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गांव का एक लड़का ( 26 )



नक़वी सर के फार्मूले से मेरे दिल पर रखा हुआ एक बड़ा पत्थर हट गया था l अब मैं खुल कर सांस ले सकता था l फिजिक्स की किताबें और नोट्स मैंने एक तरफ रख दिए l उनकी तरफ देखना भी बंद कर दिया l फिजिक्स की क्लास में जरूर बैठता पर दिमाग में कुछ और ही चल रहा होता l
करीब एक महीना गुजरा होगा और पहला ही टेस्ट मेरे सबसे प्रिय विषय ज़ूलोजी का आ गया l तकरीबन पांच सौ बच्चे रहे होंगे पूरे सेक्शंस को मिलाकर l मेरी रैंक थी चौथी l बहुत सालों के बाद पहली बार कुछ जीतने जैसा अहसास हो रहा था l नक़वी सर ने मुझे घूर कर देखा l उनकी आँखों में मेरे लिए प्रसंशा और वात्सल्य के भाव थे l बाकी सारे बच्चे पहले से ही पढ़ाकू थे और उनका मेरिट में आना तय था l मैं बिलकुल नया था l गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ ली थी l
फिर एक दिन वही हुआ जिसका मुझे डर था l ऐलान हुआ कि अपने - अपने प्रमाणपत्र और अंकतालिकाएं लेकर ऑफिस में विधिवत प्रवेश प्रक्रिया पूर्ण कराई जाए l पहले तो मैं बचता रहा, पर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती l मैं हलाल होने के लिए अपने कागज़ समेटे एक छोटे से ऑफिस में पहुँच गया l ऑफिस में केवल केमिस्ट्री वाले दयाल सर बैठे हुए थे l दयाल सर सीडीआरआई में साइंटिस्ट थे और हमें इनोर्गानिक केमिस्ट्री पढ़ाते थे l थोड़ी राहत की सांस आई, चलो, सरेआम बेइज्जती से बच गए l
मैंने अपनी लैमिनेटेड अंकतालिकाएं दयाल सर के समक्ष प्रेषित कीं और खड़े होकर बमवर्षक विमानों का इंतज़ार करने लगा l दयाल सर कुछ देर चुपचाप मेरी अंकतालिकाएं उलट पुलट कर देखते रहे फिर आहिस्ता से उन्होंने अपना चश्मा मेज पर रखा l मुझे सामने बैठने का इशारा करते हुए ठंडे स्वर में बोले -
- तुम्हारे बाप के पास ज्यादा पैसा है?
- नहीं सर, पैसा ही तो नहीं है l मैंने घिघियाते हुए कहा l
- यहाँ सैर सपाटा, मस्ती करने आये हो?
- नहीं सर, पढने आया हूँ l मैंने फिर मिमियाने की कोशिश की l
- देखो बेटा ! ( दयाल सर, संत जैसे भाव चेहरे पर ओढ़ कर प्रवचन देने के मूड में आ गए l ) यह नई कोचिंग है, हमसे गलती हो गई जो हमने पहले तुमसे नहीं पूछा l तुम्हारा इतना समय बर्बाद हुआ l वैसे तो जमा हुए पैसे वापस नहीं होते हैं पर मैं अपने अकाउंट से तुम्हारे सारे पैसे वापस करा दूंगा l चुपचाप घर जाओ l तुम्हारे बस का नहीं है l इसमें कुछ और पैसे मिलाकर कोई छोटी मोटी दूकान खोल लो l
- सर, मैं पढाई कर रहा हूँ l अब तक मेरी भी आवाज वापस आ चुकी थी l
- अच्छा ! कितने नम्बर आये तुम्हारे, इस बार के टेस्ट में? दयाल सर ने माथे पर सलवटें बनाते हुए भौहें चढ़ाकर पूछा l
- सर, फोर्थ रैंक l
- कितनी?
- सर, चार - चार l
- हूँ l अब सलवटें गायब हो रही थीं l
- मतलब अब तक तुमने खूब हरामखोरी की है l
- जी, ऐसा ही कुछ समझ लीजिये l
- देखो बेटा, वैसे तो तुम्हारी मार्कशीट्स देखकर तुम्हे कोई चपरासी की नौकरी भी नहीं देगा, लेकिन तुम चाहो तो डॉ बन सकते हो l
- सर मैं बनूंगा, मुझे कोई रोक नहीं सकता l
- ठीक है l फिर जाओ, खूब मेहनत से पढाई करो l
दयाल सर अब मुस्कुरा रहे थे l मैंने झुक कर उनके पाँव छुए, उन्होंने सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया l
मैं अपने आपको अन्दर से और मजबूत महसूस कर रहा था l लेकिन आगे रास्ता उतना सीधा था नहीं, जितना मैंने सोच लिया था l
जारी है ......

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