चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 2 )
" साढ़े नौ का टाइम लिखा रखा है, दस बजने वाले हैं अभी तक डॉ नहीं बैठे हैं. क्या तमाशा बना रखा है," शगुन के पापा गुस्से में रिसेप्शनिष्ट लड़की को हडकाए जा रहे हैं.
भैया, आने वाले हैं बस डॉ, तब तक आप बच्चे को पानी से स्पंज करा दीजिए. सिस्टर जी बच्चे का बुखार नाप कर स्पन्जिंग करवाइए, गुनगुने पानी से.
शगुन की मम्मी शगुन के माथे पर पट्टियां तो रख सकती हैं परन्तु बुखार में बच्चे को नहलाना ... न बाबा न. निमोनिया जकड़ लेगी सीने को. इनका बच्चा तो है नहीं, जो मन में आया बोल दिया. मम्मी जी धीरे धीरे भुनभुना रही हैं. चादर से और लपेट दिया बच्चे को.
" डॉ साब साढ़े दस बजे आएंगे " रिसेप्शनिष्ट ने फोन रखते हुए चिल्लाकर कहा. ताकि सभी सुन ले. अभी वो बाहर गए हुए हैं.
चलो कहीं और दिखा लेते हैं, डॉ तो अभी यहाँ आए नहीं. पिता जी के प्रस्ताव को माता जी ने धीरे से ठुकरा दिया, " नहीं. शगुन की दवा इन्ही डॉ की सूट करती है."
मैं तो बच्चों का हॉस्पिटल हूँ, मुझे यह बात पता है कि रिसेप्शनिष्ट झूठ बोल रही है. डॉ, मेरे कैम्पस में घर पर ही हैं, और सो रहे हैं. पर इस झूठ के अलावा मैं यह सच्चाई भी जानता हूँ कि डेढ़ बजे जो बच्चा बुरी हालत में आया था और जो अभी वेंटिलेटर पर है, उसी में डॉ साब जूझे रहे थे सुबह छ: बजे तक.
अभी यह बात पता चल जाए कि डॉ घर में सो रहा है तो ये शगुन के पापा हंगामा कर देंगे. लेकिन डॉ को भी ज़िंदा रहने के लिए सोना पड़ेगा. नहीं तो उसे भी भर्ती कराना पड़ेगा अस्पताल में. यह समझने के लिए कोई पापा - मम्मी तैयार नहीं हैं. उन्हें तो लगता है कि मेरा तो बच्चा बीमार है, डॉ सो कैसे सकता है.
हलचल बढ़ गई है. पहला नंबर शगुन का ही है. जी, बताइए? डॉ ने मेज के कागज़ संभालते हुए प्रश्न पूछा. डाक्साब मेरी बेटी को कल सुबह से बुखार हुआ है, उतर ही नहीं रहा है. पूरी रात इसने सोने नहीं दिया.
तो आपको बुखार की दवा देनी चाहिए थी.
जी दिया न. तीन बार दिया, पर नहीं उतरा. मम्मी ने परेशानी जाहिर करते हुए अपनी बात कही.
हूँ, आइए बैठिये. अरे! आपने लपेट क्यों रखा है बच्चे को? खोलिए इसे. जब भी कभी तेज बुखार हो तो कपड़े कम करने होंगे, जाड़े में भी. नहीं तो बुखार और बढ़ जाएगा. पिछली बार आपको बताया तो था.
" इनकी दादी नहीं मानती," मम्मी ने पापा की तरफ घूरते हुए कहा.
और ये पूरे शरीर और बालों पर तेल क्यों थोपा हुआ है? डॉ ने लगभग चिल्लाते हुए पूछा. फिर धीमे स्वर में खुद ही कहा " अच्छा ये भी दादी जी ने लगाया होगा " खैर, कोई बात नहीं अगली बार दादी को भी लाइयेगा साथ में. उनको समझाने की कोशिश करूंगा. पर मुश्किल काम है. मन ही मन डॉ बोला. जब डॉ के बच्चों की दादी ही नहीं मानती तो मरीज की दादी क्या मानेगी.
हाँ, तो बताइये बुखार के अलावा क्या क्या परेशानी है शगुन को?
थोड़ा जुकाम है कल से ही और आज सुबह से थोड़ी खांसी आ रही है. पर सबसे ज्यादा परेशानी बुखार से ही है.
जरा मुँह खोल कर दिखाओ बेटा। हॉ, बड़ा सा आ बोलो -- आ -- आ, गुड। अब जरा जोर से सॉस लो, छोडो़ बस, हो गया।
ठीक है सबसे पहले तो इसका तेल पोंछिए, ये दवाएं लिख रहा हूँ इनको शुरू कीजिए.
डॉ ने पर्चे पर पहली दवा ही लिखी थी कि पिताजी ने टोंका. अरे डाक्साब ये पैरासिटामाल तो मैं कल से दे रहा हूँ. इससे कुछ नहीं हो रहा. रात भर एक एक चम्मच तीन बार दवा दे चुका हूँ.
कौन सी?
जो आपने पिछली बार दी थी इसके छोटे भाई के लिए. अभी सात दिन ही हुए हैं खुले हुए.
डॉ ने पर्चा लिखना बंद कर बोलना शुरू किया. देखिए बुखार की दवा आपको छ: घंटे से पहले नहीं रिपीट करना है.
लेकिन बुखार उतर ही नहीं रहा था तो क्या करते.
देखिए दो मिनट मौन रह कर मेरा प्रवचन सुनिए. बस दो मिनट. मम्मी को बीच में रोकते हुए डॉ ने कहा. आपके लगभग सभी सवालों के जवाब इस प्रवचन में मिल जाएंगे. जो प्रश्न बचे रहेंगे उनका जवाब मैं फिर दे दूंगा. एक आदमी बोले और एक सुने, तो कुछ बात बनेगी. आपका और हमारा दोनों लोगों का समय बचेगा. देखिए आपकी बातें मैंने ध्यान से सुनीं अब आप सुनिए.
प्रवचन शुरू हुआ
देखिए, जब भी बुखार हो तो आपको थर्मामीटर से बुखार नापना है. यह सबसे जरूरी काम है. आप हाथ की हथेली और सिर छूकर बुखार कितना है, इसका अनुमान नहीं लगा सकते हैं. अभी आप एक थर्मामीटर खरीद लीजिए और बाहर सिस्टर से समझ लीजिए कि बुखार कैसे नापते हैं. अगर आपके पास पारे वाला थर्मामीटर है तो उसे कम से कम तीन मिनट तक लगाए रखना है, और हाँ लगाने से पहले झटक कर पारे के कॉलम को नीचे करना होगा. वैसे इलेक्ट्रोनिक थर्मामीटर भी ठीक रीडिंग देते हैं, आसान भी है और पर्यावरण के अनुकूल भी.
हाँ, तो आपने बुखार नाप लिया. फिर आपको ये दवा देनी है अगर बगल में तापमान 99 डिग्री F से ज्यादा रहे तो. शगुन का वजन है 16 किलो, तो ये 250 mg / 5 ml वाली पैरासिटामाल आपको एक बार में 5 ml देनी है, बोतल के ऊपर लगे मीज़रिंग कैप से नाप कर, चम्मच से नाप कर नहीं. फिर कितना भी बुखार हो आपको छ: घंटे से पहले दवा रिपीट नहीं करनी है. आप बहुत जरूरत होने पर चार घंटे के बाद भी दवा दे सकती हैं, पर कुल चार खुराकों से ज्यादा चौबीस घंटे में बिलकुल नहीं. दवा देने पर भी बुखार न उतरे या जल्दी आ जाए तो नार्मल / ल्युक वार्म ( हल्का गुनगुना ) वाटर का स्तेमाल करें. मतलब पूरे शरीर को पोछें, या नहला दें. यह आप किसी भी मौसम में कर सकते हैं, रात में भी. कोई नुक्सान नहीं होगा.
बाकी जो दवाएं लिखी हैं उन्हें कैसे देना है, आपको फार्मासिस्ट समझा देगा. खाने में तरल पदार्थ ज्यादा दें. .... अब बताइये? कोई और प्रश्न हों तो. डॉ. ने प्रवचन एक मिनट में ही पूरा करते हुए पूछा. तब तक मम्मी के सारे प्रश्न दिमाग से उड़ चुके थे.
डॉ साब कल इसका टेस्ट है स्कूल जा सकती है?
अभी उसे ठीक हो जाने दीजिए, टेस्ट तो ज़िन्दगी भर होते ही रहेंगे. मम्मी ने शगुन की तरफ देखा, सुन लो फिर कल जिद मत करना.
" आपने एंटीबायटिक लिख दी? इसका बुखार उसके बिना उतरता नहीं है." काफी देर से चुप बैठे पिता ने पूछा. नहीं अभी तो वाइरल लग रहा है. एंटीबायटिक की जरूरत नहीं. दो दिन बाद आइयेगा तब देखेंगे. हाँ, बीच में अगर बच्चा सुस्त रहे, बुखार उतरने के बाद भी खेले नहीं या कुछ भी नहीं खाए पिए तो शाम को ही दिखाना.
डॉ ने अगले पेशेंट के लिए घंटी बजा दी. चलते चलते आखिरी सवाल मम्मी की तरफ से आया. खाने में डाक्साब क्या खिलाएंगे?
डॉ ने रटा रटाया जवाब दिया, सबकुछ. केवल घर का बना हुआ, बाजार से कुछ भी नहीं.
चावल खिला सकते हैं क्या?
हाँ.
और दही?
सब कुछ का मतलब सब कुछ. बस पानी ज्यादा पिलाना है, खाना कम भी खाए तो कोई बात नहीं.
केला खिला सकते हैं डाक्साब?
वो सब कुछ जो घर में बन सके और जो आप खुद खा सकें, डॉ ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा.
मम्मी - पापा समझ गए थे कि चैंबर से बाहर जाने का वक्त है ये.
कितना जल्दी मचाता है ये डॉ. अपनी ही बोले जाता है मेरी कुछ सुनता ही नहीं, भुनभुनाते हुए फार्मेसी के सामने शगुन की मम्मी खडी हुई हैं.
मेरा क्या, मैं तो रोज शाम से सुबह तक डॉ का ये प्रवचन सुनता हूँ, और मम्मियों का बडबडाना भी. मैं तो बच्चों का अस्पताल हूँ, आपको आगे भी कहानियां सुनाता रहूँगा
- प्रदीप शुक्ल
( क्रमशः जारी )
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