फागुन - फागुन
ढोल मँजीरा झाँझरी, .. ढपली और मृदंग
धूल झाड़ कर आ गए, सब फागुन के संग
धूल झाड़ कर आ गए, सब फागुन के संग
पीली चूनर ओढ़ कर, सरसों खड़ी सिवान
नटखट फागुन दूर से, ..कर लेता पहचान
नटखट फागुन दूर से, ..कर लेता पहचान
आहट फागुन की सुनी, बौराया है आम
पत्ते पत्ते हँस पड़े, .... फैली खबर तमाम
पत्ते पत्ते हँस पड़े, .... फैली खबर तमाम
गागर रंगों से भरी, .. जिसने दिया उछाल
उस फागुन के हाथ में, महका हुआ गुलाल
उस फागुन के हाथ में, महका हुआ गुलाल
महका महका तन लिए, मनुआ फिरे अधीर
फागुन फागुन हो रही, .... पुरवा की तासीर.
फागुन फागुन हो रही, .... पुरवा की तासीर.
# डॉ. प्रदीप शुक्ल
11.03.2016
11.03.2016
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