साइकिल मेरी बहुत दुखी है।
खड़ी हुई दीवार सहारे
दुखी नज़र से गेट निहारे
बाहर हवा पुकारे उसको
पेड़ बुलाएँ सड़क किनारे
कैसे मैं उसको समझाऊँ
प्यार करूँ मैं गले लगाऊँ
साइकिल मेरी बहुत दुखी है
पहले वह जाती थी स्कूल
डालों पर हँसते थे फूल
गलियों-गलियों से परिचिय था
अब सब गयी रास्ते भूल
घंटों मैं उससे बतियाऊँ
हौले उसका सिर सहलाऊँ
साइकिल मेरी बहुत दुखी है
अँधियारे में छिपी खड़ी है
जाने कैसी विकट घड़ी है
हवा नहीं है, हिम्मत टूटी
उम्मीदों पर धूल पड़ी है
क्या कहकर उसको बहलाऊँ
कैसे मैं ढाढ़स बंधवाऊँ
साइकिल मेरी बहुत दुखी है।
- प्रदीप कुमार शुक्ल
( 2021 )
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