गांव का एक लड़का ( 11 )
मिडिल स्कूल में हमारे घुसने से तुरंत पहले एक गुरुजी प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत हुए थे l बड़ी तारीफ़ थी उनकी l दुर्भाग्य से मैं उनका विद्यार्थी होने से वंचित रह गया l गाढ़े रंग और ज़रा नाटे कद के गुरूजी बहुत सौम्य और भलेमानुष थे l अपने रंग और स्वभाव के अनुरूप ही मास्साब का पहनावा भी बेहद सरल था l मटमैले रंग की धोती और सफ़ेदी की झलक मारता मुचड़ा हुआ कुर्ता l अपने विद्यार्थियों के साथ अपने पुत्र को भी उन्होंने खूब मेहनत से पढ़ाया l बेटा भी पढ़ाकू निकला और पढ़ते - पढ़ते बड़ा अफसर हो गया l बड़ा अफसर मतलब आई ए एस अफसर l अफसर बनने के बाद पुत्र का गाँव आना जाना भी लगभग बंद हो गया l उस समय गाँव में टेलीफोन की सुविधा नहीं थी l लड़का चाहता तो हो सकती थी, पर लड़के को सरकार ने इतने सरकारी काम सौंप रखे थे कि सांस लेने की फुर्सत नहीं थी l
जब बहुत दिनों तक मास्साब को लड़के के हालचाल नहीं मिले तो उन्होंने सोचा काम में व्यस्त होगा चलो हम ही दिल्ली चलते हैं l जनरल डिब्बे में ठुंस कर मास्साब जैसे तैसे दिल्ली पहुंचे l पता लगाते हुए कुछ दूर बस से, कुछ दूर पैदल चलकर आखिर गुरुजी पुत्र के दफ्तर के अन्दर घुसे l सामने दरवाजे पर अपने बेटे की नामपट्टिका देख कर खुशी से उनकी आँखें भर आईं l गरमी और प्यास से उनका गला सूख रहा था पर दरवाजे पर साफा वाली टोपी लगाए चपरासी को देख कर उनकी भूख प्यास सब मिट गई l अलबत्ता चपरासी ने उनसे बिना मुंह खोले दाढ़ी उठाकर और भौहें उचकाकर पूछा, तुम कैसे? मास्साब समझ गए और खखारकर हाथ उठाकर बोले, " मिलना है l"
- ऐसे कैसे मिलना है? साहेब अभी नहीं मिलते हैं, कल आना l
- उनसे कह दो गाँव से दद्दा आये हैं l
- ऐसे कैसे मिलना है? साहेब अभी नहीं मिलते हैं, कल आना l
- उनसे कह दो गाँव से दद्दा आये हैं l
अधिकारी पुत्र बचपन से मास्साब को दद्दा ही कहता आया था l मास्साब इंतज़ार करने लगे कि बेटा यह खबर सुनकर खुशी से फूला नहीं समाएगा और बाहर खुद लेने आयेगा l उस दो पल में मास्साब को पुत्र का पूरा बचपन याद आ गया l
वहाँ अन्दर चार साथी पुरुष और महिला अफसरों के साथ मास्साब का बेटा किसी गंभीर परिचर्चा पर ठहाके लगा रहा था l चपरासी ने संदेशा दिया कि गाँव से कोई दद्दा आये हैं, बाहर खड़े हैं, आपसे मिलना चाहते हैं l अफसर की हँसी पर एकदम ब्रेक लग गई l चेहरा बिलकुल उतर गया l थोड़ी देर तक कुछ नहीं बोले फिर चपरासी से कहा कि कह दो अभी बिजी हैं थोड़ी देर में बुला लेंगे l चपरासी के जाते ही सहकर्मी अफसर ने प्रश्नवाचक नजरों से पुत्र को देखा तो सकपकाते हुए पुत्र ने कहा, " अरे! गाँव का आदमी है किसी अपने काम से आया होगा l मैं तो परेशान हो गया हूँ इन लोगों से, जिसको देखो मुंह उठाये चला आता है l"
इधर, जब बहुत देर तक अन्दर गया चपरासी बाहर नहीं लौटा तो मास्स्साब कान लगाकर अन्दर की बात सुनने का प्रयास करने लगे l आखिरी के दो वाक्य उनको खूब साफ़ - साफ़ सुनाई पड़े l ऐसा लगा किसी ने उनके सीने को दबोच लिया हो l हाथ पाँव बिलकुल ठन्डे हो गए l मास्साब दीवार का सहारा लेकर कुछ देर जड़वत खड़े रहे l चपरासी ने आकर क्या कहा उन्होंने कुछ नहीं सुना l थोड़ी देर में हिम्मत बटोरकर वह धीरे - धीरे चलते हुए दफ्तर से बाहर आ गए l फिर कैसे स्टेशन पहुंचे, कैसे घर उन्हें कुछ याद नहीं रहा l याद रहे तो अपने बेटे के मुंह से सुने हुए वे दो वाक्य जो फिर वह अपनी जिन्दगी में कभी नहीं भूले l
बाद में पता चला कि बेटे ने गाँव आकर बड़ी चिरौरी - विनती की l पर मरते दम तक मास्साब फिर कभी अपने अफसर बेटे के घर नहीं गए l
खैर यह तो मास्साब की कहानी थी अब वापस अपनी कहानी पर लौटा जाए l
कक्षा आठ पास करने के बाद अब बारी थी विषय चुनने की l यहाँ पर यह फेंकना समीचीन होगा कि कक्षा एक से लेकर कक्षा आठ तक मैं हमेशा प्रथम पंक्ति में ही रहा l यह अलग बात है कि कक्षा आठ तक के मेरे सारे सहपाठियों में केवल तीन लोग ही बाद में ग्रेजुएट हो पाए l मुझे गाँव में लोग पढ़ाकू मानते पर दरअसल मैं उतना पढ़ाकू था नहीं l कक्षा आठ तक आते - आते मैं अपने कोर्स से इतर किताबें पढने में समय लगाने लगा था l
मैं सारे विरोधों के बावजूद विज्ञान विषय ही लेने पर अड़ा था. मेरे बड़े भाई पहले ही हाईस्कूल में विज्ञान - विज्ञान खेल चुके थे l उनके साथ हम भी मेढक के दो चार ऑपरेशन कर चुके थे और मन ही मन यह निर्णय भी, कि बायो ही पढनी है l उनका डिसेक्शन बॉक्स मुझको बहुत लुभाता था l नाली से मेढक पकड़ उसे मिट्टी का तेल पिला कर पहले बेहोश करते फिर उसके अगले - पिछले पैर रस्सी से बैलगाड़ी पर रखकर बाँध दिया जाता l फिर ऑपरेशन - ऑपरेशन खेलते l मेढक बेचारा बेहोशी के आलम में इन प्रशिक्षु सर्जनों को कुछ नहीं बोल पाता l
बुरी तरह से पराजित होने के बाद भाई का मन आखिर विज्ञान वाले खेल से ऊब गया और उन्होंने जल्दी से खेल बदल दिया और आर्ट्स - आर्ट्स खेलने लगे l सबने मुझे खूब डराया धमकाया पर पराजय के डर से मैं भला कब रुकने वाला था l अब साईंस पढने वाला मैं पूरे गाँव में अकेला विद्यार्थी था l
जारी है .....
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