मैं ऐसी पुस्तक लिखना चाहता हूँ, जिसमें भाषा व्याकरण के अधीन न होकर व्याकरण भाषा के अधीन हो।
मैं व्याकरण को सड़क पर पैदल जानेवाले और साहित्य को खच्चर पर सवार मुसाफिर की उपमा दूँगा। पैदल चलनेवाले ने खच्चर पर सवार मुसाफिर से अनुरोध किया कि वह उसे खच्चर पर बैठा ले। उसने उसे अपने पीछे जीन पर बैठा लिया। पैदल मुसाफिर की धीरे-धीरे हिम्मत बढ़ी, उसने खच्चर सवार को जीन से नीचे धकेल दिया और फिर यह चिल्लाते हुए उसे दुतकारने लगा -
'यह खच्चर और जीन के साथ बँधा हुआ सारा माल-मता भी मेरा है!'
- रसूल हमजातोव
Comments
Post a Comment