! झूठा सच !!
झूठ सच से जुदा कर न पाया कभी ,
मैं क्या बोलूँ बस तौलता रह गया !
कल जो मेरे लिए झूठ था आज सच ,
जब भी मौक़ा मिला झूठ सच हो गया !
सच मैं कैसे कहूं मुझमे हिम्मत नहीं ,
रात भर मैं यही सोचता रह गया !
बात झूठी जमाने को सच्ची लगे ,
बस यही सोच कर हर सितम सह गया !
झूठ सच के जनाज़े में लिपटा हुआ ,
आखिरी वक्त में झूठ सच सब गया !
झूठ मैं बोलता रहा उम्र भर ,
आज अनजान में ही मैं सच कह गया !!
- डॉ . प्रदीप शुक्ल
23.11.2013
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