! निर्भया की याद में !!
जाने कितने सपने लेकर शहर आई थी बाबू जी !
मेरे सारे अरमानों को मौत खा गई बाबू जी !!
सोचा था पढ़ कर समाज में मैं भी कुछ बन जाऊंगी
तेरे शहर की गलियों में बदनाम हो गयी बाबू जी !!
मेरा कुसूर बस इतना सा मैं एक अबला नारी थी
पिंजरे में थी एक चिरैया कई शिकारी बाबू जी !!
तुम सब भी उतने ही दोषी जितने वो सब गुंडे थे
मेरी बलि के बाद ही सही अब तो सीखो बाबू जी !!
कब तक आँखें बंद रखोगे आस पास की दुनिया से
छुपे हुए बदकारों को बस खोज निकालो बाबू जी !!
मैं नारी हूँ मुझसे तुम बस नारी सा ब्यवहार करो
मत पूजो तुम मुझको ना पत्थर मारो बाबू जी !!
मुझको तो इस दुनिया में बस इतना ही जीना था
मेरे जैसी औरों की तो जान बचा लो बाबू जी !!
- डॉ . प्रदीप शुक्ल
16.12.2013
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