हिरनी की आँखों में डर है
असुरों के
बच्चों की अम्मा, ने
घर में आरती उतारी
यहाँ भेड़िये फिर शिकार पर
वहाँ सत्र में बहसें जारी
बच्चों की अम्मा, ने
घर में आरती उतारी
यहाँ भेड़िये फिर शिकार पर
वहाँ सत्र में बहसें जारी
गली मुहाने
खुली सड़क पर
कदम-कदम पर आखेटक है
हिरनी की आँखों में डर है
सांस रुकी है, दिल धक धक है
खुली सड़क पर
कदम-कदम पर आखेटक है
हिरनी की आँखों में डर है
सांस रुकी है, दिल धक धक है
गाय
रंभाती है खूँटे पर
दुबक रही बछिया बेचारी
रंभाती है खूँटे पर
दुबक रही बछिया बेचारी
नन्ही परियों के
पंखों को
रोज़ कहीं वे नोच रहे हैं
और यहाँ हम बस दशकों से
मुँह लटकाए सोच रहे हैं
पंखों को
रोज़ कहीं वे नोच रहे हैं
और यहाँ हम बस दशकों से
मुँह लटकाए सोच रहे हैं
आधी आबादी
के मन में
असंतोष की लपटें भारी
के मन में
असंतोष की लपटें भारी
- प्रदीप कुमार शुक्ल
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