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 !! लो फिर शरद ऋतु आ गयी !!

धूप की गरमी में नरमी आ गयी
लो फिर शरद ऋतु आ गयी !!
उसके आने का , इशारा हो गया
चढ़ता हुआ पारा , अचानक खो गया
एक ठंडी सी छुअन अब , सांझ के माथे पे है
गुनगुनी सी धूप लेकर , फिर सवेरा हो गया
और हलकी धुंध सी फिर छा गयी
लो फिर शरद ऋतु आ गयी !!
तेरे आते ही गुलों के , रंग सब गहरा गये
भौंरे फूलों से लिपट कर , कान में कुछ गा गये
ओस की बूँदें चमक उट्ठीं , ज़रा सी धूप से
मोतियों के कीमती टुकड़े , धरा पर छा गये
देर से निकला है सूरज , सुबह भी अलसा गयी
लो फिर शरद ऋतु आ गयी !!
ये गुलाबी ठंड का मौसम , अभी जाने को है
कंपकंपाती ठंड का मौसम , अभी आने को है
ये हवा जो लग रही , ठंडी छुअन सी
कुछ दिनों के बाद , चुभ जाने को है
भोर की ठंडी हवा बतला गयी
लो फिर शरद ऋतु आ गयी !!
कडकडाती ठंड से हम तो बचेंगे
पर न जाने लोग फिर कितने मरेंगे
नहीं सबके पास बेहतर आशियाना
किसी के पास तो फिर वही कम्बल पुराना
ठंड आई दिल में दहशत छा गयी
लो फिर शरद ऋतु आ गयी !!
अच्छा नहीं है इस तरह कविता मोड़ देना
और सुन्दर कल्पनाओं को तोड़ देना
कैसे कहूं सब शरद का आनंद लेंगे
जब मुझे मालूम , कुछ लोग मरणासन्न होंगे
लेखनी में कटु हक़ीकत आ गयी
लो फिर शरद ऋतु आ गयी !!
धूप की गरमी में नरमी आ गयी
लो फिर शरद ऋतु आ गयी !!
- डॉ . प्रदीप शुक्ल
26.11.2013
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