पुराने वाले दोस्त
कई पुराने दोस्त कभी
जब मिलने आते हैं
बीते हुए समय को
फिर से वापस लाते हैं
जब मिलने आते हैं
बीते हुए समय को
फिर से वापस लाते हैं
दिल्ली से आया है, कोई
आबूधाबी से
मन के द्वार खुले हैं सारे
मन की चाबी से
आबूधाबी से
मन के द्वार खुले हैं सारे
मन की चाबी से
रात-रात भर बैठे जाने
क्या बतियाते हैं
क्या बतियाते हैं
कनपुरिया जब बोले तो
बोलता चला जाये
और धामपुर वाला
धीरे-धीरे मुसकाए
बोलता चला जाये
और धामपुर वाला
धीरे-धीरे मुसकाए
सब मिलकर फिर यादों की
सिगरेट सुलगाते हैं
सिगरेट सुलगाते हैं
एक बिहारी सब पर भारी
कभी नहीं बदला
पाँच बजे ही उठकर लंबू
पंद्रह मील चला
कभी नहीं बदला
पाँच बजे ही उठकर लंबू
पंद्रह मील चला
सब पकवान छोड़ कर
लिट्टी-चोखा खाते हैं
लिट्टी-चोखा खाते हैं
कुछ जो छिपे रहे बरसों तक
आए हैं खुल कर
कुछ हैं फंसे लेह मे करते
कॉल वीडियो पर
आए हैं खुल कर
कुछ हैं फंसे लेह मे करते
कॉल वीडियो पर
आ न सके जो, देख-देख कर
बस ललचाते हैं
बस ललचाते हैं
कैंसिल कर के टिकट किसी की,
सबने रोक लिया
और किसी ने याद किया
फिर सारी रात पिया
सबने रोक लिया
और किसी ने याद किया
फिर सारी रात पिया
दुख के जबड़ों से हम यूं ही
खुशी चुराते हैं।
खुशी चुराते हैं।
- प्रदीप कुमार शुक्ल
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