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चुनावी ऋणपत्र और अलाने-फलाने
अच्छा, चुनावी ऋणपत्र ( इलेक्टोरल बॉन्ड ) का खेला भी कमाल का है। भारतीय राजनीति के महान अर्थशास्त्री श्रीमान अरुण जेटली जी के चाहने वाले सभी दलों में ऐसे ही नहीं भरे पड़े हैं। यह उन्ही का दिमागी बच्चा है।
इसको सरल भाषा में ऐसे समझिए।
एक हैं अलाने जिनको पाल्टी पूरे चुनाव भर पानी पी-पी कर गरियाती है। दुनिया जानती है कि अलाने के नंबर दो के धंधे हैं। पाल्टी के अब्बा, ताऊ, चाचा, भतीजा उसको सुबह - शाम गाली देने के बाद नाश्ता करते हैं। पर मुश्किल यह है कि न तो अलाने का काम पाल्टी के बगैर चल सकता है और न पाल्टी का काम अलाने के बगैर।
तो बस इसी के लिए इलेक्टोराल बॉन्ड नाम का खेला, खेला जाता है। आइये देखते हैं कैसे।
अलाने को अपना काम कराने के लिए ( मतलब जनता का खून चूसने के लिए ) पार्टी ( सरकार पढ़ा जाये ) को सौ ( करोड़ आदि पढ़ लिया जाये ) रुपये का चढ़ावा चढ़ाना है। बैंक के पैसे अलाने पार्टी को देना नहीं चाहते। एक तो बैंक मे पैसे डालने-निकालने की उनकी आदत नहीं और दूसरे कल को बात खुले तो पाल्टी को दिक्कत हो जाने का।
अच्छा खैर, तो अलाने ने एक सौ दस रुपये के बोरे भिजवा दिये फलाने के गोदाम में। फलाने ने अपने बैंक से सौ रुपये के बॉन्ड अलाने को खरीद कर दे दिये अपने खाते से। बताते चलें कि इन्हे आप बॉन्ड भले कहें लेकिन हैं यह करेंसी नोट। आप बिना किसी लिखा-पढ़ी के अपनी जेब से निकाल कर किसी के भी हाथ मे दे सकते हैं। अब आप पूछेंगे कि फलाने को क्या फायदा? तो फलाने को तीन फ़ायदे हुए। एक सीधे सीधे तीस रुपये का टैक्स बचा, दूसरा दस रुपये और मिले अलाने से, तीसरा अलाने से संबंध बने जो अंधेरे - उजेरे काम आएंगे।
अब किसी माई के लाल की औकात नहीं कि किसी बैंक, किसी कागज मे अलाने का नाम खोज सके। अब चूंकि अलाने ने अपने कर कमलों से सौ रुपये के बॉन्ड पाल्टी को स्वयं दिये हैं तो पाल्टी और उनके आका और उनकी सरकार अलाने की चरण वंदना करती रहेगी।
बस दुई हजार रुपिया खातिर
फोटू खैंचेव, स्याही लगायेव
अरबन का चन्दा तुम लीन्ह्यो
पर नामु न याको तुम बतायेव
सब नियम हमरेहे खातिर हैं
तुमरे तन याकौ नियम नहीं
काका तुम ब्वालौ सही-सही
काका तुम ब्वालौ सही-सही
( कविता नोटबंदी के समय लिखी गयी थी, इसका प्रस्तुत आलेख से संबंध है )
- प्रदीप कुमार शुक्ल

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