!! सपनों का मर जाना कैसा !!
जो सपने हों सब अपने हों , सपनों का मर जाना कैसा
सपने बस सपने होते हैं , ऐसा कोई बहाना कैसा !!
करें कल्पना हम सपने में , मूर्त रूप देने को तत्पर
आगे बढ़ते ही जाना है , कांटे कितने भी हों पथ पर
सफल वही होते जीवन में , सतत परिश्रम जो करते हैं
अवरोधों के पार छलांगें , उनसे आँख चुराना कैसा
जो सपने हों सब अपने हों , सपनों का मर जाना कैसा
सदियों से ये होता आया , जिसने सोचा उसने पाया
जिसके लक्ष्य रहे धूमिल से , जीवन में वो ही पछताया
एक बार जो ठान लिया बस , उसको पूरा ही करना है
विजयी रेखा को छूना है , पहले ही रुक जाना कैसा
जो सपने हों सब अपने हों , सपनों का मर जाना कैसा
रोक नहीं सकता कोई अब , चाहे कितना जोर लगा ले
प्रतिपल बस आगे चलना है , देख नहीं पैरों के छाले
जिसके सपने देख रहा तू , वो मंजिल अब दूर नहीं है
गिरना तो चलने का हिस्सा , गिरने से डर जाना कैसा
जो सपने हों सब अपने हों , सपनों का मर जाना कैसा
जीवन के संघर्षों से , अक्सर हम घबरा जाते हैं
और सामने देख मुसीबत , अक्सर हम चकरा जाते हैं
मन जितना ही धवल रहेगा , जीवन उतना सरल रहेगा
जीवन का पथ सीधा साधा , उसको फिर उलझाना कैसा
जो सपने हों सब अपने हों , सपनों का मर जाना कैसा
कुछ सपने जो टूट गए तो , अन्धकार छाया क्यों मन में
आशा की किरणें समेट फिर , उजियारा आये जीवन में
फिर नवीन सपनों के अंकुर , अंतर्मन से उग आयेंगे
जीवन तो बहता दरिया है , उसका फिर थम जाना कैसा
जो सपने हों सब अपने हों , सपनों का मर जाना कैसा
जो सपने हों सब अपने हों , सपनों का मर जाना कैसा
सपने बस सपने होते हैं , ऐसा कोई बहाना कैसा !!
- डॉ . प्रदीप शुक्ल
13.11.2013
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