Skip to main content

Posts

  ! झूठा सच !! झूठ सच से जुदा कर न पाया कभी , मैं क्या बोलूँ बस तौलता रह गया ! कल जो मेरे लिए झूठ था आज सच , जब भी मौक़ा मिला झूठ सच हो गया ! सच मैं कैसे कहूं मुझमे हिम्मत नहीं , रात भर मैं यही सोचता रह गया ! बात झूठी जमाने को सच्ची लगे , बस यही सोच कर हर सितम सह गया ! झूठ सच के जनाज़े में लिपटा हुआ , आखिरी वक्त में झूठ सच सब गया ! झूठ मैं बोलता रहा उम्र भर , आज अनजान में ही मैं सच कह गया !! - डॉ . प्रदीप शुक्ल 23.11.2013
Recent posts
  !! भइया हम तो खेतिहर किसान !! अब तीन पांच हम का जानी भइया हम तो खेतिहर किसान !! तुम हमरे बल पर दौरि रह्यो हमही का आँख देखाय रह्यो चाहै तुम वहिका डबल कहौ गेहुंऐ की तो रोटी खाय रह्यो जब हम तुम्हरे शहर आई तुम नाक सिक्वारति हौ भईया तुम ऐसे हम का हांकति हौ जैसे हम हन तुमरी गईया जो तुमका हम दुतकारि देई कैसे बचिहैं तुमरे परान भइया हम तो खेतिहर किसान अब तीन पांच हम का जानी भइया हम तो खेतिहर किसान !! टी बी के अन्दर बैठ बैठ बढ़िया बढ़िया बातै करिहौ ऐसन लागी बस अबहीं तुम हमरे पायन माँ सिरु धरिहौ मौक़ा मिलतै तुम तो हमरे पीठी माँ छूरा भोंकि देतु बस हमरा नाम लगाय क तुम अपनी ही रोटी सेंकि लेतु हम तो गरीब मनई हमका तुम काहे कीन्हे हौ परेशान भइया हम तो खेतिहर किसान अब तीन पांच हम का जानी भइया हम तो खेतिहर किसान !! जैसे चुनाव नजदीक आई तुम पहिरि क खद्दर दौरि लिह्यो दिन राति पैंलगी मारि रह्यो तुम हमरे सथहै ज्योंरि रह्यो हम जानिति चुनाव मा जीततै तुम फिरि पांच बरस तक ना अइहौ जो तुमका हम ना वोट दीन तौ सबके समहे गरियइहौ हमका समझावै क रहै देव हम जानिति सब धंधा पुरान भइया हम तो खेतिहर किसान अब तीन पांच हम का जानी
  !! लो फिर शरद ऋतु आ गयी !! धूप की गरमी में नरमी आ गयी लो फिर शरद ऋतु आ गयी !! उसके आने का , इशारा हो गया चढ़ता हुआ पारा , अचानक खो गया एक ठंडी सी छुअन अब , सांझ के माथे पे है गुनगुनी सी धूप लेकर , फिर सवेरा हो गया और हलकी धुंध सी फिर छा गयी लो फिर शरद ऋतु आ गयी !! तेरे आते ही गुलों के , रंग सब गहरा गये भौंरे फूलों से लिपट कर , कान में कुछ गा गये ओस की बूँदें चमक उट्ठीं , ज़रा सी धूप से मोतियों के कीमती टुकड़े , धरा पर छा गये देर से निकला है सूरज , सुबह भी अलसा गयी लो फिर शरद ऋतु आ गयी !! ये गुलाबी ठंड का मौसम , अभी जाने को है कंपकंपाती ठंड का मौसम , अभी आने को है ये हवा जो लग रही , ठंडी छुअन सी कुछ दिनों के बाद , चुभ जाने को है भोर की ठंडी हवा बतला गयी लो फिर शरद ऋतु आ गयी !! कडकडाती ठंड से हम तो बचेंगे पर न जाने लोग फिर कितने मरेंगे नहीं सबके पास बेहतर आशियाना किसी के पास तो फिर वही कम्बल पुराना ठंड आई दिल में दहशत छा गयी लो फिर शरद ऋतु आ गयी !! अच्छा नहीं है इस तरह कविता मोड़ देना और सुन्दर कल्पनाओं को तोड़ देना कैसे कहूं सब शरद का आनंद लेंगे जब मुझे मालूम , कुछ लोग मरणासन्न
  ! कुछ तुम कहो कुछ हम कहें !! आओ बैठो कुछ बात करें कुछ तुम कहो कुछ हम कहें !! अंतर्मन की गाठें खोलो चाहे वाणी से मत बोलो मन की वीणा को झंकृत कर उसके सुर के साथी हो लो चुपचाप ह्रदय के अंगारे आंसू बन अविरल धार बहें कुछ तुम कहो कुछ हम कहें आओ बैठो कुछ बात करें कुछ तुम कहो कुछ हम कहें !! ऐसा तो कोई नहीं होगा जिसने हो ना दुःख भोगा जो आज लग रहा अनियंत्रित कल समय तुम्हारे वश होगा ये तो जीवन का हिस्सा है सुख दुःख तो हर दम साथ रहें कुछ तुम कहो कुछ हम कहें आओ बैठो कुछ बात करें कुछ तुम कहो कुछ हम कहें !! क्या हुआ जो दुःख ने वार किया तम ने उजास को मार दिया काली रातें कट जायेंगी सूरज ने फिर आकार लिया जो बीत गया सो बीत गया कब तक उन लम्हों को सहें कुछ तुम कहो कुछ हम कहें आओ बैठो कुछ बात करें कुछ तुम कहो कुछ हम कहें !! - डॉ . प्रदीप शुक्ल 29.11.2013
  ! तेज़ पुराण !! तहलका में खूब तहलका मचा है खेल हुआ ख़त्म अब क्या बचा है !! तेजपाल निश्तेज हो गए , बुरे हैं अब हालात लिफ्ट नहीं सीढ़ी से अब तो जायेंगे हवालात !! उनके क्रिया कलापों पर है , अब गंभीर सवाल हफ्ते भर से मीडिया में , छाया यही बवाल !! बेटी की उम्र की महिला से , उत्पीड़न का आरोप कई तरह की धाराएं , दी गयी हैं थोप !! तेजपाल के अनुसार ये है विरोधियों का वार मैं तो दूध का धुला हूँ हाँ तबियत का थोड़ा खुला हूँ दारू पीकर थोड़ा मज़ाक कर रहा था बस इधर उधर थोड़ा तांक झाँक कर रहा था आखिर मैं उसका बॉस हूँ ऊपर से मैं कुछ ख़ास हूँ मैंने मीडिया जगत में तहलका मचाया है सबको खुफिया कैमरे का इस्तेमाल सिखाया है उसी कैमरे की वजह से आज मैं परेशान हूँ आगे क्या होगा यही सोच कर हैरान हूँ ये हमारे खिलाफ एक राजनैतिक साजिश है सबको हमारी चोटी खींचने की ख्वाहिश है ............................................. ............................... समय की कमी के कारण पुराण का प्रथम अध्याय यहीं समाप्त होता है ... अगले अध्याय सहित फिर हाज़िर होंगे बोलो किशन कन्हैया की जय !! 37 You, Sandeep Shukla, DrSaurabh Bajpai and 
  " तेज पुराण " दूसरा अध्याय .............. वो चेहरा बाप का लगता था मुझको हर समय लेकिन न जाने किस तरह की गंध थी उसके पसीने की !! वो जब भी देख लेता था मुझे कोने अकेले में करे कोशिश हमेशा बस मुझे आँखों से पीने की !! ज़ेहन में थी बनी तस्वीर उसकी एक मसीहा की मगर अब देखती हूँ तो लगे सूरत क.... की !! तेरी बेटी के संग मैं खेलती थी तेरी गोदी में तू तब भी तीस का था , मैं जब थी कुछ महीने की !! वो कहता है कि इसमें थी मेरी सारी रजामंदी बेगैरत , तू नहीं रखता है ख्वाहिश और जीने की !! - डॉ . प्रदीप शुक्ल 07.12.2013
  !! " आप " के दोहे !! नेताओं की साख पर सबसे बड़ा सवाल ! जाने कहाँ से आ गया अरविन्द केजरीवाल !! डंका बजता " आप " का , बाकी सब पर भारी ! कांग्रेस पर " आप " ने , की है चोट करारी !! अच्छा खासा सबने मिलकर , मचा रखी थी लूट ! एक से एक धुरंधर की , अब किस्मत गयी है फूट !! छोटे मोटे सभी काम के , फिक्स थे पहले रेट ! " आप " के आ जाने से अब , कैसे चढ़ेगी भेंट !! चोर चोर मौसेरे भाई , का था पहले नाता ! ख़ास वर्ग के कोज़ी क्लब में आम घुसा क्यों आता !! अगर वायदे पूरा करती , है अब आगे " आप " ! भ्रष्टाचार भी जाएगा , धीरे धीरे चुप चाप !! दिल्ली के जनमानस में , दिखने लगी है छाप ! आम आदमी ख़ास बन रहा , जब से आई " आप " !! जनता तब तक साथ चलेगी , जब तक नहीं है खोट ! वरना फिर पछताओगे , नहीं पाओगे वोट !! - डॉ . प्रदीप शुक्ल 08.12.2013
  ! निर्भया की याद में !! जाने कितने सपने लेकर शहर आई थी बाबू जी ! मेरे सारे अरमानों को मौत खा गई बाबू जी !! सोचा था पढ़ कर समाज में मैं भी कुछ बन जाऊंगी तेरे शहर की गलियों में बदनाम हो गयी बाबू जी !! मेरा कुसूर बस इतना सा मैं एक अबला नारी थी पिंजरे में थी एक चिरैया कई शिकारी बाबू जी !! तुम सब भी उतने ही दोषी जितने वो सब गुंडे थे मेरी बलि के बाद ही सही अब तो सीखो बाबू जी !! कब तक आँखें बंद रखोगे आस पास की दुनिया से छुपे हुए बदकारों को बस खोज निकालो बाबू जी !! मैं नारी हूँ मुझसे तुम बस नारी सा ब्यवहार करो मत पूजो तुम मुझको ना पत्थर मारो बाबू जी !! मुझको तो इस दुनिया में बस इतना ही जीना था मेरे जैसी औरों की तो जान बचा लो बाबू जी !! - डॉ . प्रदीप शुक्ल 16.12.2013
  !! अरविन्द - नामा !! आओ अरविन्द केज़रीवाल को आंकते हैं ! पहले थोड़ा पीछे झांकते हैं !! ( 1 ) बात करते हैं पिछले साल की वही शुरूआती जन लोकपाल की एक नया चेहरा टी वी पर अक्सर आने लगा धीरे धीरे प्राइम टाइम पर छाने लगा कुछ तो मीडिया के बुद्धिजीवी प्रभावित कुछ टी आर पी का चक्कर बन्दा खड़ा रहा डटकर मामूली सा इंसान चौखाने की शर्ट पैंट से बाहर लटकती हुई दो सौ रुपये वाला चश्मे का फ्रेम पचास किलो का चवन्नी छाप आदमी मीडिया की तवज्जो से मठाधीश बौखला गए वो कुछ भी कहता लोग पूछते तुम कौन ? वह बोलता - आम आदमी तो ?? तो क्या तुम हमसे सवाल करोगे ? गन्दी नाली के कीड़े ( गटर स्नाइप्स ) हिम्मत है तो चुनाव लड़ो एक करोड़ तो चुनाव प्रचार में ही लगते हैं दारु शारू , दुनिया भर का ऊपर से खर्चा दस करोड़ !! है औकात तुम्हारी उसके बाद विधायक खरीदने / बचाने का पैसा अलग कुछ पता भी है तुम्हे चले आये मुह उठा कर जी हम भी चुनाव लड़ेंगे जाओ चुनाव जीतना फिर बताना ( 2 ) चुनाव जीत गए तो कौन सा तीर मार लिया पिछले तिरसठ सालों से हम ने न जाने कितने चुनाव जीते हैं कितनी सरकारें चलायीं / गिरायीं अब तुम चला कर