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गांव का एक लड़का ( 10 )



जोड़ घटाना, गुणा, भाग और इमला के बाद अब बारी थी अंग्रेजी की l चार लाइनों वाली कॉपी में शुरुआत हुई l जल्दी - जल्दी ए फॉर एप्पल, बी फॉर बैट पर पहुंचे l कर्सिव राईटिंग का अभ्यास तो कक्षा आठ तक चलता रहा l आगे भी हमेशा अभ्यास ही होता रहा कभी ढंग से लिख नहीं पाए l अब तो यह हालत हो गई है कि दवाओं के नाम छोडकर अपना लिखा पढ़ना असंभव सा हो गया है l अंग्रेजी के गुरुजी वैसे तो अच्छा पढ़ाते थे, मारते भी ठीक ठाक ही थे पर जहां पजावा का पजावा खंजड़ हो वहाँ अव्वल ईंटा भला कैसे तैयार हो l गुरुजी को पूरी क्लास को एक साथ हांकना होता था l मैं भी उसी भीड़ का हिस्सा बना रहा l सो, फिरंगी भाषा हमेशा फिरंगी ही रही l हिन्दी से अंग्रेजी में अनुवाद कभी भी सही नहीं हो पाया पर अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद अनुमान के आधार पर किया करते जो सामान्यतः ठीक होता l वही हालत आज भी है l
इतिहास वाले गुरूजी खूब सारा इतिहास बोलकर लिखवाते, जो हमारे कतई पल्ले नहीं पड़ता l बाबर, हुमायूं, अकबर की सीरीज हमेशा उलट - पुलट जाती l आज भी वैसे ही है l पानीपत और प्लासी आपस में ही युद्ध करते रहते l वह बस बोलते जाते और हम लिखते जाते l भूगोल में विश्व मानचित्र ठीक ठाक मान लिया जाता अगर आपने मेडागास्कर की बड़ी बूँद और श्रीलंका की छोटी बूँद अपनी - अपनी दिशा में टपका दीं हैं l
हमारा मिडिल स्कूल वैसे तो बहुत छोटा सा था पर था बहुत सुन्दर l तीन क्लास रूम्स, एक छोटा सा प्रधानाचार्य कक्ष और एक कबाड़ रूम जिसमे किताबें, प्रयोगशाला इत्यादि का सामन भरा रहता l जिसमे एक खटिया भी पड़ी रहती l कानाफूसी यह भी थी कि वहाँ एक गुरुजी मालिश भी करवाते हैं बच्चों से l पर मैंने कभी नहीं देखा l छोटी सी क्षतिग्रस्त चारदीवारी के अन्दर काफी बड़ा सी जगह दो भागों में थी l एक बड़ा सा खुला मैदान और स्कूल बिल्डिंग के पास पेड़ों का झुरमुट l उसी झुरमुट में था एक कुआँ l हमारी ज्यादातर कक्षाएं इन्ही पेड़ों के नीचे ही लगतीं l कुँए के पास ही हमारे सिलाई गुरु की झोपड़ी थी l सिलाई गुरु हमें एच्छिक विषय ' सिलाई ' पढ़ाते और स्कूल परिसर में ही एक अस्थाई झोपड़ी में स्थाई रूप से निवास करते थे l सिलाई गुरु एक सीधे सादे आदमी थे जिनके दोनों पैर अन्दर की तरफ मुड़े हुए थे और लाठी के सहारे धीरे धीरे चलते थे l उन्होंने कलीदार पेटीकोट और म्यानीदार जांघिया और तुरपाई सिखाने की बहुत कोशिश की पर हम सब सीखने में असमर्थ रहे l इम्तेहान में अम्मा से मिनियेचर जांघिया, पैजामा सिलवाकर ले जाते रहे और पास होते रहे l
संस्कृत वैसे तो ज्यादा समझ में नहीं आती थी लेकिन हालात अंग्रेजी जैसे नहीं थे l बालक: बालकौ बालकाः का जो घोटा लगाया कि पैंतीस साल बाद आज भी गाड़ी हे बालक! हे बालकौ! हे बालकाः पर ही रुकती है l
पांच - छः किलोमीटर लम्बे रास्ते पर भी खूब मस्ती होती l जाड़ों में मटर, चने के खेतों पर आक्रमण होता तो गर्मियों में आम की बाग़ पर l कभी तैराकी प्रतियोगिता होती कभी कबड्डी या गुल्ली डंडा l बीच रास्ते में एक गाँव पड़ता पुरहाई खेड़ा l वहाँ एक कुएं की जगत पर एक बाल्टी, रस्सी और एक अल्युमुनियम का लोटा हम बच्चों का और हर राहगीर का इंतज़ार करता l कितनी ही बार तो हम बंदरों ने बाल्टी सहित रस्सी, कभी - कभी तो लोटा भी कुँए में डाल दिया होगा l पर अगले दिन फिर से सारा सामान यथावत मिलता l कभी किसी तरह की कोई शिकायत नहीं होती l उस समय तो ज्यादा अहसास नहीं होता था पर आज सोचता हूँ तो लगता है कि यह एक बड़ा काम था l प्यास से बेहाल बच्चों को रोज पानी मुहैया कराना वाकई धैर्य और पुण्य का काम था l
कक्षा आठ का इम्तेहान फिर से बोर्ड इम्तेहान था l मैथ्स और संस्कृत में डिस्टिंक्शन लेकर उत्तीर्ण हुआ l उस मैथ्स में जिसने आगे चलकर मुझे नाकों चने चबवा दिए l हालांकि इसमें हमारे गुरुजनों की परीक्षा कक्ष में की गई मेहनत भी शामिल थी पर रिपोर्ट कार्ड में उसका कोई जिक्र नहीं था l
जारी है ...

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