आया बसंत / डॉ प्रदीप शुक्ल
जा रहा जाड़ा
पर गर्मी नहीं आई
मौक़ा पा
फूलों ने ली है अंगड़ाई
पर गर्मी नहीं आई
मौक़ा पा
फूलों ने ली है अंगड़ाई
घबराए बैठे थे
जाड़े में अब तक
ठंडी हवाओं की
मार सहें कब तक
पेड़ों ने पत्तों की
फेंक दी रजाई
जाड़े में अब तक
ठंडी हवाओं की
मार सहें कब तक
पेड़ों ने पत्तों की
फेंक दी रजाई
सूरज ने खोली हैं
थोड़ी सी आँखें
हरे हरे घूँघट से
कलियाँ सब झाँकें
स्वागत में भौरों ने
छेड़ी शहनाई
थोड़ी सी आँखें
हरे हरे घूँघट से
कलियाँ सब झाँकें
स्वागत में भौरों ने
छेड़ी शहनाई
तितलियाँ झूल रहीं
हवा के हिंडोले
मौसम ने यहाँ वहाँ
चटख रंग घोले
आया बसंत! देखो,
धरती मुस्काई.
हवा के हिंडोले
मौसम ने यहाँ वहाँ
चटख रंग घोले
आया बसंत! देखो,
धरती मुस्काई.
डॉ. प्रदीप शुक्ल
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