ठंड बड़ी है
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आसमान में धुँधला सूरज
पेंड़ों से लटका है कुहरा
आठ बजे हैं
रामदीन तो लिए फावड़ा
पिला रहा गेहूँ को पानी
निपट भोर से
चढ़ा रखे मिट्टी के मोज़े
ताज़े पानी के दस्ताने
पेंड़ों से लटका है कुहरा
आठ बजे हैं
रामदीन तो लिए फावड़ा
पिला रहा गेहूँ को पानी
निपट भोर से
चढ़ा रखे मिट्टी के मोज़े
ताज़े पानी के दस्ताने
भाप जम रही है खेतों पर,
भौहों पर, पलकों के ऊपर
यहाँ चाय के प्याले पर मैंने भी देखा
भौहों पर, पलकों के ऊपर
यहाँ चाय के प्याले पर मैंने भी देखा
मुँह निकाल कर कम्बल से मैं
थोड़ा सा अलसा कर बोला -
ठंड बड़ी है.
थोड़ा सा अलसा कर बोला -
ठंड बड़ी है.
- प्रदीप कुमार शुक्ल
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