सरलादेवी चौधरानी
सन अट्ठारह सौ नब्बे में सभ्य समाज की महिलायें जब सात पर्दों के पीछे छुपी रहती थीं तब सरला देवी ने सत्रह वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य से बी ए की डिग्री प्राप्त की. अंग्रेजी साहित्य में प्रतिष्ठित पद्मावती गोल्ड मेडलिस्ट सरला देवी उन दिनों उँगलियों पर गिने जाने वाली कुछ एक महिलाओं में शामिल थीं, जो ग्रेजुएट थीं.
शेली, कीट्स पर अपने मामा रबीन्द्रनाथ टैगोर से बहस करती सरला देवी ने फिज़िक्स पढ़ने के लिए विश्वविद्यालय में अपना नाम लिखाया. फिजिक्स पढने वाली वह क्लास में ही नहीं पूरे भारत में अकेली महिला थीं. बाद के दिनों में उन्होंने संगीत और कला में भी हाथ आजमाया. वन्देमातरम को पहली बार उन्होंने ही संगीतबद्ध किया.
अत्यंत ख़ूबसूरत और अटूट स्वाभिमान की मालकिन सरला देवी के आगे लाखों पुरुष बौने नज़र आते थे. जाहिर है कि शादी कर घर बसाने वाली जीव नहीं थीं वह. तैंतीस बरस की उमर में जब उनकी माँ मृत्यु शैया पर थीं तो उनकी आखिरी इच्छा के क्रम में सरलादेवी का ब्याह लाहौर हाईकोर्ट में नामी वकील रामभुज दत्त चौधरी से हुआ.
सरला देवी चौधरानी के पति ने भी उन्हें सामाजिक कार्यों से कभी नहीं रोका. १९१० में भारत के पहले महिला संगठन " भारत स्त्री महामंडल " की स्थापना सरला देवी चौधरानी ने इलाहाबाद में की.
जलियाँवाला बाग़ काण्ड के बाद जब गांधी जी पहली बार लाहौर आये तो सरलादेवी चौधरानी उनकी मेजबान थीं. गांधी जी उनके साहस और आत्मविश्वास से बहुत प्रभावित थे और चौधरानी जी गांधी जी की सरलता, नेतृत्व क्षमता से. सरलादेवी ने गांधी जी के साथ बहुत यात्राएं की. अहमदाबाद के आश्रम में भी रहीं और गांधी जी ने अपने अखबार यंग इंडिया में भी उनको प्रमुखता से छापा.
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