डायरी
रविवार 6 मई, 2018
6 : 56 AM
कल रात टीवी पर कोई फिल्म देखना चाहता था ' हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी ' टाइप पर अटक गए रजनीकांत की लिंगा चोर पर l उसको हार चुराते - चुराते इतनी देर लगी कि मेरी आँख लगने को हो आई l इरादा था सुबह देर तक सोने का, पर अवचेतन मष्तिष्क से हरी झंडी नहीं मिली l टप्प से आँखें खुल गईं l
7 : 07 AM
नौवीं क्लास में पढ़ रहे बच्चे के साथ जीव विज्ञान पढना शुरू किया l हालांकि मन मेरा किंडल में कोई नई पुस्तक शुरू करने का था l पढ़ा कि लाखों साल से चपटे कीड़ों की एक दुनिया बिना नरों के जीवित है l मादाएं प्यार से हमारा खून पी रही हैं ( वैसे मादाएं खून पीने में पारंगत होती हैं, यह बात तो जीव विज्ञान रोज ही बताता है ) और आराम से अपने घर में पैर पसार कर सो रही हैं l कोई रात बिरात कहीं भी निकल जाएँ, देर से घर जाएँ, सड़क पर दायें चले, बाएं चलें, गली में रात को दो बजे स्वेटर बुनते हुए बतियाएं, नाशकाटे मर्दों का कोई दर नहीं l मने दुनिया कितनी हसीन होगी ना! हम सब फेसबुक पर रोज ही डरते हैं कि बिना औरतों की दुनिया कितनी बेनूर हो जायेगी l पर वहाँ देखिये साहेब बिना मर्दों के दुनिया लाखों सालों से व्यवस्थित है और खूब फल फूल रही है है l मतलब साबित हुआ कि मादाएं नरों के बिना ज्यादा हंसी खुशी से रह सकती हैं l इति सिद्धम l
इधर हम मादाओं की दुनिया में विचरण करते रहे उधर बेटे ने ऐलान कर दिया अब बस्स l
10 : 02 AM
बाथरूम का क्या मतलब?
टट्टी कितनी बार?
कब से?
अभी सुबह से कितनी बार पेशाब?
नहीं नहीं पेशाब?
करता रहता है नहीं, आज कितनी बार आपने करते हुए देखी?
टट्टी कितनी बार?
कब से?
अभी सुबह से कितनी बार पेशाब?
नहीं नहीं पेशाब?
करता रहता है नहीं, आज कितनी बार आपने करते हुए देखी?
टट्टी नहीं पेशाब देखिये
नैप्पी खोल कर रखिये
हूँ
हूँ
नहीं तो नैप्पी में छेद बना कर सुस्सू को बाहर निकाल कर रखिये l
नैप्पी खोल कर रखिये
हूँ
हूँ
नहीं तो नैप्पी में छेद बना कर सुस्सू को बाहर निकाल कर रखिये l
2 : 10 PM
अरे अर्नव को भेजो ... उम्र सात महीने ....
3 : 17 PM
छोटी सी प्लाटून निकल पड़ी है साप्ताहिक खेत दर्शन के लिए l छोटे हरे तरबूज आजकल सभी खूब मीठे होते हैं l हमारे बचपन में हम लोगों ने कभी कुम्हड़े के आकार के तरबूज बाजार से नहीं खरीदे l सब्जी मंडी से ले जाकर खेत में तरबूज खायेंगे, फोटो शोटो खिचायेंगे l पिताजी ने कहा - भैया सब इंजेक्शन लगा कर ही पकाते हैं, हम न खायेंगे l " हो सकता हो वैज्ञानिकों ने नई प्रजाति बनाई हो, या चीन से आयात किया हो " मैंने अपने को थोड़ा पढा लिखा साबित करने की कोशिश की l लोगों ने मुंह बिचकाया पर चुप रहे l
पहले कल्लू की दूकान चलेंगे l समवेत स्वरों में हां की आवाज कार में गूंज गई।
3 : 50 PM
बीस कालाजामुन और बीस समोसे l
हाँ, छोले भी रहेगे l पत्तल के दोना देना भाई प्लास्टिक की कटोरी नहीं l हंडिया में पोलीथिन नहीं लगाना अन्दर, छोटू l
आज इतवार है ना, इसलिए कैलोरी की तरफ से आँखें बंद रखेंगे, ऐसा मैंने मन ही मन दुहराया और तोंद पर पेंट ऊपर खिसका ली l
हाँ, छोले भी रहेगे l पत्तल के दोना देना भाई प्लास्टिक की कटोरी नहीं l हंडिया में पोलीथिन नहीं लगाना अन्दर, छोटू l
आज इतवार है ना, इसलिए कैलोरी की तरफ से आँखें बंद रखेंगे, ऐसा मैंने मन ही मन दुहराया और तोंद पर पेंट ऊपर खिसका ली l
4 : 20 PM
समोसे की गंध नथुनों को फाड़े दे रही है l तिवारी की हींग डालता है ना यह कल्लू l भई, मैं तो अभी कार में ही खाऊंगा समोसा कोई और खायेगा क्या? अब दस बचे हैं, खेत पर खायेंगे l
6 : 02 PM
तरबूज, भुने हुए चने, समोसा - छोले, गुलाब जामुन, ककड़ी, मट्ठा और चाय के बाद अब प्रस्थान शेष रह गया है l
हम तो चार किलोमीटर पैदल चलेंगे, कोई और भी है क्या? दो लोग और तैयार हो गए l आप शुरुआत तो कीजिए लोग साथ हो लेंगे l लगभग पैतीस वर्षों बाद फिर से उन्ही पगडंडियों को नाप रहा हूँ l काफी कुछ बदल गया है पर बहुत कुछ अभी नहीं बदला l सूर्यनारायण की कलमी बाग़ अभी है अमिया भी लगीं है l कभी झोला फेंक कर आनन फानन पेंड़ पर चढ़ जाया करते थे l अब कूबत नहीं और उत्साह भी नहीं l
गरमी बहुत है, पसीना माथे पर छलछला आया है l पुरहाई खेड़ा बंथरा और घर के बीचोबीच पड़ता है l तब भी पड़ता था जब रोज सुबह - दोपहर आना जाना होता l गलियारे के बगल में कुएं की जगत पर एक बाल्टी लोटा हमेशा मिलता l कितनी बार तो हम बच्चों ने लोटे को, बाल्टी को कुँए में गिरा दिया l पर कभी ऐसा नहीं हुआ कि हम लोग कुँए के पास जाएँ और वहाँ लोटा - बाल्टी - मूंज की रस्सी न मिले l ठंडा मीठा पानी, अहा प्यासे के लिए अमृत l बगल में मास्साब का घर था l घर अब भी है, मास्साब भी हैं, कुआं भी है, बस पानी नहीं है l
पता नहीं क्यों मास्साब ने कुएं को अब भी सजाकर रखा है l कुँए में झाँकने की हिम्मत नहीं पड़ी l मिट्टी से भरा कुआं देखकर पुरानी हसीन यादें के रूठ जाने का डर था।
8 : 15 PM
थक गया हूँ और अचानक से नामवर सिंह का साक्षात्कार याद आ रहा है l .... लड़खड़ाते हुए, पैरों से भी और जबान से भी ...... हिन्दुस्तान के कोने कोने में गया l दुनिया के कोनों - कोनों में गया ...... उत्तर - पूरब - पश्चिम सब जगह ......
मैं भी अपने पोते - पोतियों को बताऊंगा कि पूरे पांच साल हर रोज आठ किलोमीटर पैदल आता जाता था, चिलचिलाती धूप में, कोहरे में, बरसात में नाव से। नंगे पाँव, कभी हवाई चप्पल कभी प्लास्टिक के मुंह कटे जूते l अब नहीं चल पाता तो क्या हुआ?
9 : 20 PM
बुखार कब से है?
खांसी?
कब से?
खांसी?
कब से?
देखिये बुखार है यह ज्यादा महत्वपूर्ण है न कि कितना?
एक बार आपने बुखार की दवा दे दी तो आप अगले चार से छ: घंटे तक दुबारा नहीं दे सकते
एक बार आपने बुखार की दवा दे दी तो आप अगले चार से छ: घंटे तक दुबारा नहीं दे सकते
पानी .... पिलाइए और पानी से नहलाइए
जी, बुखार में भी .....
जी, बुखार में भी .....
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