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नया साल
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नया साल
लेकर आयेगा
फ़िर से नये बवाल
बस मुक़ाबला ही करना है
हमें साल दर साल
लगता है
जो गुजर गया
वह एक बुरा था सपना
आने वाला समय हमेशा
हुआ कहाँ पर अपना
नई सुबह लेकर आती है
बिलकुल नया सवाल
कहीं सवाल
सरहदों का है
कहीं धर्म की बातें
सड़क किनारे कहीं
ठिठुरती बैठी भूखी आँतें
नए साल में फ़िर आएगी
नई सियासी चाल
मूर्छित करती
रहीं साल भर
ये विषभरी हवाएँ
राजा रहें होश मे
जनता की हैं यही दुआएँ
डूबे नहीं नाव
फहराता रहे तिरंगा पाल
- प्रदीप कुमार शुक्ल

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