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गांव का एक लड़का ( 13 )



1982 की गर्मियों का उत्तरार्ध रहा होगा जब रिज़ल्ट निकला l पास होने और शहर में रहने की खुशी के चलते रातों की उमस भी अपना प्रभाव छोड़ने में असमर्थ थी l दोपहर में गाँव के हर दुआरे के कई - कई चक्कर लगा कर अपने पास होने का ढिंढोरा पीट आये l दहिला पकड़ खेलते - खेलते जब जी ऊब जाता तो भरी दुपहरिया अमिया चुराकर तोड़ने का प्लान बनता, या ककरहा ताल में तैराकी प्रतियोगिता आयोजित होती l फिलवक्त घर में मार खाने की संभावना काफी कम थी l खेतों से आनाज और भूसा घर आ चुका था l आम और जामुन का मौसम जोरों पर था l लोगों को बारिश का इंतज़ार था पर मेरा मन शहर जाने के लिए हुलस रहा था l सपनों में रोज शहर दिखाई पड़ने लगा l बयालीस प्रतिशत अंकों के साथ हाईस्कूल पास करने के बाद भी मैं विज्ञान के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाने के लिए कृतसंकल्प था l आज आपको शायद लग रहा हो कि यह शेखचिल्ली ख़याल हमको उस समय क्यों कर आया? तो बात यह थी कि अपने समकालीन अल्पवयस्कों में केवल मैं ही पूरे गाँव से विज्ञान विषय लेकर हाईस्कूल पास हुआ था l सो, मेरा दिमाग सातवें आसमान पर था l दरअसल उस माहौल में अपने को गर्वित महसूस करने के लिए पहली बार में किसी का हाईस्कूल पास होना ही काफी था, और मैं तो साईंस लेकर पास हुआ था l थर्ड डिवीज़न से मेरे जोश में किसी प्रकार की कमी नहीं आनी थी, सो नहीं आई l
मार्कशीट के डुप्लीकेट प्रोफार्मा में हाथ से अंक भर कर उसे कॉलेज प्रिंसिपल या राजपत्रित अधिकारी से अटेस्ट करवाना होता था l पिताजी ने एक शाम को बताया कि तुम्हारी मार्कशीट की फोटोस्टेट करवा देता हूँ l मुझे लगा कोई बड़ी चीज़ होगी l मेरी फोटो के साथ मार्कशीट मढ़ी जायेगी l मैं सुबह - सुबह फोटोस्टेट करवाने के लिए नहा धोकर तैयार हुआ तो पिताजी ने कहा तुम यहीं भैंस चराओ अभी तुम्हारी जरूरत इसमें नहीं है केवल अपनी मार्कशीट दे दो l शाम को जब फोटोकॉपी मिली तो सारा माजरा समझ में आया l
विज्ञान विषय से आगे की पढ़ाई गाँव से संभव नहीं थी l लिहाजा एक रोज पिताजी के साथ नवाबों के शहर लखनऊ का रुख किया l पिताजी ने हमें हमारे विद्यालय के गेट तक छोड़ा और बच्चों के स्कूल के अन्दर कभी कदम न रखने की अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा की l श्री जय नरायण इंटर कॉलेज जो कान्यकुब्ज कॉलेज ( केकेसी ) के नाम से कभी विख्यात हुआ करता था, अब कुख्यात ज्यादा था l उस समय वहाँ दाखिले की कोई मारामारी नहीं थी l शहर के तमाम पढ़े लिखे बच्चों के लिए बहुत सारे स्कूल - कॉलेज उपलब्ध थे, मसलन, लामार्टीनियर, सेंट फ्रांसिस, महानगर बॉयज, काल्विन ताल्लुकेदार्स, क्रिश्चियन कॉलेज आदि - आदि l इन सारे स्कूलों के नाम दरअसल मुझे बहुत बाद में पता चले l उस समय तो बस एक ही नाम था ' केकेसी ' l उसी केकेसी के बाजू में एक और खानदानी विद्यालय था बप्पा श्रीनारायण वोकेशनल कॉलेज, कान्यकुब्ज वोकेशनल ( केकेवी ) l गलती से हाईस्कूल पास होने वाले बच्चों के लिए इनके दरवाजे खुले हुए थे l केकेवी का स्तर केकेसी से बेहतर माना जाता था सो हमने उधर आँख उठा कर भी नहीं देखा l
चारबाग रेलवे स्टेशन के बिलकुल करीब होने के कारण ज्यादातर शहर के आसपास के गाँवों के लड़के ही इन विद्यालय - द्वय में भर्ती होते l फर्स्ट क्लास - सेकेण्ड क्लास केकेवी में और सेकेण्ड क्लास - थर्ड क्लास केकेसी में l इस लिहाज से देखा जाय तो हम केकेसी के लिए ही बने थे l एडमीशन फ़ार्म भरते हुए एक बोदिल से दिख रहे लड़के के होशियार पिता ने मुझे सुझाव दिया कि बायो नहीं मैथ्स लो, वरना आगे बहुत पछताओगे l मैथ्स में आगे बहुत सारे रास्ते खुल जायेंगे, बायोलोजी की गली आगे बेहद संकरी है, तुम अपने लिए बंद ही समझो l मैथ्स का नाम सुनते ही मेरी देह में झुरझुरी सी उठी और विषयों के कॉलम में पहला नाम तुरंत बायोलोजी लिख कर उस संकरी गली में प्रवेश कर गया l हाईस्कूल में मैथमेटिक्स से कैसे घमासान हुआ यह तो मेरा दिल ही जानता है l आज भी सोच लेता हूँ तो पसीने - पसीने हो जाता हूँ l
जैसे उस जमाने में अमूमन पिताजी लोग जब खुश हो जाते आपकी पढ़ाई लिखाई पर तो कहते कि, खूब मन लगाकर पढो, तुम्हे डॉक्टर या इंजीनीयर बनना है l सो, मेरे पिताजी ने भी एक बार सुबह - सुबह आँगन में यही वाक्य दोहराए, जिसका कोई मतलब न मेरे लिए था न उनके लिए l
केकेसी में दाखिला हो चुका था और मुझे पढ़ाई के लिए अब शहर रवाना होना था l यूँ तो शहर की दूरी हमारे गाँव से तकरीबन तीस एक किलोमीटर ही थी पर रोज आना जाना संभव नहीं था l इसका मुख्य कारण था रेलवे स्टेशन की गाँव से दूरी l यह दूरी करीब छः किलोमीटर की थी l सड़क भी गाँव से इतनी ही दूरी पर l सो, यह तय हुआ कि शहर में रहेंगे और सप्ताहांत गाँव में गुजरेगा l पढ़ाई भी चालू रहेगी और गाँव में खेती का काम भी होता रहेगा l आगे कई सालों तक यही सिलसिला चला l शनिवार को साइकिल से गाँव आ जाते और सोमवार की सुबह आटा - दाल और ढेर सारे पराठों की पोटली लेकर शहर पहुँच जाते l
- जारी है ......

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