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लघुकथा - " वह आयेंगे "



बिकास ... ओ ... बिका sssss स !!!!
अस्सी घाट पर एक जर्जर मकान में झिंगोला खाट पर लेटी हुई बुढ़िया ने कराहते हुए आवाज लगाई l विकास ने उसकी आवाज सुनकर भी अनसुनी कर दी l
" ई मरे फोन में दिन भर पता नहीं क्या बीनता रहता है ये लड़का? " बुढ़िया इतने धीरे से भुनभुनाई कि विकास तक आवाज नहीं पहुंची l
" ए बेटा ज़रा अपने काका को चिट्ठी लिख दे, देख जायँ l पता नहीं फिर मौक़ा मिले न मिले l " बुढ़िया छलक आए आँसुओं को मैली धोती के कोने से साफ़ करती हुई भर्राए गले से बोली l
" नहीं आयेंगे वह अब दादी l जब तुम्हारे सगे तुम्हे देखने नहीं आते तो वह क्यों आयें? विकास स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए बुदबुदाया " चार साल पहले भावावेश में मुझे गोद में उठा लिया था एक परदेसी व्यापारी ने और इन्हें माँ कह दिया, तबसे उन्हें सगे बेटे से ज्यादा समझती हैं "
क्या कहे बिकास?
कुछ नहीं दादी, लिख दे रहे हैं फिर से l विकास ने ट्विटर पर एक सौ चालीसवीं बार कॉपी पेस्ट कर टैग किया -
" काका हो सके तो आ जाइए आपको गंगा दादी याद कर रही हैं "
अप्रत्याशित!!!! कुछ ही पलों में जवाब आ गया
" विकास बेटा मैं दिन रात तुम लोगों के बारे में ही सोचता रहता हूँ l बहुत हो चुका, आखिर में तो बनारस ही आना है l बस अगले साल मैं आ रहा हूँ l "
विकास फटी आँखें और फटा अंगौछा लिए दौड़ता हुआ चिल्लाया -
" दादी, वह आयेंगे .... वह आयेंगे '
- प्रदीप शुक्ल

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