प्यासा रहा शहर
बादल गरजे
बिजली चमकी
सब कुछ हुआ मगर
जाने पर क्या हुआ
कि फिर भी प्यासा रहा शहर
बिजली चमकी
सब कुछ हुआ मगर
जाने पर क्या हुआ
कि फिर भी प्यासा रहा शहर
लोग कह रहे
खूब झमाझम
पानी भी बरसा
इन्द्रदेव ने पता नहीं
लेकिन कैसे परसा
खूब झमाझम
पानी भी बरसा
इन्द्रदेव ने पता नहीं
लेकिन कैसे परसा
सागर को उलीच डाला सब
जल अँजुरी भर - भर
जल अँजुरी भर - भर
पुरवाई तो चली
मगर
बस दर्द उभार गई
पछुआ सीने में पहले ही
डंक उतार गई
मगर
बस दर्द उभार गई
पछुआ सीने में पहले ही
डंक उतार गई
हलक सुखाता हुआ
देस दिख रहा पसीना तर
देस दिख रहा पसीना तर
कुछ बैठे
ठंडी फुहार में
राग मल्हार सुनाएँ
बाकी सब बबूल के नीचे
बैठे बिरहा गाएँ
ठंडी फुहार में
राग मल्हार सुनाएँ
बाकी सब बबूल के नीचे
बैठे बिरहा गाएँ
हम भी रहे ढूँढते
जीवन में काफ़िया, बहर
जीवन में काफ़िया, बहर
- प्रदीप शुक्ल
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