Skip to main content

गांव का एक लड़का ( 8 )



गेरू से गाँव - गाँव में स्कूलों और घरों की दीवारों पर एक इबारत लिखी रहती थी जो अभी तक ज्यों का त्यों याद है l " चेचक ( बड़ी माता ) की प्रथम सूचना देने वाले को को रु. १००० का ईनाम दिया जाएगा "
मैं सोचता कि चेचक की बड़ी अम्मा कहीं खो गई हैं जिनके लिए ये इश्तेहार है l यह भी सोचता कि चेचक जरूर कोई बड़ा आदमी होगा और अपनी अम्मा को खूब प्यार करता होगा l इसका खुलासा जल्दी ही हो गया जब कंधे पर बक्से लटकाए एक टीम हमारे गाँव आई और सारे बच्चे इकट्ठा किये जाने लगे l इंजेक्शन का नाम सुनकर हम सब भागने लगे l हम तो भागकर अँधेरिया बाग़ में घुस गए l यह आम और जामुन की बाग़ इतनी सघन थी कि दिन में भी खूब अन्धेरा रहता l जाने को तो हम वहाँ चले गए पर वहाँ भांति - भांति की खतरनाक आवाजों ने कुछ मिनटों में ही बाहर निकलने को मजबूर कर दिया l इंजेक्शन का डर उसके आगे काफूर हो गया और हम भागकर भीड़ में शामिल हो गए l कुछ तकली जैसा हाथ पर घुमाने और दर्द का याद है l फिर बाद में दो पैसे के सिक्के के बराबर निशान बन गया जो आज तक मौजूद है l अच्छा हुआ इसी निशान से काम चल गया और ओम पुरी जी का चेहरा पाने से वंचित रह गए l

हमारी पीढी ने जब से होश सम्भाला तो हैजा, ताऊन ( प्लेग ) और चेचक जैसी महामारियों के कारतूश दग कर समाप्तप्राय से हो गए थे l बाबा बताते कि उनके बचपन में ताऊन का बड़ा जोर था l जैसे ही चूहे मरने शुरू होते पूरा का पूरा गाँव खाली हो जाता l सब अपना बिस्तर और बर्तन लेकर गाँव से दूर ताल पर बसेरा करते l ऐसे ही बच्चीले मन में विचार आता कि कम से एक बार फिर से कुछ ऐसा हो कि हम सब ताल पर टेंट लगा कर रहें l पर ये हो न सका l भगवान् ने यह खतरनाक प्रार्थना स्वीकार नहीं की l

गाँव में एक काम जो ज्यादातर बच्चों के सिर पर ही रहता वह था गेहूं पिसवाना l कहते तो थे आटा पिसवाना, पर पिसता गेहूं ही था साथ में घुन भी और बच्चे भी l हमारे गाँव में कभी चक्की नहीं रही, कोई कायदे की दूकान भी l तथाकथित ऊंची जाति के रहवासियों वाला जंगल के बीच बसा बिलकुल छोटा गाँव होने के नाते सामुदायिक सेवाएँ गाँव से काफी दूरी पर थीं l मसलन स्कूल. बाजार, कंट्रोल की दूकान, किरोसिन की दूकान, भांग का ठेका, परचून की दूकान, चक्की, मेला, दंगल आदि इत्यादि l इसका सारा खामियाजा हम बच्चों को भुगतना पड़ता l हर काम के लिए बच्चे ही दौडाए जाते l उन्ही में एक काम था आटा पिसवाना l वैसे तो जब मेरी उमर बहुत छोटी थी तब अम्मा, चाची लोग बाजरा हाथ चक्की पर ही पीसती थीं l घर्र - घर्र चक्की की आवाज में अम्मा की गोद में सिर रख कर सोने में जो आनंद आता था उसकी तो बस यादें ही शेष हैं l उस मधुर संगीत के साथ लय में झूलती माँ की गोद, बस स्वर्ग ही था l

खैर, जब हम बड़े हुए तो बाजरा धीरे - धीरे ख़त्म हुआ और उसकी जगह ली हरित क्रान्ति के आर आर इक्कीस गेहूं ने l मेंड़ और खेत मंझाते हुए चक्की लगभग दो किलोमीटर पर थी l पच्चीस किलो के शरीर के लिए बीस किलो की बोरी बहुत भारी होती l अक्सर एक गुईयाँ भी साथ होता पर उसके सिर पर भी वही बोझ होता l लौटते समय ताजा पिसा हुआ आटा काफी गरम होता l सिर पर आग की गठरी रख कर घर लाख कोस हो जाता l मजबूरी यह होती कि सिर से बोरी उतार कर अगर थोड़ा सुस्ताने के चक्कर में पड़ जाएँ तो दुबारा वजनी बोरी सिर पर कैसे जाए l कभी - कभी जब गुईयाँ बलिष्ठ होता तो वह मेरी बोरी उठवा देता फिर अपनी अकेले ही उठा लेता l पर ऐसा कम ही होता l दूसरा विकल्प होता कि एक बन्दे को बोरी उठवा दी जाए फिर वही बन्दा घुटनों से थोड़ा निहुर कर एक हाथ आप की बोरी में लगा दे और बोरी आपके सिर पर भी विराजमान हो जाए l आखिरी विकल्प यह था कि किसी पेड़ की सहायता ली जाए l उसके तने के सहारे रोल करते हुए बोरी को सिर की ऊँचाई तक चढ़ाया जाए l जब सिर पर गरमी असहनीय हो जाती, बोझ और गरमी से उबकाई आने लगती तो थोड़ी देर उसे कन्धों पर भी खिसका लेते पर समस्या वही थी कि वापस सिर पर कैसे जाए l राम - राम करते घर मिलता l गर्दन की मांसपेशिया बुरी तरह अकड़ जातीं l लेकिन इससे बचने का कोई उपाय न था l

बाद के दिनों में साईकिल ने थोड़ा जीना आसान कर दिया पर उसकी अपनी समस्याएं थीं l बरसात के दिनों में पीछे आटे की बोरी बाँध कर बेहद पतली मेड़ों पर साईकिल चलाना, खासकर तीखे मोड़ पर बिना गड्ढे में गिरे हुए निकल जाना बहुत बड़ी कलाकारी होती थी l जिस के खेत की मेड़ों पर रास्ता होता वह कुछ ज्यादा ही मेड़ काटता l दोनों तरफ से मेड़ इतनी पतली हो जाती कि बिलकुल नहन्नी ( नाखून काटने का यंत्र ) हो जाती l उस पर खेत वाला बुआई के बाद कोनों में जहां मेड़ों से उतरने के चांसेज ज्यादा रहते, बबूल कि डाल काट कर रख देता l सोने पर सुहागा तब होता जब ठीक मोड़ के पहले आपका तम्बू जैसे लहराता हुए पैजामे की फरफराती मोहरी खूब ग्रीस पिलाई चेन को अचानक पसंद आ जाए l फिर आपको ब्रह्मा भी नहीं बचा सकते l

जारी है ....

Comments

Popular posts from this blog

चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल : कुछ नोट्स ( 5 ) रविवार का दिन ज़रा देर से शुरू होकर देर तक चलता है हमारे यहाँ. भीड़ भाड़ कुछ ज्यादा ही रहती है, और दिनों की अपेक्षा. इसका एक कारण डॉ साहब का शाम को न मिलना भी है. लोगों का अवकाश भी रहता है अपने दफ्तरों से. सो, आज रविवार है और दिव्यांश के पापा इसी भीड़ में रिसेप्शन पर भिड़े पड़े हैं. " हमको दिखाना नहीं है, बस बात करनी है डॉ से. लूट मचा रखी है. ये देखो सब टीके लगवाए हैं हमने फिर मेरे बच्चे को टाइफाइड कैसे हो गया? सारे डाक्टरों का ये लूटने का जरिया है. अरे भाई जब टीके काम ही नहीं करते हैं तो लगाते क्यों हो? पैसे कमाने के लिए? " हंगामा बढ़ता देख डॉ साहब ने पापा को चैंबर में बुला लिया है. आपको हमसे बात करनी थी? हाँ तो ठीक है, पहले आप बैठ जाइए डॉ ने स्टूल पर बैठे हुए बच्चे को पर्चा लिख कर विदा किया फिर दिव्यांश के पापा की तरफ मुखातिब हुए जी, बताइए? बताना क्या, आपने सारे वैक्सीन हमारे बच्चे को लगवाए. आपने जो जो कहे हमने सब लगवाए फिर भी हमारा बच्चा जब तब बीमार रहता है. देखिए फिर उसको टाइफाइड हो गया है. आपने पिछले साल ही इसका इंजेक्
मैं तो बचपन हूँ साथी मैं तो बचपन हूँ साथी मुझको दुख से क्या लेना दूब हमारी राहों में खुद मखमल सी बिछ जाती नीले पंखों वाली तितली मुझको पास बुलाती रोज रात में साथ साथ चलती तारों की सेना बाग़ बगीचे सुबह दोपहर मेरी राह निहारें रात मुझे थपकी देती हैं कमरे की दीवारें जेबें मुझे खिलाती रहतीं दिन भर चना चबेना बारिश की बूंदें मुझको खिड़की के पार बुलाएं मुझे उड़ाकर अगले पल बाहर ले चली हवाएं चाह रहा मन दुनिया में चटकीले रँग भर देना - प्रदीप शुक्ल
# किस्सा_किस्सा_लोककथाएं #1 शेषनाग पर लेटे हुए विष्णु भगवान लक्ष्मी जी से बतिया रहे थे। दीवाली का भोर था सो लक्ष्मी जी काफी थकी हुई लग रही थीं, परंतु अंदर से प्रसन्न भी। लक्ष्मी जी ने मुस्कुरा कर कहा, ' हे देव, कल देखा आपने, नीचे मृत्युलोक में कितना लोग मुझे चाहते हैं। विष्णु भगवान कुछ अनमने से दिखे। बोले, देखिये लक्ष्मी जी, दीवाली के दिन तो बात ठीक है, लोग आपकी पूजा करते हैं, आपका स्वागत करते हैं, बाकी के दिनों में भगवान, भगवान होता है। हो सकता है कि कुछ दरिद्र और  अशिक्षित लोग आप की आकांक्षा रखते हो आपका स्वागत करते हों और आप को बड़ा मानते हो, परंतु शिक्षित वर्ग और योग्य लोग भगवान को लक्ष्मी से ऊपर रखते हैं। लक्ष्मी जी ने मुस्कुरा कर कहा नाथ, ऐसा नहीं है। बाकी दिनों में भी मृत्यलोक के प्राणी मुझे ही ज्यादा पसंद करते हैं। और पढ़े-लिखे योग्य लोगों की तो आप बात ही मत करिए। बात विष्णु भगवान को खल गई। बोले, " प्रिये, आइए चलते हैं इस बात की परीक्षा ले ली जाए। हालांकि लक्ष्मी जी दीवाली में थक कर चूर हो चुकी थीं पर यह मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहतीं थीं। देवलोक से भूलोक