चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 5 )
रविवार का दिन ज़रा देर से शुरू होकर देर तक चलता है हमारे यहाँ. भीड़ भाड़ कुछ ज्यादा ही रहती है, और दिनों की अपेक्षा. इसका एक कारण डॉ साहब का शाम को न मिलना भी है. लोगों का अवकाश भी रहता है अपने दफ्तरों से. सो, आज रविवार है और दिव्यांश के पापा इसी भीड़ में रिसेप्शन पर भिड़े पड़े हैं.
" हमको दिखाना नहीं है, बस बात करनी है डॉ से. लूट मचा रखी है. ये देखो सब टीके लगवाए हैं हमने फिर मेरे बच्चे को टाइफाइड कैसे हो गया? सारे डाक्टरों का ये लूटने का जरिया है. अरे भाई जब टीके काम ही नहीं करते हैं तो लगाते क्यों हो? पैसे कमाने के लिए? "
हंगामा बढ़ता देख डॉ साहब ने पापा को चैंबर में बुला लिया है.
आपको हमसे बात करनी थी?
हाँ
तो ठीक है, पहले आप बैठ जाइए
डॉ ने स्टूल पर बैठे हुए बच्चे को पर्चा लिख कर विदा किया फिर दिव्यांश के पापा की तरफ मुखातिब हुए
डॉ ने स्टूल पर बैठे हुए बच्चे को पर्चा लिख कर विदा किया फिर दिव्यांश के पापा की तरफ मुखातिब हुए
जी, बताइए?
बताना क्या, आपने सारे वैक्सीन हमारे बच्चे को लगवाए. आपने जो जो कहे हमने सब लगवाए फिर भी हमारा बच्चा जब तब बीमार रहता है. देखिए फिर उसको टाइफाइड हो गया है. आपने पिछले साल ही इसका इंजेक्शन लगाया था. आखिर टाइफाइड का वैक्सीन लगवाने के बाद फिर उसे बीमारी कैसे हो गई? फायदा क्या हुआ पैसे और समय खर्च करने का?
डॉ ने ध्यानपूर्वक पापा की बात सुनते हुए हुंकारी भरी. हूँ ....
आप कुछ और कहना चाहते हैं तो कहें, फिर मैं अपनी बात शुरू करूं.
" और क्या कहना है हमे. बस आगे मैं कोई टीका वीका नहीं लगवाऊंगा." पापा जी कुर्सी से उठते हुए बोले.
" अरे! मेरी बात भी तो सुनिए, आप बैठ जाइए " डॉ साहब की मुखमुद्रा बता रही है कि एक लंबा भाषण शुरू होने वाला है.
आपके बच्चे को कब से बुखार आ रहा है?
तीन दिन से
हूँ ...... किसी डॉ को दिखाया आपने?
और नहीं क्या. डॉ ने ही तो टेस्ट करके बताया है कि टाइफाइड है
अच्छा ... कौन सा टेस्ट कराया?
" विडाल टेस्ट कराया है. ये देखिए रिपोर्ट "
रिपोर्ट पर नजर डाल कर उसे मोड़कर मेज पर रखते हुए डॉ ने कहा -
" जरूरी नहीं कि आपके बच्चे को टाइफाइड ही हुआ हो. यह रिपोर्ट अभी टाइफाइड के बारे में कुछ नहीं बता पाएगी. सात दिन के बुखार के बाद ही यह रिपोर्ट पाजिटिव आती है. मुझे नहीं पता आपके डॉ ने इसे क्यों करवाया. आपके बच्चे को बुखार के अलावा भी कोई परेशानी है? "
" हाँ, चार दिन से जुकाम था और दो दिन से हल्की खांसी भी आ रही है, " दिव्यांशु के पापा थोड़ा खीजते हुए से बोले.
" तो फिर बहुत कम संभावना है कि आपके बच्चे को टाइफाइड बुखार हो." डॉ के चेहरे पर थोड़ा इत्मीनान की झलक है.
" पर आपके बच्चे को टाइफाइड हो सकता है, इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. ऐसा तब भी हो सकता है जब आपके बच्चे को इसकी वैक्सीन लगाई जा चुकी है. देखिए मेडिकल साइंस में कुछ भी सौ प्रतिशत नहीं होता है." डॉ का अंदाज़ अब थोड़ा दार्शनिक हो चला है.
" इस बात को अगर हम इस तरह समझें कि हेलमेट लगाने वाले सभी लोगों को सर कि चोट से बचाया जा सकता है, ऐसा संभव नहीं. पर हम जानते हैं कि ज्यादातर दुर्घटनाओं में हेलमेट ने बहुतों की जान बचाई है." थोड़ा विराम लेते हुए डॉ ने प्रवचन जारी रखे.
" देखिए, कोई भी टीका किसी ख़ास बीमारी से लड़ने के लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है. कभी कभी किन्ही कारणों से टीका अपना काम पूरी तरह से नहीं कर पाते या रोग जीवाणुओं की संख्या प्रतिरोध क्षमता से बहुत अधिक होती है, तो बीमारी हो जाती है. किसी को कोई बीमारी होना एक जटिल प्रक्रिया है इसे बहुत सरलीकृत करके समझाया नहीं किया जा सकता है.
जो बीमारियाँ इन्फेक्शन की वजह से होती हैं, केवल उन्ही बीमारियों के खिलाफ टीके बनाए जा सकते हैं. आज हमने स्मालपॉक्स ( बड़ी माता ) जैसी खतरनाक बीमारियों पर पूरी तरह काबू पा लिया है, तो इसका एक मात्र कारण है इसका कारगर टीकाकरण. पोलियो को भी हम पूरी दुनिया से बस खत्म करने वाले ही हैं. इसका कारण भी टीकाकरण ही है.
हाँ, बाज़ दफे टीका उतना कारगर नहीं रहता पर हमें यह समझना पड़ेगा कि टीका हमेशा किसी ख़ास जीवाणु ( बैक्टीरिया ) या विषाणु ( वाइरस ) के खिलाफ होता है, न कि किसी बीमारी के खिलाफ. मतलब यह कि यदि आप अपने बच्चे को रोटा वाइरस डायरिया का टीका लगवाते हैं तो केवल रोटा वाइरस से होने वाली डायरिया से बचत संभव है, वह भी केवल पचास से साठ प्रतिशत ही. डायरिया बहुत सारे जीवाणुओं और विषाणुओं से होती है. जिनके खिलाफ अभी टीके नहीं बन पाए हैं. आप कहेंगे कि फिर क्या फायदा हुआ पैसे फूंकने का? तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रोटा वाइरस डायरिया से पूरे भारत में रोज हजारों मौतें होती हैं और इसका टीका लगाने से ( जो सौ प्रतिशत कारगर नहीं है ) हम लाखों बच्चों की जिन्दगी बचा सकते हैं. "
प्रवचन ख़त्म करते हुए डॉ ने एक लम्बी सांस ली. दिव्यांश के पापा को आधी बातें तो बिलकुल भी समझ नहीं आईं, परन्तु वह डॉ की बातों पर अब सर हिला रहे हैं. डॉ को भी लगा कि उन्होंने मैदान मार लिया है. पापा के चेहरे से अब कठोरता और अविश्वास की परछाइयां गायब हो गई हैं.
डॉ ने घंटी बजाकर इस बात का इशारा कर दिया कि अब दूसरा मरीज देखने का वक्त हो गया है. जाते - जाते प्रवचन का उपसंहार ये रहा -
" लब्बोलुआब यह कि आपके बच्चे को टीका लगने के बाद भी बीमारी संभव है. जैसे हेलमेट लगाने के बावजूद सर में चोट. हाँ, पर संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं. इसलिए मेरा तो यही सुझाव रहेगा आपको कि अपने बच्चे को सभी टीके लगवाइए, साफ़ सफाई का ध्यान रखिए, अपना घर, अपना शहर और अपना देश साफ रखिए ताकि बीमारियाँ कम हों. और हाँ हेलमेट लगाना भी बिलकुल मत भूलिएगा, आपका सिर सुरक्षित रहेगा. और हाँ, एक बात और, अपने बच्चे को किसी प्रशिक्षित डॉ को दिखाइए, किसी झोलाछाप डॉ को नहीं. "
" अरे नहीं डॉ साब हम तो कभी अपने बच्चे को कहीं और दिखाते ही नहीं. जब से पैदा हुआ सिर्फ आपको ही दिखाते हैं " बोलते हुए पापा बिना रिसेप्शन की तरफ देखे अस्पताल से बाहर जा रहे हैं.
अब मैं थक गया हूँ आप लोग भी अपना अपना काम कीजिए, कब तक अस्पताल - अस्पताल खेलते रहेंगे. हमारे यहाँ फिर कुछ होगा बताने लायक तो फिर बताएंगे ... नमस्कार.
- प्रदीप शुक्ल
( क्रमशः जारी )
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