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सॉरी, हरक्युलिस



" बंद ट्रक में सोते समय छ: लोगों की दम घुटने से मौत " बीती रात दिल्ली में ...... दादा जी सुबह का अखबार जोर जोर से पढ़ रहे थे l लगभग चीखते हुए मयंक बोला, " दादा जी प्लीज चुप हो जाइए और पेपर अपने मन में पढ़िए l मेरा आज साईंस का टेस्ट है, मैं अपना पाठ याद कर रहा हूँ l प्लीज ... प्लीज दादाजी l " दादाजी कुछ कहते कहते रुक गए, और चश्मा ठीक कर फिर से पेपर बिना आवाज़ के पढने लगे l
मयंक अपना पाठ याद करने लगा l ... एक बड़े जार में, हरे पौधे के साथ एक चूहे को बंद कर दिया गया l एक दूसरे जार में पौधे और चूहे के साथ जलती हुई मोमबत्ती भी रख दी गई l कुछ समय बाद जिस जार में जलती हुई मोमबत्ती थी उसके अन्दर रखे हुए चूहे की मृत्यु हो गई l जार के अन्दर की ऑक्सीजन को मोमबत्ती ने जलाकर कार्बनडाईऑक्साइडऔर कार्बन मोनो ऑक्साइड में बदल दिया l मतलब ऑक्सीजन की कमी से चूहे की मौत हो गई ..... अपनी किताब बैग में रखते हुए मयंक ने दादाजी के पास आकर खूब प्यार किया और चिल्लाने के लिए माफी भी मांगी l दादाजी ने मुस्कुराकर उसे स्कूल के लिए बाहर तक छोड़ा l " दादाजी शाम को मेरा हरक्युलिस लाना मत भूलना " मयंक ने साइकिल पर चढ़ते चढ़ते दादाजी से चिल्लाकर कहा l दादा हँसते हुए और हाथ हिलाते हुए बोले, " ठीक है - ठीक है ले आऊँगा l हरक्युलिस, यानी इस घर में आने वाला नया मेहमान, एक छोटा पिल्ला l
स्कूल से लौटने के बाद मयंक का पूरा समय बस हरक्युलिस के साथ ही गुजरा l दस दिन का हरक्युलिस अपनी माँ से बिछड़ने के बाद से बस उसे ही ढूंढ रहा था l बहुत अच्छे से वह चल भी नहीं पा रहा था l थोड़ सा दूध पीकर वह बस कूँ .. कूँ चिल्लाए जा रहा था l मयंक ने एक प्लेट में अपनी कटोरी से निकाल कर थोड़ा सा हलवा उसे दिया पर उसने उधर देखा भी नहीं l गोद में आकर वह थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता, फिर वही कूँ .. कूँ .. कूँ l थोड़ी - थोड़ी देर बारी - बारी से वह सबकी गोदी में रहा l दादाजी, मम्मी, भैया और मयंक l मयंक तो खैर पूरे घर में उसे उठाए घूमते रहे l कुछ ही घंटों में मयंक का वह पक्का दोस्त बन चुका था l मयंक की गोद में आते ही अब वह चुप हो जाता और अपनी छोटी और चमकती आँखों से मयंक के चेहरे को देखने लगता l
मयंक रात को भी हरक्युलिस को अपने बिस्तर पर साथ ही लिटाना चाहता था l मम्मी ने कहा कि रात में बिस्तर पर वह सुसू - पॉटी कर देगा l मयंक तो इस बात पर भी राजी था कि हरक्युलिस अगर बिस्तर गंदा करता है तो वह साफ़ कर लेगा l पर जब दादाजी ने समझाया कि अभी वह बहुत छोटा सा पिल्ला है, रात में सोते समय तुमसे कुचल सकता है, तो मयंक मान गया l
मयंक के कमरे के बगल वाले छोटे से स्टोर रूम में हरक्युलिस का रात में रहने का इंतज़ाम कर दिया गया l दिसंबर का महीना था और कडाके की ठण्ड पड़ रही थी l स्टोर रूम से लगातार कूँ ..कूँ .. कूँ की आवाजें आती जा रहीं थीं l मयंक तीन बार स्टोर रूम में जाकर हरक्युलिस का बिस्तर और छोटा सा कम्बल ठीक कर चुका था परन्तु हर बार वह उसे कम्बल के बाहर ही मिलता l टेबल पर चढ़कर उसने स्टोर रूम के एकमात्र रोशनदान को भी बंद कर दिया, जिससे ठंडी हवा आ रही थी l खिड़की तो कोई स्टोर रूम में पहले से ही नहीं थी l लेकिन हरक्युलिस का रोना न बंद होना था, न हुआ l
बरामदे में थोड़ी देर पहले दादाजी तसले में कोयला सुलगा कर ताप रहे थे l दादाजी वैसे तो तसले की आग बुझाकर ही सोने जाते हैं परन्तु आज वह उसे बुझाना भूल गए थे l मम्मी अपने कमरे में टीवी देख रही थीं, भैया को सुबह तीन बजे पापा की स्टेशन लेने जाना था तो वह अपने कमरे की लाईट बुझा कर सो चुका था l दादाजी के खर्राटे पूरे घर में गूँज रहे थे l
मयंक को हरक्युलिस का कमरा गरम करने की एक तरकीब सूझी l पहले तो वह अपना रूम हीटर लेकर स्टोर रूम गया l लेकिन वहाँ उसे कोई सॉकेट नहीं मिला जिसमे हीटर का प्लग लगाया जा सके l वैसे भी उसके कस्बे में बिजली का जाड़े में भी रोना ही रहता था l तभी उसे बरामदे में रखा हुआ तसला दिखाई पड़ा l तसले में कोयले अभी सुलग रहे थे l पास पड़ी टाट की बोरी से पकड़ कर तसले को मयंक ने सावधानी से स्टोर रूम में दूर कोने में पत्थर के ऊपर रख दिया l उसने आसपास से सभी चीजों को हटा दिया ताकि कोई कपड़ा या सामान तसले पर न गिर जाए l जब उसे तसल्ली हो गई कि आग लगने की संभावना दूर दूर तक नहीं है तो उसने फिर से एक बार हरक्युलिस का बिस्तर, कम्बल ठीक किया, उसे ढेर सारा प्यार किया और दरवाजा बंद कर दिया l
रजाई के अन्दर दुबके मयंक की आंखें नींद से बोझिल हो रहीं थीं l हरक्युलिस की कूँ .. कूँ भी उसे अब कम सुनाई पड़ रही थी l थोड़ी देर में ही वह गहरी नींद में था l
रात ढाई बजे घर में हो रहे शोर से वह अचानक जागा l घर मे अफरातफरी का माहौल था l मम्मी, दादाजी, भैया सब जगे हुए थे l पहले तो उसे लगा कि कोई चोर घर में घुस आया है, या आग ला गई है या जाने क्या हुआ है l फिर देखा कि भैया आंगन में हरक्युलिस को जमीन पर रख कर जोर जोर से हिला रहा है l मयंक बिस्तर से कूद कर आँगन में पहुंचा l क्या हुआ भैया इसको? ... क्या हुआ भैया इसको? ... l भैया कुछ नहीं बोला बस घूरकर मयंक को देखने लगा l उसकी आँखों में इतना गुस्सा था कि मयंक डर गया l
हरक्युलिस निढाल, निश्चेत आँगन में पड़ा हुआ था l ध्यान से देखने पर उसकी सांसें चलती हुई दिखाई पड़ रही थीं l मयंक की आँखों में आंसू भी थे और आश्चर्य भी, कि आखिर ये क्या और कैसे हो गया?
मम्मी ने बताया कि रात में ढाई बजे भैया उठा उसे पापा को लेने स्टेशन जाना था l माचिस की तीलियाँ ख़त्म हो गईं थीं और भैया को चाय बनाने के लिए स्टोव जलाना था l भैया जैसे ही स्टोर में घुसा स्टोर में पूरा धुआं भरा हुआ था और हरक्युलिस बेहोश पड़ा था l पर? .... अचानक ही मयंक को सारी बात समझ में आ गई, अपनी गलती भी l उसे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था कि आज सुबह ही तो उसने जार, मोमबत्ती और चूहे वाला प्रयोग किताब में पढ़ा था, उसका उत्तर भी स्कूल में लिख कर आया था, फिर इतनी बड़ी गलती उससे कैसे हो गई?
दादाजी ने बताया कि दिल्ली वाली खबर भी यही थी, जिसके लिए तुम मेरे ऊपर चिल्लाए थे l अभी सब लोग आपस में बातें कर ही रहे थे कि आँगन से आवाज़ आई कूँ ... कूँ .. कूँ ... l
दौड़ कर मयंक ने हरक्युलिस को गोद में उठा लिया l हरक्युलिस ने आँखे खोल दी थीं, वह अपनी पूंछ भी हिला रहा था l उसकी छोटी उदास आँखों में झाँक कर मयंक धीरे से बोला " सॉरी, हरक्युलिस "
- प्रदीप शुक्ल

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