आज फिर मां के साथ बैठा हूँ
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शहर में सांझ जगमगाती है
मां अचानक से याद आती है
मां अचानक से याद आती है
डूबे सूरज जो, उससे पहले
सर झुकाकर दिया जलाती है
सर झुकाकर दिया जलाती है
चांद तारों से दुआ मांग रही
सिर उठाकर के बुदबुदाती है
सिर उठाकर के बुदबुदाती है
भूख का शोर यहाँ बच्चों में
गाय देखो वहाँ रंभाती है
गाय देखो वहाँ रंभाती है
लौट आये हैं शहर से शायद
पिता की साईकिल बताती है
पिता की साईकिल बताती है
मां के अब हाथ तेज चलते हैं
और माथे की शिकन जाती है
और माथे की शिकन जाती है
आज फिर मां के साथ बैठा हूँ
मां मुझे देख मुस्कराती है.
मां मुझे देख मुस्कराती है.
- प्रदीप शुक्ल
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