जनता के सेवक
ग़रीब, दुखियारी जनता की सेवा का मौक़ा पाने के लिए सेवकों की नई खेप मार्केट में है. ये सेवक अगले दो महीने आकाश - पाताल एक कर देंगे.
पुराने सेवकों के मुंह में सेवाभाव का खून लगा है और नए सेवक यह खून अपने मुंह पर लगवाने के लिए बेकल हैं.
ये सेवाआतुर सेवक अन्य सेवाकांक्षियों को गालियाँ देंगे, मल्लयुद्ध लड़ेंगे, दूसरे गुट के सेवकों की धोती खोलेंगे और जरूरत पड़ी तो अपना भी लंगोट उतार फेकेंगे. कुल मिलाकर जनता का मनोरंजन भी करेंगे.
सेवक केवल खुराकी पर सेवा करेंगे. यह अलग बात है कि इन क्षुधातुर पिस्सुओं की क्षुधा शांत कर पाना गरीब जनता के बस में नहीं है.
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