( अनुभूति के होली विशेषांक में प्रकाशित )
होली
रंग टेसू के
बिलखते है यहाँ पर
खेलने जब से लगे तुम
खून की होली
बिलखते है यहाँ पर
खेलने जब से लगे तुम
खून की होली
नीम तीता हो गया
मीठा कुआँ
घाटियों से उठ रहा
काला धुआँ
मीठा कुआँ
घाटियों से उठ रहा
काला धुआँ
हम तुम्हे
बच्चा समझ पुचकारते हैं
तुम खिलौनों में भरो
बारूद की गोली
बच्चा समझ पुचकारते हैं
तुम खिलौनों में भरो
बारूद की गोली
उस पड़ोसी चचा के
घर में घुसे हो
बच नहीं सकते
जहन्नुम में फँसे हो
घर में घुसे हो
बच नहीं सकते
जहन्नुम में फँसे हो
लाल गहरे रंग से
रँगने तुम्हे
आ रही है वहाँ पर
यमराज की टोली
रँगने तुम्हे
आ रही है वहाँ पर
यमराज की टोली
दे चुके मौक़ा
न अब देंगे तुम्हे
होलिका में
झोंक हम देंगे तुम्हे
न अब देंगे तुम्हे
होलिका में
झोंक हम देंगे तुम्हे
भस्म कर देंगे
वहीं पर आग में
सब खिलौने
और तेरे चचा की खोली
वहीं पर आग में
सब खिलौने
और तेरे चचा की खोली
- प्रदीप कुमार शुक्ल
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