!! घर !!
तिनका तिनका जोड़ बनाया , बरसों का अरमान था घर
दादा जी के क़दमों की , आहट का पहचान था घर !!
दादी ने पूरे जीवन भर , बस घर का सपना देखा
बाबू जी की श्रम बूंदों का , मेरी माँ का जान था घर
मेरा पहला शब्द कैद है , उस घर की दीवारों में
मेरे सब सपनों का साक्षी , वो मेरे अपनों का घर
मिट्टी , गारा , लोहे से तो , दीवारें , छत बनती हैं
हंसी , ठहाका , आंसू , गुस्सा , साँसों से बनता है घर
दूर चला आया मैं उससे , वो बस मेरी यादों में
पूरे जीवन साथ रहेगा , वो मेरे बचपन का घर
सुबह से लेकर शाम हो गई , सड़कों पर तू दौड़ रहा
पंछी वापस लौट चले हैं , तुझे पुकारे तेरा घर !!
- डॉ . प्रदीप शुक्ल
23.12.2013
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