" तेज पुराण " दूसरा अध्याय ..............
वो चेहरा बाप का लगता था मुझको हर समय लेकिन
न जाने किस तरह की गंध थी उसके पसीने की !!
वो जब भी देख लेता था मुझे कोने अकेले में
करे कोशिश हमेशा बस मुझे आँखों से पीने की !!
ज़ेहन में थी बनी तस्वीर उसकी एक मसीहा की
मगर अब देखती हूँ तो लगे सूरत क.... की !!
तेरी बेटी के संग मैं खेलती थी तेरी गोदी में
तू तब भी तीस का था , मैं जब थी कुछ महीने की !!
वो कहता है कि इसमें थी मेरी सारी रजामंदी
बेगैरत , तू नहीं रखता है ख्वाहिश और जीने की !!
- डॉ . प्रदीप शुक्ल
07.12.2013
Comments
Post a Comment