गुलमुहर ने आज हमसे बात की
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एक युग के बाद
जब देखा हमें
गुलमुहर ने आज हमसे बात की
जब देखा हमें
गुलमुहर ने आज हमसे बात की
सुबह गुजरे
हम सड़क पर
घड़ी की सुईयां पकड़ते
शाम फिर नाकामियों के
साथ थे लड़ते झगड़ते
हम सड़क पर
घड़ी की सुईयां पकड़ते
शाम फिर नाकामियों के
साथ थे लड़ते झगड़ते
चोट थी मष्तिष्क में
रासायनिक उत्पात की
रासायनिक उत्पात की
प्यार से
पुचकार कर
उसने हमें विश्राम बोला
वहीं हमने देर तक
भटके हुए मन को टटोला
पुचकार कर
उसने हमें विश्राम बोला
वहीं हमने देर तक
भटके हुए मन को टटोला
गुलमुहर ने फिर हमे
बातें कहीं उस रात की
बातें कहीं उस रात की
रात में
उस रोज
महकी थीं सभी चारों दिशाएँ
सर्दियों की रात में भी
खौल उट्ठी थीं शिराएँ
उस रोज
महकी थीं सभी चारों दिशाएँ
सर्दियों की रात में भी
खौल उट्ठी थीं शिराएँ
और फिर खामोशियाँ थीं
थम चुकी बरसात की
थम चुकी बरसात की
- प्रदीप शुक्ल
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