हाड़ - मांस का पुतला
सरलादेवी चौधरानी को गांधी जी पसंद करते थे. या बात शायद पसंद से आगे की थी. यहाँ मामला दोतरफा था. इसके पहले साउथ अफ्रीका में भी उनके एक सहयोगी की बहन उनसे प्यार करती थी पर वहाँ मामला बिलकुल एकतरफा था. वहाँ खुला समाज था और ये बातें वहाँ पर उस जमाने में भी सामान्य आचरण में आती थीं. सबसे बड़ी बात गांधी वहाँ पर मिस्टर मोहनदास थे पर यहाँ भारत में वह महात्मा बन चुके थे.
गांधी जी के प्रभाव में बंगाल की भद्रमहिला, जिसका पंजाब क्या पूरे उत्तर और पूर्व भारत में जलवा था, ने मोटी खादी धोती और ब्लाउज पहनना शुरू कर दिया था.
एक बार गांधी जी पूना में थे और सरलादेवी अपने सौतेले पुत्र का ब्याह कराने पंद्रह दिन के लिए लाहौर गईं थीं. गांधीजी रोज उन्हें पत्र लिखते. दूसरे दिन ही उन्होंने लिखा, " कल रात मुझे दो सपने आये. पहला खिलाफत का, दूसरा तुम्हारा. मुझे लगा तुम दो दिन में ही वापस आ गई हो और कह रही हो कि पंडितजी ( सरलादेवी के पति ) ने दिल्लगी की थी. कोई शादी - वादी नहीं थी. पर मेरा दिल टूट गया जब मैंने महसूस किया कि यह सपना था." ..... " कल भी तुम्हारे पत्र का मैं इंतज़ार ही करता रहा और आज भी दिन खाली जा रहा है."
गांधीजी के सरलादेवी से कोई शारीरिक सम्बन्ध नहीं थे पर वह उन्हें आध्यात्मिक पत्नी मानते थे. अहमदाबाद में किसी मित्र को गांधीजी ने पत्र में लिखा कि ब्रम्हचर्य का पालन करने के लिए मुझे अभी भी अपने चारों तरफ दीवारें खडी करनी पड़ती हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही मैं इस संघर्ष में लगभग हारते - हारते बचा.
गांधीजी के लिखे हुए कई पत्रों को इतिहासकारों ने उद्घृत किया है पर जवाब में सरलादेवी के सारे पत्रों को गांधीजी के घर वालों ने नष्ट कर दिया.
इसी प्रकरण पर सी राजगोपालाचारी का गांधीजी को किसी पत्र के उत्तर में लिखा पत्र बेहद कठोर बन पड़ा है. गांधीजी को लगभग फटकारते हुए राजाजी कहते हैं कि " अगर आपने कोई ऐसा - वैसा कदम उठाया तो आपका ही नहीं पूरे हिन्दुस्तान का बहुत बुरा हो जाएगा. फिर आप जो महात्मा बने फिरते हैं उसका क्या? वैसे भी मुझे उस महिला में कोई विशेष आकर्षण या आभामंडल नहीं दिखाई देता."
बापू के बारे में यह प्रकरण पढ़कर बहुत भला - भला सा लगता है. सारी दुर्बलताओं के चलते वह सम्पूर्ण मनुष्य थे. एक हाड़ मांस के जीवित मनुष्य.
( पढ़ते - पढ़ते )
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