नई पुस्तक की भूमिका पढ़िए, जो आदरणीय दिविक रमेश जी ने लिखी है. किताब भी पढ़ सकते हैं, हमें अच्छा लगेगा.
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जुगलबंदी : बाल-साहित्य में एक ‘हर्षित’ प्रयोग
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-- दिविक रमेश
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-- दिविक रमेश
बाल-साहित्य में, कम समय में ही, अपनी पहचान बना लेने वाल कवि डॉ. प्रदीप शुक्ल और सुपरिचित बाल-कथाकार डॉ. मंजरी शुक्ला की साहित्यिक जुगलबंदी की एक पांडुलिपि मेरे सामने है। इस पर कुछ लिखने के आग्रह के साथ इसे भेजने से पहले मुझसे पूछ लिया गया था। जुगलबंदी नाम सुनकर ही मैं इसे पढ़ने के लिए उत्सुक हो उठा था।
यूं कला और साहित्य के क्षेत्र में जुगलबंदियों का मैं थोड़ा-बहुत जानकार और अनुभवी रहा हूं। साहित्य और चित्र,चित्र और साहित्य, साहित्य और संगीत इत्यादि की जुगलबंदी हिंदी साहित्य में भी उपलब्ध है।लेकिन प्रस्तुत जुगलबंदी साहित्य की दो विधाओं की बीच की है। बाल कहानी और बाल कविता के बीच की। पांडुलिपि सामाप्त करते –करते मन में प्रश्न उठा कि कहानियां कविताओं से प्रेरित(प्रभावित नहीं) हो कर लिखी गई हैं अथवा कविताएं कहानियों से।
सवाल इसलिए भी उठाक्योंकि दोनों ही विधाओं की रचनाओं में अनेक स्तरों पर सृजनात्मक मौलिकता भी मौजूद नजर आई। खैर रचनाकारों से ही पूछ लिया। जो जवाब आए वे निम्न प्रकार से हैं -
डॉ. प्रदीप शुक्ल : “जुगलबंदी का विचार तो सर्वप्रथम मेरे दिमाग में ही आया था। पर लगभगएक साल तक इस पर प्रगति इसलिए संभव नहीं हो पाई कि तय हुआ था कि एक कवितालिखूंगा मैं जिस पर मंजरी जी एक कहानी लिखेंगी। फिर ऐसे ही उनकी एक नई कहानी पर मेंकविता लिखूंगा। पर यह संभव नहीं हो पाया तो मंजरी जी से मैंने उनकी पंद्रह लिखी हुईकहानियां जो किसी पुस्तक का हिस्सा नहीं थीं, मंगवाई और एक साथ सारी कविताएं लिखडाली। यह केवल बीस दिन में ही पूरा हो गया।“
डॉ. मंजरी शुक्ला –“ कहानियों से कविता प्रेरित हैं ...मैंने कहानियां लिखी थीं उन्हें देखकरप्रदीप जी ने कविता लिखी है।“
उपर्युक्त जानकारी मेरे लिए दिलचस्प थी और जरूरी भी। जीवन और रचना प्राय: दोनों ही रचनाया अगली रचना के प्रेरणा स्रोत रहते आए हैं, यह हम सबको विदित है।अब रचनाओं पर आया जाए। शुरु में ही लिख दूं कि जैसा कि मैंने ऊपर संकेत दिया हैकि दोनों ही विधाओं में रची गईं रचनाएं मौलिकता से अछूती नहीं हैं। अर्थात कहानियां तोअपनी जगह मौलिक हैं ही उनसे प्रेरित हो कर रची गई कविताएं भी अपना अलग भी वजूद रखती हैं और मौलिक हैं। यही कारण है कि पात्र, घटना, शीर्षक आदि के स्तर पर कुछ अपनापन और बदलाव भी नजर आते हैं। इसे मैं एक बड़ी विशेषता मानता हूं।
जिज्ञासा हो सकती है तो फिर वह क्या है जिसके कारण जुगलबंदी की तान खिलती है। इसे समझने के लिएतो रचनाओं की शरण में जाकर उनसे से ही पूछना होगा। .........
आगे की भूमिका किताब में मिलेगी और किताब आपको रश्मि प्रकाशन से मिलेगी.
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