट देंगे l सुप्रीम कोर्ट नहीं मानेगा तो संसद तो हईये है l है कोई माई का लाल जो आपको मना करे? मैं तो कहता हूँ जातिगत भेदभाव करने वाले क्या, सोचने वाले तक को जमानत ही नहीं मिलनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं l हाँ, संसद चाहे तो जमानत पर सोच सकती है, यदि आसपास चुनाव न मंडरा रहे हों तो l # होय_देव_बंद
चिम्पा के अनार ------------------ दूर गांव में रहता चिम्पा और साथ में रानी चम्पा चम्पा तो थी दिल की रानी सचमुच थी वह बहुत सयानी दो रुपये चम्पा के पास चिम्पा बैठा बहुत उदास चिम्पा को भेजा बाजार लेकर आया एक अनार उसमे थे अनार के दाने उनको मगर नहीं थे खाने दानों से फिर पेंड़ उगाए पेंड़ों पर अनार लहराए मेहनत से पेंड़ों को सींचा और बड़ा किया बागीचा फल निकलें अब रोज हजार चल निकला था कारोबार ‘ चिम्पा के अनार ‘ का टैग पैक कर रही चम्पा बैग l - प्रदीप शुक्ल
इस छुट्टी में / प्रदीप शुक्ल इस छुट्टी में आओ बच्चों चलें गाँव की ओर मोटरगाड़ी, मॉल, सिनेमा से कुछ दिन की छुट्टी ए सी कूलर से कर लें हम थोड़े दिन तक कुट्टी छोड़ चलें हम महानगर का यह बड़बोला शोर इस छुट्टी में आओ बच्चों चलें गाँव की ओर आओ देखें चलकर खेतों में फैली हरियाली बासों के झुरमुट में रस्ता देखे कोयल काली यहाँ देख कर दिन भर टी वी हो जाओगे बोर इस छुट्टी में आओ बच्चों चलें गाँव की ओर छत पर चंदा के संग होंगी प्यारी दादी नानी ले जायेंगे साथ यहाँ से अपनी मच्छरदानी चिड़िया बोलेंगी कानों में उठो हो गई भोर इस छुट्टी में आओ बच्चों चलें गाँव की ओर सुबह सबेरे किरणें करती मिल जायेंगी जादू ओस बनी मोती की माला दिखलायेंगे दादू पापा से बोलो चलना है ज़रा लगा कर जोर इस छुट्टी में आओ बच्चों चलें गाँव की ओर. # डॉ. प्रदीप शुक्ल 29.03.2016
आज फिर मां के साथ बैठा हूँ ----------------------------- शहर में सांझ जगमगाती है मां अचानक से याद आती है डूबे सूरज जो, उससे पहले सर झुकाकर दिया जलाती है चांद तारों से दुआ मांग रही सिर उठाकर के बुदबुदाती है भूख का शोर यहाँ बच्चों में गाय देखो वहाँ रंभाती है लौट आये हैं शहर से शायद पिता की साईकिल बताती है मां के अब हाथ तेज चलते हैं और माथे की शिकन जाती है आज फिर मां के साथ बैठा हूँ मां मुझे देख मुस्कराती है. - प्रदीप शुक्ल
हिरन मारना पाप है ---------------------- हिरन मारना पाप है कोरट सबका बाप है बापू तो अब जीरो है साथ में अपना हीरो है हीरो है परदे पर अच्छा जेल के अन्दर पहने कच्छा कच्छे में है खटमल बैठा इधर हमारा हीरो ऐंठा ऐंठ गया था जब इंसान निकल गई थी उसकी जान जान निकल सड़कों पर दौड़ी पैसा लाया दूर की कौड़ी कौड़ी आगे काम आएगी आत्मा अपना मुँह छुपाएगी छुप कर निकलें चांद सितारे टाइगर घूमे नदी किनारे नदी किनारे सांप है हिरन मारना पाप है - प्रदीप शुक्ल
भोरे - भोर लखनऊ ---------------------- बहुत सालों बाद आज भोरे - भोर लखनऊ दर्शन हुए l वजह बने दिल्ली से तशरीफ़ लाए कविता कोश के ललित कुमार जी, शारदा सुमन जी और राहुल शिवाय जी l थोड़ा नया लखनऊ, गोमती उस तरफ, थोड़ा पुराना लखनऊ गोमती इस तरफ l गोमती पुल पर खड़े होकर सूर्योदय करवाया फिर सूरज देवता को साथ लिए खरामा - खरामा चले आए नवाबों की गलियों में l रूमी दरवाजा जो मुझे हमेशा बुलंद दरवाजा के नाम से याद आता है, अपनी जगह पर ही खड़ा मिला l उसे देखकर कुछ यूं लगा जैसे कोई बूढ़ा नवाब रात देर से सोया हो और सुबह - सुबह उनींदे में बिस्तर पर बैठा हुआ है l खैर, हमें क्या करना हम तो फ़ोटो - शोटो खींच - खांच कर चले गए नक्खास l वहाँ इतवारी बाजार में आज पक्षी बाजार भी था l रँग बिरंगी छोटी बड़ी चिड़िया और खरगोश और छोटे बड़े तोते और मैना और .... मन तो किया सबके पिंजड़े खोल कर उड़ा दूं पर संभव नहीं था l आधे तो पिंजरा खोलने पर भी उड़ने को शायद तैयार न होते, जहनी रूप से कैद के आदी हो चुके होंगे l बाक़ी का बाजार तो दोपहर तक लगेगा अभी सब नवाबजादे आराम फरमा रहे होंगे l हम लौट आये,
होना जाना कुछ नहीं, खुला रखो या बंद पुरखों ने घी पी लिया, तुम खाओ अब कंद
अरे ब्वाल्ह रे! रामराज कै यह तैयारी, अरे ब्वाल्ह रे माननीय सारे ब्यभिचारी, अरे ब्वाल्ह रे पूर पजावा खंजरु निकरा देखि परै कदम कदम पर है बीमारी, अरे ब्वाल्ह रे राजा जी के चढ़ा घोड़इयाँ घूमि रहा भरी सभा जो खीन्चै सारी, अरे ब्वाल्ह रे जी कुकुरन ते मुखिया रोजु सिकार करै उनका वहु काहे दुतकारी, अरे ब्वाल्ह रे जहिके मंदिर मा मानवता बिलखि परी कइसे हम आरती उतारी, अरे ब्वाल्ह रे - प्रदीप शुक्ल
कुछ शातिर लोग बलात्कार को मुद्दा बनाकर सरकार बनाते हैं फिर छप्पन इंची सीना अड़ा कर उन्ही बलात्कारियों की ढाल बन जाते हैं वापस लौट आते हैं पुराने शातिर बताते हैं अपने बलात्कारियों को कम इंडिया गेट पर जगमगाती हैं मोमबत्तियां आँखों में कुर्सियां चमक - चमक जाती हैं रात बारह बजे सड़कों पर सूंघते फिर रहे हैं अपनी सरकार कुछ ढोंगी ऐसे भी हैं जो बलात्कार के मुद्दे पर लोट - लोट गए थे जमीन पर छोड़ दिया था खाना पानी आज तोंद फुलाकर कान में तेल डाले बैठे हैं अपने बलात्कारियों का कर रहे हैं पुनर्वास सरकारें बदलने से बलात्कार नहीं रुकने वाले कुछ और सोचना पड़ेगा अब - प्रदीप शुक्ल
शहर से जा कर घंटे दो घंटे पिकनिक मनाना और बात है, खेती करना बिलकुल अलग अनुभव है l कटाई के समय बाबा सुबह चार बजे ही उठा देते l हम अपनी - अपनी हंसिया खटिया के नीचे रात में ही रख लेते थे l गेहूं, अरहर की फसल काटने से लेकर भूसा और झाँखर घर तक लाने में पूरे दो महीनों का वक्त लगता l यह एक तरह का युद्ध होता था सबकी छुट्टियां इस दौरान कैंसिल होतीं l अभी सोचता हूँ तो नॉसटैल्जिया के खुमार में सब बहुत सुहाना लगता है l उस समय मई की दोपहर एक बजे भूसा लदी बैलगाड़ी से जब रस्सी  टूट जाय या खिसक जाय .. बोरे, गठरियाँ गलियारे में छितर जाएँ और कुल जमा चार लोग l दो आदमी - दो बैल l प्यासे होठ और पनीली आंखें l जिन्होंने नहीं भुगता है वह तो कल्पना भी नहीं कर सकते l आज तीस साल बाद भी किसान की स्थिति कमोबेश वही है l नातेदार काका को आज फुर्सत नहीं थी दो घड़ी साथ बैठने की l सुबह देर से शुरू कर पाए तो दोपहर एक बजे तक कटाई चली, अब बोझ बाँधने में लगे हैं l आधे घंटे की आंधी पूरे साल की मेहनत उड़ा ले जायेगी l पूरा परिवार युद्ध क्षेत्र में है l किसान को उसका हक़ मिलना ही चाहिए l फ़ोटो भी पिकनिक की ही अच्छी लग
शहरों में आ बसे महाशय गुलमोहर का फूल हो गए और पिताजी वहाँ गांव में सूखे हुए बबूल हो गए गुलमोहर का ऊंचा कद है आखों में ढेरों सपने हैं मखमल में लिपटे बैठे जो ये सुकुमार फूल अपने हैं और वहाँ बूढ़े बबूल के पत्ते सारे शूल हो गए एप्रिल में खिल उठे गुलमुहर मुस्कानों की ये कतार हैं पर बबूल बैसाख बवंडर की, मुश्किल सह रहे मार हैं यहाँ चमकते चेहरे कायम और वहाँ सब धूल हो गए
गुलमुहर ने आज हमसे बात की ----------------------------------- एक युग के बाद जब देखा हमें गुलमुहर ने आज हमसे बात की सुबह गुजरे हम सड़क पर घड़ी की सुईयां पकड़ते शाम फिर नाकामियों के साथ थे लड़ते झगड़ते चोट थी मष्तिष्क में रासायनिक उत्पात की प्यार से पुचकार कर उसने हमें विश्राम बोला वहीं हमने देर तक भटके हुए मन को टटोला गुलमुहर ने फिर हमे बातें कहीं उस रात की रात में उस रोज महकी थीं सभी चारों दिशाएँ सर्दियों की रात में भी खौल उट्ठी थीं शिराएँ और फिर खामोशियाँ थीं थम चुकी बरसात की - प्रदीप शुक्ल
मँगरू काका मँगरू काका ख्यात मा, नींम्बी तरे जुड़ायँ मोबाइल ते लरिकवा, पढ़िकै रहा सुनाय पढ़िकै रहा सुनाय, चलि परे फिरि ते धोनी लउटे घरै किसान, कहूं ना भै अनहोनी अमरीका तैयार, कोरिया फिरि ते झाँका अडवाणी के हाल, पूछते मँगरू काका - प्रदीप शुक्ल
काका तीनि बार चीन क्यार चक्करु लगाय आय चौथी बार फिरि द्याखौ जाय रहे काका डोकलाम मइहाँ जो म्याड़ काटे घूमि रहा वहिका फिरि काहे सोहराय रहे काका? दुसमन का हमरे जउनु कनिया चढ़ाय घूमै आंखि बंद कीन्हे हैं चुपाय रहे काका यू एन मा जउनु चीन हमका अघवाय रहा वही के दुआरे मुसकाय रहे काका - प्रदीप शुक्ल
नाम में ही सब रक्खा है - जस्टिस के एम जोज़फ का नाम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जज के लायक नहीं समझा। शायद उनका पूरा नाम सरकार को पसंद नहीं आया। पूर्व मंत्री श्री पी चिदंबरम जी महराज जी ने खग भाषा ( ट्वीट ) में अपने यह विचार प्रेषित किए हैं। सेक्सपियर बब्बा तो बेकारे मा फिलासफियाय गए रहे कि नाम मा कुच्छो ना रक्खा। भई नाम में ही तो सब रक्खा है। अपने तुलसी बाबा इसीलिए बताय गए कि - नाम कामतरु काल कराला ........ मल्लब, इस कराल काल यानी कठिन समय में नाम तो कल्पवृक्ष है। नाम की महिमा अपरंपार है। चुनावी भवसागर में नाम की पूंछ पकड़ कर वोटिंग रूपी वैतरणी को आसानी से पार किया जा सकता है। तो भाईयों और बहनों इन फिरंगी बब्बा के चक्कर में मत रहना, अपने तुलसी बाबा नाम की महिमा में बत्तीस दोहे और चौसठ चौपाईयां लिखकर धर गए हैं। कलिकाल में चुनाव के समय नाम का माहात्म्य सर्वाधिक होगा। ऐसा एक पहुंचे हुए फकीर और फुल्ले शाह महराज ने अपने प्रवचनों में यत्र तत्र उद्घृत किया है। तो, हे वोटरों! नाम में ही सब रक्खा है। - प्रदीप शुक्ल
ओ अमलतास ओ अमलतास कुछ पता करो क्यों आज यहाँ बच्चे चुप हैं सड़कें उदास जब चलती बस की खिड़की से बाहर निकले मासूम हाँथ कुछ देर रहा बस के भीतर पंखुड़ियों का उल्लसित साथ छोटी चमकीली आंखों में थी कौंध उठी पीली उजास ओ अमलतास ओ अमलतास रुक गई अगर बस कभी यहाँ नन्ही उंगलियाँ निकल आईं कोमल छुअनों को निरख परख कोंपल, कलियाँ थीं मुस्काईं देखो बातूनी आवाजें मंडराती होंगी आस पास ओ अमलतास ओ अमलतास पर तभी अचानक शोर हुआ कुछ फूलों की चीखें निकलीं पत्ते - पत्ते थरथरा गए डाली - डाली कँपकँपा चलीं कापियों किताबें से निकले अक्षर - अक्षर हैं बदहवास ओ अमलतास ओ अमलतास कुछ पता करो क्यों आज यहाँ बच्चे चुप हैं सड़कें उदास l - प्रदीप शुक्ल
नारद गूगल करीब साढ़े तीन युग पहले की बात है तब देवलोक में विष्णु प्रभाकर, शंकर महादेवन, नारद गूगल, लक्ष्मी ट्वीटर, वृहस्पति फेसबुक, ब्रह्मा कुमार इन्टरनेट आदि नाम हुआ करते थे l वहाँ पर उस समय जाति प्रथा अपने चरमोत्कर्ष पर थी l तब जम्बूद्वीप में जाति नामक विषाणु का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था l मनु नामक जम्बूद्वीप वासी में सबसे पहले इस विषाणु के लक्षण परिलक्षित हुए l कालान्तर में यह बीमारी पूरे द्वीप में फ़ैल गई l उसी काल अवधि में देवलोक इस बीमारी से मुक्त हो गया l कहते  हैं, नारद नाम के देवपुरुष ने अपना क्लोन बना कर इस पृथ्वीलोक में उतार दिया, जिसने यहाँ की सारी ख़बरें देवलोक तक पहुंचानी शुरू कीं l यह गूगल नाम का दुष्ट क्लोन ही पृथ्वीलोक के सभी दुखों का कारण है l क्लोन तो लक्ष्मी, वृहस्पति और ब्रह्म कुमार ने भी बनाए और भेजे, पर वह गूगल जैसे खतरनाक साबित नहीं हो पाए l देवलोक से सशरीर अवतरित हुए कुछ देवपुरुषों ने अब धीरे - धीरे यह जानकारी मूर्ख मनुष्यों को वितरित करनी शुरू कर दी है l कहते हैं पृथ्वी पर जम्बूद्वीप में सशरीर देवपुरुषों का अपना एक गिरोह है और इस गिरोह के मुखिया के कहने पर
काम करूँ तो वह आ जाए सीने पर ही ढुलका जाए मुश्किल कर देता है जीना क्या सखि साजन? नहीं ' पसीना ' जब देखो तब वो गरियाएं सबकी गलती रोज गिनाएं झूठ कहें दिन भर दस बीस क्या सखि साजन? नहीं ' पढीस ' उसके आने की तैयारी, मुझको तो टेंशन है भारी जुमला फेंकेगा दस बीस क्या सखि साजन? ना, ' उन्नीस '😋 कहीं मुझे जो वह मिल जाय सारा कॉन्फीडेंस बिलाय गुम हो जाऊँ वहीं उसी क्षण क्या सखि साजन? न, ' आरक्षण ' आएगा जब मोरे अँगना, खनक उठेंगे पायल कँगना खेलेगा जी भर कर लल्ला ...क्या सखि साजन? ना री ' गल्ला '
जिन्ना को कुछ लोग गांधी के बरक्स खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं l कहाँ जिन्ना - कहाँ गांधी l ये गांधी ही थे जिन्होंने भारत के खिलाफ युद्ध लड़ते हुए पाकिस्तान को आमरण अनशन कर भारतीय खजाने से पैसा दिलवाया था l पूरा देश इसके खिलाफ था l यही ईमानदारी और सत्य का साथ उनकी मौत का भी मुख्य कारण बना l यूं कहिए कि पाकिस्तान की भलाई के लिए गांधी ने अपनी जान दी l उसी पाकिस्तान के क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने शोक संदेश में गांधी को एक हिंदू नेता बताया l पाकिस्तान को तो गांधी  की तस्वीर जिन्ना से ऊपर लगानी चाहिए, अपने हर विद्यालय में l # जिन्ना_की_तस्वीर
अम्मा बकरी के बच्चे बोले अम्मा, भीग रहे छोले दावत की तैयारी है एक और तरकारी है अम्मा आज न खाएगी केवल खैर मनाएगी l - प्रदीप शुक्ल
आधार लेटे थे जुम्मन काका पिल्ले ने अन्दर झांका दबे पाँव घर में आया घर पूरा खाली पाया मरियल चूहा मिला पड़ा जोर लगाकर हुआ खड़ा बोला - भूखे हैं सरकार बच्चा कुतर गया आधार - प्रदीप शुक्ल आधार खटिया पर जुम्मन काका मोहरा ते पिलवा झांका दबे पाँव भीतर आवा सोचिसि अब खइबे ख्वावा घर मा एकु नहीं दाना ब्वाला चुहिया का नाना - भूखे - भूखे हप्ता पार नातिनि कुतरि गवै आधार l - प्रदीप शुक्ल
मैं ऐसी पुस्‍तक लिखना चाहता हूँ, जिसमें भाषा व्‍याकरण के अधीन न होकर व्‍याकरण भाषा के अधीन हो। मैं व्‍याकरण को सड़क पर पैदल जानेवाले और साहित्‍य को खच्‍चर पर सवार मुसाफिर की उपमा दूँगा। पैदल चलनेवाले ने खच्‍चर पर सवार मुसाफिर से अनुरोध किया कि वह उसे खच्‍चर पर बैठा ले। उसने उसे अपने पीछे जीन पर बैठा लिया। पैदल मुसाफिर की धीरे-धीरे हिम्‍मत बढ़ी, उसने खच्‍चर सवार को जीन से नीचे धकेल दिया और फिर यह चिल्‍लाते हुए उसे दुतकारने लगा - 'यह खच्‍चर और जीन के साथ बँधा हुआ सारा माल-मता भ ी मेरा है!' - रसूल हमजातोव
फेसबुक सौम्य और धूर्त : एक फेसबुकिया पाठक का आंकलन फेसबुक पाठक के तौर पर मुझे रामजी तिवारी सबसे शालीन, सौम्य और निष्कपट व्यक्ति लगते हैं। वहीं उनके पड़ोसी राज्य के ही एक महाशय मुझे मक्कार, धूर्त, जलनखोर और कपटी होने का भ्रम पैदा करते हैं।दोनों अपने - अपने छोर पर हैं। ध्यान रहे कि यह आंकलन केवल फेसबुक टिप्पणियों पर ही आधारित है। व्यक्तिगत रूप से इन दोनों से में कभी नहीं मिला। जो लोग इन दोनों से मिलते रहे हैं वह इसकी तस्दीक कर सकते हैं। हो सकता है कि मिलने पर मेरे विचार बदल जाएं।
डायरी रविवार 6 मई, 2018 6 : 56 AM कल रात टीवी पर कोई फिल्म देखना चाहता था ' हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी ' टाइप पर अटक गए रजनीकांत की लिंगा चोर पर l उसको हार चुराते - चुराते इतनी देर लगी कि मेरी आँख लगने को हो आई l इरादा था सुबह देर तक सोने का, पर अवचेतन मष्तिष्क से हरी झंडी नहीं मिली l टप्प से आँखें खुल गईं l 7 : 07 AM नौवीं क्लास में पढ़ रहे बच्चे के साथ जीव विज्ञान पढना शुरू किया l हालांकि मन मेरा किंडल में कोई नई पुस्तक शुरू करने का था l पढ़ा कि लाखों साल से चपटे कीड़ों की एक दुनिया बिना नरों के जीवित है l मादाएं प्यार से हमारा खून पी रही हैं ( वैसे मादाएं खून पीने में पारंगत होती हैं, यह बात तो जीव विज्ञान रोज ही बताता है ) और आराम से अपने घर में पैर पसार कर सो रही हैं l कोई रात बिरात कहीं भी निकल जाएँ, देर से घर जाएँ, सड़क पर दायें चले, बाएं चलें, गली में रात को दो बजे स्वेटर बुनते हुए बतियाएं, नाशकाटे मर्दों का कोई दर नहीं l मने दुनिया कितनी हसीन होगी ना! हम सब फेसबुक पर रोज ही डरते हैं कि बिना औरतों की दुनिया कितनी बेनूर हो जायेगी l पर वहाँ देखिये साहेब बिना मर्दों के
अब तक गायब रहै सीन ते जागि परा है मुआ बीन ते सुनौ सब जने ताता धिन्ना को सखि साजन? नाहीं ' जिन्ना '
आम भैया आम नहीं तुम ख़ास हो देखो नहीं उदास हो आंधी से बचकर रहना धूप भले कितनी सहना मना नहीं करना मिट्ठू को थोड़ा गर चाहे चखना पापा मेरे डायबिटिक हैं मीठा थोड़ा कम रखना आ जाना जरूर से भैया आम, तुम्हारा इंतज़ार है l - प्रदीप शुक्ल
हमारे पास अम्मा हैं तुम्हारे पास दिल्ली है, बनारस और शिमला है तुम्हारे पास ऊँचे हिम शिखर का एक गमला है तुम्हारे पास है चाणक्य की चोटी, गदा है भीम का तुम्हारे पास तो पेटेंट भी रक्खा हमारी नीम का तुम्हारे पास है वाणी विशारद पदक सोने का तुम्हारे माथ पर लिक्खा हुआ सम्राट होने का तुम्हारे पास है पारस पड़ा झोला फकीरों का तुम्हारे पास लगता इसलिए मजमा अमीरों का तुम्हारे पास अच्छी राइटिंग है, साफ इमला है तुम्हारे पास हर मौके के खातिर एक जुमला है तुम्हारे सामने हम भले ही कितने निकम्मा हैं तुम्हारे भक्त हैं, होंगे हमारे पास अम्मा हैं। - प्रदीप शुक्ल
आज रात वह शायद आए मेरा तो दिल धड़का जाए करे बवाल न, आशा बांधी क्या सखि साजन? ना सखि ' आंधी ' आधी रात गए वह आया आया पर कुछ कर ना पाया सोई रही मैं चादर तान क्या सखि साजन? ना ' तूफ़ान '
भीखालाल जंगल में था बब्बर शेर कहते थे सब गब्बर शेर उसका बेटा भीखालाल पढने में था बहुत कमाल सबका प्यारा राजकुमार जब आई उसकी सरकार बोला अब होगा मतदान सबके चेहरे पर मुस्कान गब्बर बहुत हुआ हैरान बूढा शेर हिलाए कान अनशन पर है भीखालाल मम्मी उसकी हैं बेहाल गूंजी मम्मी की आवाज नहीं चलेगा जंगल राज l - प्रदीप शुक्ल
आप तुम धूर्तन के टोला निकरेव बाँह म घुसे संपोला निकरेव हम जाना गांधी का चसमा तुम तौ ठगन क झोला निकरेव अमरितु का तुम वादा कीन्हेव लेकिन कोकाकोला निकरेव तुमरे दम पर रहै लड़ाई दगा भवा तुम गोला निकरेव अरबी घोड़ा समझेन तुमका खच्चरु मुला मंझोला निकरेव आप ते ठोस उमीदें बांधा आप तो बिल्कुल पोला निकरेव -डा. प्रदीप शुक्ल
बारिश और चुनाव गौरैयों ने गीत सुनाए कोयल ने भी गाने गाए और गधों ने राग अलापा तब बोले मेढक के पापा - अभी आप सब घर जाएँ दूध पियें, चारा खाएं अभी से इतना क्यों सुरूर है? बारिश और चुनाव दूर है l - प्रदीप शुक्ल
प्रार्थना बंद हुआ विद्यालय घंटी टन टन टन्नाई और तभी दरवाजे से छुट्टी अन्दर आई बोली, टीचर जी मुझको हैं इतने सारे काम - सुबह धूप से बात करूंगी दुपहर में लूडो खेलूंगी और शाम को कहीं लॉन में तितली के पीछे दौडूंगी सभी तितलियों का रक्खूंगी एक एक कर नाम होमवर्क चाहें तो सारा अपने घर ले जाएं यही प्रार्थना है इससे अब मेरी जान बचाएं - प्रदीप शुक्ल
खेती करना नाकों चने चबाना है l आवारा पशुओं से बचाव में ही कितने मानव घंटों का श्रम जाया हो जाता है l अथाह मेहनत और कर्ज लेकर पैसा लगाने के बाद पूरे साल में एक किसान उतना भी नहीं कमा पाता जितना एक पकौड़ा तलने वाला और पान बेचने वाला कमा लेता है l मोदी जी ठीक सलाह देते हैं l बांग्लादेश से बेसन मंगाइए, पाकिस्तान से प्याज और पकौड़े बेचिए l बताते चलें कि दालों में शायद सबसे पहले खेती में पैदा होने वाला चना करीब साढ़े सात हजार सालों से इंसानों के साथ है l ऐसा माना जाता है कि तुर्की से चलकर हिन्दुस्तान में बसा यह बंगाली चना ( Bengal Gram ) फिलहाल भारत में सबसे ज्यादा पैदा होता है l दूसरे नंबर पर आने वाले आस्ट्रेलिया से दस गुना ज्यादा l प्याज तो खैर पाकिस्तान में ही सबसे ज्यादा बोया जाता है l ( चरस बोने का कोई आंकड़ा मेरे पास इस समय नहीं है )
तुम टुकुर - टुकुर द्याखौ --------------------------- हम नंग नाचु नाची तुम टुकुर - टुकुर द्याखौ हम बाँधि - बाँधि साफा फिरि बड़ी - बड़ी हांकी यहु देसु घुग्घु बनिकै बस मुलुर - मुलुर झांकी हम दूध ते नहाई तुम पेटु बाँधि राखौ हम देसु का करावा है बीस साल पट्टा तुम छुइ जो कहूं लीन्हेव तौ मारि द्याब चट्ठा हम गाइ जब मल्हारै तुम परे हुआँ कान्खौ हम फारि द्याब बादरु जौ हमै मना कीन्हेव अवतारु हमै समझौ तुम भले नहीं चीन्हेव हम जउन - जउन बोली तुम बात वहै भाखौ - प्रदीप शुक्ल
धीरज रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे l ओपीडी के बाद वार्ड में आज का आख़िरी राउंड भी बस अभी ख़त्म हुआ था l डॉ धीरज घर जाने ही वाले थे कि चैंबर का दरवाजा खोलते हुए स्टाफ़ ने हिचकिचाते हुए कहा " सर, एक बच्चा है l तो भेजो ना उसे, डॉ का अंदाज़ थोड़ा तल्खी भरा था l डॉ धीरज की तल्खी इसलिए थी कि मरीज दिखाने से पहले पूछने की क्या जरूरत? सबको पता है कि डॉ साहब अगर हॉस्पिटल में हैं तो मरीज देखना ही है l " सर, उसके पास पैसे नहीं है और मरीज गंभीर है शायद भरती की जरूरत पड़े l " वाक्य का आख़िरी हिस्सा उसने जल्दी से जोड़ा कि कहीं फिर डांट न पड़ जाए l क्योंकि नियम यह भी था कि मरीज के पास अगर पैसे नहीं भी हैं तो भी उसे ओपीडी में दिखाने से इनकार नहीं कर सकते l चार महीने की बच्ची माँ की गोद में निढाल हो गई थी l आँखें गड्ढे में घुसी हुई गाल पिचके हुए l एक बारगी तो डॉ को ऐसा लगा जैसे उसमे प्राण नहीं है l बहुत बार ऐसे ही लोग मरे हुए बच्चे को लपेट कर अस्पताल पहुँचते हैं l बच्चे में हरकत देखकर डॉ धीरज बच्चा माँ के हाथ से लगभग छीनते हुए इमरजेंसी की तरफ लपके l बड़ी मुश्किल से आईवी लाइन लग पाई l ऑक्सीजन औ
लघुकथा - " वह आयेंगे " -------------------------- बिकास ... ओ ... बिका sssss स !!!! अस्सी घाट पर एक जर्जर मकान में झिंगोला खाट पर लेटी हुई बुढ़िया ने कराहते हुए आवाज लगाई l विकास ने उसकी आवाज सुनकर भी अनसुनी कर दी l " ई मरे फोन में दिन भर पता नहीं क्या बीनता रहता है ये लड़का? " बुढ़िया इतने धीरे से भुनभुनाई कि विकास तक आवाज नहीं पहुंची l " ए बेटा ज़रा अपने काका को चिट्ठी लिख दे, देख जायँ l पता नहीं फिर मौक़ा मिले न मिले l " बुढ़िया छलक आए आँसुओं को मैली धोती के कोने से साफ़ करती हुई भर्राए गले से बोली l " नहीं आयेंगे वह अब दादी l जब तुम्हारे सगे तुम्हे देखने नहीं आते तो वह क्यों आयें? विकास स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए बुदबुदाया " चार साल पहले भावावेश में मुझे गोद में उठा लिया था एक परदेसी व्यापारी ने और इन्हें माँ कह दिया, तबसे उन्हें सगे बेटे से ज्यादा समझती हैं " क्या कहे बिकास? कुछ नहीं दादी, लिख दे रहे हैं फिर से l विकास ने ट्विटर पर एक सौ चालीसवीं बार कॉपी पेस्ट कर टैग किया - " काका हो सके तो आ जाइए आपको गंगा दादी याद कर
गरमी में सब बुरा नहीं है  😋 😋 --------------------------- पकने लगे खेत में गेहूं औ' पेड़ों पर आम दुपहर आग बबूला होती मुस्काती है शाम सुबह सबेरे हवा गा रही सुर में मीठे बोल ढरक गया है पूरब में थोड़ा सिंदूरी घोल निकले घर से पंछी, सबको अपने अपने काम नई किताबें नए स्कूल में नए - नए हैं लोग नई क्लास में घबराहट का है जी भर संयोग टीचर जी ने पूछ लिया है तभी अचानक नाम नाना के घर के पिछवाड़े पके हुए हैं बेल टीना मौसी खेल रही आँगन में लंगड़ी खेल दौड़ रही हैं सुधियाँ, लेकर सपनों वाले पाल - प्रदीप शुक्ल
बुलेट ट्रेन ते आई मानसून ................................. केरल मा तौ मानसून आय गवा भइया हां गुरु, झमाझम बरसि रहा है हुआं " औे हियां कब आई? " लल्लन गुरू दूनों आंखिन के ऊपर याक हाथ क्यार छज्जा बनाय कै आँखिनि केरि झिर्री खोलि क पूंछिनि अधियाए जून तक बतावति हैं अख़बार टीबी हूं का सोचति हौ गुरू? सोचिति हन कि दुई चार साल मा बुलेट ट्रेन आय जाई तो जल्दी ते आय जाई मानसून हियौं तौ फिरि का कीन जाय गुरू? फिरि काका का वाट द्याब, अउरु कउनो चारा है का? हां गुरू वईसेव ईविएम केर तो पेट खराब होइगे अबहिन ते। - प्रदीप शुक्ल
साथ रहै तबहीं हम सोई, मिलै न हमका तौ फिरि रोई आदति डारि दिहिसि परदेसी का सखि साजन? नाहीं ' एसी ' आवैं तौ हम गाई मल्हार उनका बईठे तकी दुआर अबे तो है हमार मुह उतरा का सखि साजन? नाहीं ' बदरा ' - प्रदीप शुक्ल